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उत्तरकाशी में फिर भारी बारिश की चेतावनी, धराली में दर्जनों लोग अभी भी लापता

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उत्तरकाशी: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में 34 सेकंड में आई प्राकृतिक आपदा ने भयंकर तबाही मचाई है। खीर गंगा नदी के रौद्र रूप ने गांव को मलबे के ढेर में बदल दिया है। जहां कभी चार-पांच मंजिल के होटल, शानदार घर, होम स्टे और पर्यटकों से गुलजार बाजार थे, वहां अब सिर्फ कीचड़ और मलबा बचा है। इस हादसे में 10 लोगों के मारे जाने की खबर है, जबकि सेना ने 3 शव बरामद किए हैं। करीब 50 लोग अभी भी लापता हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बताया कि 190 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। वहीं, उत्तरकाशी समेत उत्तराखंड के कई जिलों में आज भारी बारिश की चेतावनी है।

कल्प केदार मंदिर भी मलबे में दबा

धराली में मंगलवार को आई इस आपदा ने गांव की तस्वीर पूरी तरह बदल दी। मशहूर कल्प केदार मंदिर, जिसे 1500 साल पुराना माना जाता है, भी मलबे में दब गया। यह मंदिर 1978 की बाढ़ में भी प्रभावित हुआ था, लेकिन तब खीर गंगा ने रास्ता बदल लिया था, जिससे मंदिर बच गया। इस बार नदी का तेज बहाव मंदिर और धराली को मुखवां से जोड़ने वाला पुल बहा ले गया। गांव में सिर्फ एक मकान का खंडहर बचा है, बाकी सब जमींदोज हो चुका है। आपदा की गहराई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 30-40 फुट गहरे मलबे और कीचड़ में दो-तीन मंजिल की इमारतें दब गई हैं। मलबे में फंसे लोगों को निकालना बेहद मुश्किल है, क्योंकि यह दलदल जैसा है।

लोगों को बचाने में झोंका गया पूरा जोर

तेज रफ्तार से आए पानी और 15 मीटर प्रति सेकंड की गति से गिरे पत्थरों ने गांव को तहस-नहस कर दिया। सेना, ITBP, NDRF, SDRF और BRO की टीमें दिन-रात राहत कार्यों में जुटी हैं। सेना के 225 जवान, ITBP और NDRF की टीमें मैन्युअल तरीके से मलबा हटाने और लोगों को बचाने में लगी हैं, क्योंकि भारी मशीनें और उपकरण खराब सड़कों और मौसम के कारण धराली नहीं पहुंच पाए हैं। ITBP के प्रवक्ता कमलेश कमल ने बताया कि रास्ते बंद होने के कारण सारा काम हाथ से करना पड़ रहा है। हालांकि, संचार व्यवस्था को बहाल कर लिया गया है। हर्षिल में सेना के हेलीपैड को 14 घंटे में ठीक कर लिया गया है, जिससे अब हेलीकॉप्टरों के जरिए राहत सामग्री और टीमें धराली पहुंच रही हैं।

सर्च एंड रेस्क्यू डॉग्स की भी हुई तैनाती

सहस्त्रधारा से तीन निजी हेलीकॉप्टर भटवाड़ी के अस्थायी हेलीपैड से राहत कार्यों में मदद कर रहे हैं। हालांकि, भारी हेलीकॉप्टर जैसे चिनूक अभी जॉलीग्रांट, चंडीगढ़ और सरसावा में स्टैंडबाय पर हैं, क्योंकि खराब मौसम में उनका उड़ान भरना संभव नहीं है। SDRF और NDRF की टीमें खतरनाक पहाड़ी रास्तों पर 40 किलोमीटर पैदल चलकर धराली पहुंची हैं। मलबे और कीचड़ में चलने की मुश्किल को देखते हुए टिन की चादरें बिछाकर रास्ता बनाया जा रहा है। सेना की कॉम्बैट इंजीनियर्स की टीम भी मलबा हटाने और रास्ता बनाने में जुटी है। सर्च और रेस्क्यू डॉग्स को हर्षिल में तैनात किया गया है।

