अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), जोधपुर के प्लास्टिक सर्जरी, ट्रॉमा सर्जरी और ऑर्थोपेडिक्स विभागों की एक संयुक्त टीम ने चिकित्सा के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। संस्थान में भर्ती 28 वर्षीय हरलाल के दोनों कटे हुए हाथ सफलतापूर्वक जुड़ गए हैं। एक बेहद जटिल और लंबी सर्जरी के बाद, मरीज अब स्थिर है और तेज़ी से ठीक हो रहा है।
गहरी रूप से घायल नसें और धमनियाँ
इस दुर्घटना ने हरलाल के जीवन में एक बड़ा संकट ला दिया। उसके दोनों हाथों में गंभीर चोट आई थी—उसका दाहिना हाथ पूरी तरह से कट गया था और केवल त्वचा की एक पतली परत से जुड़ा हुआ था, जबकि उसके बाएँ हाथ की हड्डी टूट गई थी और नसों और धमनियों में गंभीर चोटें आई थीं। उसे प्रारंभिक उपचार के लिए बाड़मेर जिला अस्पताल लाया गया, जहाँ उसे दो यूनिट रक्त आधान दिया गया और उसकी हालत स्थिर हो गई।
मरीज़ 18 सितंबर को पहुँचा
हरलाल को 18 सितंबर, 2025 को सुबह 4:15 बजे एम्स जोधपुर के ट्रॉमा सेंटर लाया गया। ट्रॉमा सर्जरी और प्लास्टिक सर्जरी विभागों की टीमों ने तुरंत कार्रवाई की, मरीज़ की हालत स्थिर की और उसे तुरंत ऑपरेशन थिएटर में स्थानांतरित कर दिया गया।
ऑपरेशन 10-12 घंटे तक चला
डॉ. प्रकाश चंद्र काला (प्लास्टिक सर्जरी विभागाध्यक्ष) के नेतृत्व में, यह ऑपरेशन लगभग 10 से 12 घंटे तक चला। सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं को माइक्रोस्कोप की मदद से फिर से जोड़ा गया। हड्डियों, टेंडन और अन्य संरचनाओं को फिर से सटीकता और कुशलता से बहाल किया गया। यह सर्जरी न केवल तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण थी, बल्कि इसके लिए अत्यंत सूक्ष्म कौशल की भी आवश्यकता थी।
इन डॉक्टरों ने सहयोग किया
इस जटिल सर्जरी में कई विभागों के विशेषज्ञों ने योगदान दिया। ट्रॉमा सर्जरी विभाग के डॉ. महावीर सिंह रोढ़ा, प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉ. दीप्ति कतरोलिया, डॉ. हर्षवर्धन, डॉ. संजना, डॉ. प्रवीण, डॉ. उत्कर्ष, डॉ. शीनम और डॉ. कार्तिकेयन, ऑर्थोपेडिक्स विभाग के डॉ. राजेश, डॉ. आमिर और डॉ. रितेश, तथा एनेस्थीसिया विभाग के डॉ. मनबीर, डॉ. नम्रता और डॉ. सोनल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नर्सिंग स्टाफ से तारा चंद और राधा ने भी योगदान दिया।
3-4 हफ़्तों में काम करने में सक्षम
चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि हरलाल अगले 3 से 4 हफ़्तों में सामान्य गतिविधियाँ फिर से शुरू कर सकेंगे। एम्स जोधपुर के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में जटिल हाथ सर्जरी के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षित संकाय, माइक्रोसर्जरी तकनीक और अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध हैं। यह मामला इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि कैसे समय पर, उचित और समन्वित चिकित्सा सहायता न केवल गंभीर रूप से घायल मरीज़ की जान बचा सकती है, बल्कि उनके अंगों को भी सुरक्षित रख सकती है।
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