Next Story
Newszop

चम्बल नदी को मिला है इतिहास का सबसे भयानक श्राप जो आज भी है जिन्दा, वीडियो में जाने क्यों इसमें स्नान को माना जाता है पाप ?

Send Push

भारत की नदियों को जीवनदायिनी माना जाता है, पर कुछ नदियाँ अपने साथ रहस्य, डर और किवदंतियाँ भी लेकर चलती हैं। ऐसी ही एक नदी है चंबल, जो मध्य भारत से निकलकर यमुना में मिलती है। यह नदी केवल अपने गहरे और बीहड़ घाटियों के लिए नहीं, बल्कि उससे जुड़ी एक खौफनाक और पुरातन श्राप की कहानी के लिए भी जानी जाती है। माना जाता है कि चंबल नदी किसी देवी या ऋषि की कृपा नहीं, बल्कि श्राप का परिणाम है — एक ऐसा श्राप, जो आज भी इस क्षेत्र की संस्कृति, समाज और प्रकृति में जीवित है।


चंबल नदी की उत्पत्ति: एक श्रापित शुरुआत

प्राचीन ग्रंथों और लोककथाओं के अनुसार, चंबल नदी की उत्पत्ति महाभारत काल में हुई थी। यह कथा जुड़ी है द्रौपदी के चीरहरण से। जब कौरवों ने द्रौपदी का अपमान किया और सभाभवन में खींचते हुए उसका चीरहरण करने लगे, तब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण को पुकारा। भगवान कृष्ण ने उसके चीर को बढ़ाकर उसकी लाज बचाई।कहा जाता है कि उसी समय द्रौपदी ने प्रतिज्ञा ली थी कि जो भूमि उसकी अस्मिता को तार-तार होते देख रही है, वहां न कभी शांति होगी, न प्रेम, और न ही पुण्य। वह भूमि शापित होगी — और वहीं जन्म हुआ चर्मण्यवती नदी का, जो आज चंबल नदी के नाम से जानी जाती है।

क्यों माना जाता है चंबल को अपवित्र?
भारत में गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी नदियाँ पवित्र मानी जाती हैं, उनके जल को अमृत तुल्य माना जाता है। पर चंबल एकमात्र प्रमुख नदी है जिसे लोग 'अपवित्र' मानते हैं। कोई इसमें स्नान नहीं करता, इसके जल को पूजा में नहीं उपयोग करता।इसका कारण वही श्राप है — द्रौपदी का श्राप। मान्यता है कि चंबल का जल उस लांछित नारी की पीड़ा और क्रोध से उत्पन्न हुआ था, इसलिए इसमें पुण्य नहीं बल्कि शोक और शाप का भाव समाहित है।

बीहड़ और डकैत: श्राप का दूसरा रूप
चंबल नदी के साथ एक और पहचान जुड़ी है — बीहड़ों की भूमि और डकैतों का साम्राज्य। चंबल घाटी दशकों तक डाकुओं के आतंक का केंद्र रही है। मान सिंह, फूलन देवी, मोहर सिंह जैसे कुख्यात डकैतों ने इसी क्षेत्र में वर्षों तक शासन किया।
स्थानीय लोग मानते हैं कि यह भी उसी श्राप का प्रभाव है — जहां न्याय और धर्म की हत्या हुई, वहां कानून का राज कैसे हो सकता है? यही कारण है कि बीहड़ों में जन्म लेने वाला व्यक्ति या तो संघर्ष करता है, या विद्रोह करता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण: डर और लोककथाओं का मेल
वैज्ञानिक और भूगर्भीय विशेषज्ञ चंबल नदी को भारत की सबसे अनछुई और जैवविविध नदियों में से एक मानते हैं। इसका पानी अपेक्षाकृत स्वच्छ है क्योंकि इसमें भारी उद्योगों का प्रभाव कम है। लेकिन इसके आसपास का भौगोलिक ढांचा — बीहड़, गहरी घाटियाँ और सूखे, खुरदरे इलाके — इस क्षेत्र को डरावना और रहस्यमय बनाते हैं।यहां की कठिन जीवनशैली, गरीबी और सामाजिक असमानताएँ भी इस इलाके को अलग पहचान देती हैं। पर जब ये वास्तविकताएँ लोककथाओं से मिलती हैं, तो बनती है चंबल की वह छवि जो लोगों को आकर्षित भी करती है और डराती भी है।

फिल्मों और साहित्य में चंबल की छवि
हिंदी सिनेमा में चंबल एक प्रतीक बन चुका है — विद्रोह, अन्याय, बंदूक और प्रतिशोध का प्रतीक। 'पान सिंह तोमर', 'बैंडिट क्वीन', 'शोले', और हालिया फिल्म 'सन ऑफ माणिक' जैसे कई चित्रों में चंबल की पृष्ठभूमि ने कथानक को जीवंत बना दिया है।साहित्य में भी चंबल एक रहस्यमयी पात्र के रूप में उभरती है — एक ऐसी नदी जो सिर्फ जल नहीं, बल्कि इतिहास, शोक और संघर्ष का वहन करती है।

आज की चंबल: बदलता समय, स्थिर रहस्य
आज चंबल क्षेत्र में विकास की कुछ किरणें पहुँची हैं। पुल बन रहे हैं, सड़कें आ रही हैं, और सरकार ने चंबल को एक 'इको-टूरिज्म जोन' के रूप में विकसित करने के प्रयास शुरू किए हैं। यहाँ पाए जाने वाले घड़ियाल, डॉल्फ़िन और दुर्लभ पक्षियों ने इसे जैविक दृष्टि से भी मूल्यवान बना दिया है।पर इसके बावजूद चंबल की छवि एक "शापित नदी" की बनी हुई है — एक रहस्यमयी इतिहास, एक डरावनी परंपरा, और एक गूंजती चेतावनी: अन्याय कभी माफ नहीं होता।

Loving Newspoint? Download the app now