4 बार की कोशिश के बाद उतरा धामी का हेलीकॉप्टर

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को धराली का दौरा किया। खराब मौसम के कारण उनका हेलीकॉप्टर 4 बार लैंड करने की कोशिश के बाद दोपहर में उतर सका। धामी ने हेलीकॉप्टर से प्रभावित इलाके का हवाई सर्वे किया और जमीन पर उतरकर राहत कार्यों का जायजा लिया। उन्होंने घायलों से मुलाकात की और उनका हौसला बढ़ाया। धामी ने बताया कि मंगलवार को 6 बार मलबा और पानी नीचे आया, जिससे चुनौतियां बढ़ गई हैं। बिजली, मोबाइल टावर और बुनियादी ढांचा पूरी तरह नष्ट हो चुका है। धामी ने उत्तरकाशी में कैंप करने का फैसला किया है और युद्धस्तर पर राहत कार्यों की निगरानी कर रहे हैं।

धराली तक पहुंचने वाले रास्ते पूरी तरह बर्बाद

धराली तक पहुंचने वाले रास्ते पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं। भटवाड़ी से हर्षिल जाने वाला रास्ता टूट गया है, और करीब 300 मीटर का हिस्सा पानी में बह गया। हर्षिल को जोड़ने वाला पुल भी नष्ट हो चुका है। BRO की टीमें JCB की मदद से मलबा हटा रही हैं, लेकिन लैंडस्लाइड का खतरा होने के कारण विस्फोटकों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा। बड़ी चट्टानों को ड्रिल करके तोड़ा जा रहा है। सड़कों को ठीक करने में कम से कम 24 घंटे और लग सकते हैं।

आपदा के कारण को लेकर विशेषज्ञों में मतभेद

आपदा के कारण को लेकर विशेषज्ञों में मतभेद है। शुरुआती खबरों में दावा किया गया कि बादल फटने से फ्लैश फ्लड आया, लेकिन मौसम विभाग के अनुसार धराली में सिर्फ 5-6 सेंटीमीटर बारिश हुई थी। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह आपदा ऊंचाई पर बनी झील के टूटने से हुई। उनका तर्क है कि 6 बार तेज रफ्तार से पानी और मलबा आना तभी संभव है जब लैंडस्लाइड के कारण कृत्रिम झील से पानी और मलबा रिलीज हुआ हो। वहीं, कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि धराली के आसपास 3 जगह बादल फटे, जिसके कारण बार-बार पानी और मलबा आया।

नदी के किनारे अवैध निर्माण से बढ़ा नुकसान

दून यूनिवर्सिटी के नित्यानंद हिमालयन रिसर्च सेंटर के प्रोफेसर डीडी चुनियाल ने सैटेलाइट इमेज के आधार पर बताया कि यह आपदा बादल फटने से नहीं, बल्कि अन्य भौगोलिक कारणों से आई है। कुछ विशेषज्ञ इसे मानव निर्मित आपदा मानते हैं। उनका कहना है कि नदी के किनारे अवैध निर्माण और नदी का रास्ता रोकने से नुकसान बढ़ा। 1978 में आई बाढ़ में कम तबाही हुई थी, क्योंकि तब नदी किनारे ज्यादा आबादी या होटल नहीं थे। लेकिन बाद में नदी के रास्ते में मकान, दुकानें और होटल बन गए, जिसके कारण इस बार पानी ने पुराने रास्ते को अपनाया और भारी तबाही मचाई।

उत्तरकाशी में है भारी बारिश की चेतावनी

मौसम विभाग ने आज उत्तरकाशी सहित उत्तराखंड के कई इलाकों में भारी बारिश की चेतावनी दी है। अगर बारिश होती है, तो राहत कार्य और मुश्किल हो सकते हैं। आज उत्तरकाशी में कक्षा 1 से 12 तक के सभी स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों की छुट्टी कर दी गई है। धराली की यह त्रासदी प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने का सबक देती है। 1978 और 2018 में भी बाढ़ आई थी, लेकिन तब कम आबादी और निर्माण के कारण नुकसान कम हुआ था। इस बार नदी के मूल रास्ते में बने होटल और मकान तबाही का कारण बने। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखना जरूरी है, वरना ऐसी आपदाएं अभिशाप बन सकती हैं।

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