कर्नाटक में पुलिस ने गुरदीप सिंह नाम के एक युवक को बेंगलुरु की व्यस्त सड़कों पर महिलाओं की सहमति के बिना उनके वीडियो बनाकर उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के आरोप में गिरफ्तार किया है.
पुलिस ने जून में ही इस मामले में ख़ुद संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया था. यह मामला सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए युवतियों के कई वीडियो और तस्वीरों के आधार पर दर्ज किया गया था.
एक युवती ने भी पुलिस को टैग करते हुए पोस्ट में कहा था कि उनका वीडियो बिना सहमति के 'बहुत अनुचित तरीके से शूट किया गया था', जिसके बाद उन्हें 'अश्लील संदेश' मिलने लगे.
बेंगलुरु में महिलाओं की सहमति के बिना वीडियो पोस्ट करने का यह पहला मामला नहीं है.
अभी छह हफ़्ते पहले ही, एक निजी कंपनी के अकाउंटेंट को पुलिस ने बेंगलुरु मेट्रो में सफ़र कर रही युवतियों की तस्वीरें खींचकर उन्हें @MetroChicks नाम से सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर पोस्ट करने के आरोप में गिरफ़्तार किया था.
दोनों मामलों में वीडियो बनाने का तरीका एक जैसा था.
पुलिस ने क्या बताया?बेंगलुरु के पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) लोकेश जगलासर ने बीबीसी हिंदी को बताया, "वीडियो स्लो मोशन में फ़िल्माए गए थे. ये वीडियो शाम को सड़क पर चल रही उन महिलाओं के थे, जो पार्टी में जाने वाले ड्रेस पहने हुए थीं. दोनों ही मामलों में बनाए गए वीडियो में कोई अंतर नहीं था."
महिला कार्यकर्ता और ग्लोबल कंसर्न्स इंडिया की बृंदा अडिगे ने दोनों मामलों को 'पितृसत्तात्मक स्त्री-विरोधी सोच वाली एक बीमार, विकृत मानसिकता' की अभिव्यक्ति बताया है.
युवती ने जब वीडियो पोस्ट करने वाले व्यक्ति से संपर्क करने की कोशिश की, तो उसे कोई जवाब नहीं मिला.
युवती ने बताया, "मैंने कई अकाउंट्स के ज़रिए इसकी रिपोर्ट करने की कोशिश की, लेकिन पता चला कि वह पोस्ट कम्युनिटी गाइडलाइन्स के अनुरूप है. मुझे तो यह भी नहीं पता कि वे गाइडलाइन्स क्या हैं."
उनकी परेशानी और बढ़ गई जब उन्होंने देखा कि उनके अकाउंट पर हर मिनट व्यूज़ बढ़ रहे थे. इंटरनेट पर लोग उनके अकाउंट को ढूंढ रहे थे.
उन्होंने कहा, "मुझे अश्लील संदेश मिलने शुरू हो गए थे."
उन्होंने यह भी कहा कि उनके जैसी और भी महिलाएं हैं, जिन्हें यह तक मालूम नहीं होगा कि उनके छिपकर वीडियो बनाए गए हैं.
उन्होंने कहा, "उस अकाउंट के 10 हज़ार फ़ॉलोअर्स हैं. सोशल मीडिया पर यह सब सामान्य बात नहीं होनी चाहिए. हमें आवाज़ उठानी चाहिए."
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@IndianWalk नाम के इस पेज पर सड़क पर चलती ऐसी महिलाओं के कई वीडियो हैं, जिन्हें यह तक पता नहीं होता कि उनकी रिकॉर्डिंग की जा रही है.
11 हज़ार से अधिक फॉलोअर्स वाला @IndianWalk अकाउंट 'स्ट्रीट फैशन' को कैप्चर करने का दावा करता है. इस अकाउंट पर बेंगलुरु की व्यस्त चर्च स्ट्रीट और ब्रिगेड रोड पर फ़िल्माए गए वीडियो पोस्ट किए जाते रहे हैं.
ऐसे कई वीडियो भी थे, जिनमें महिलाएं उस समय हैरान दिखीं जब उन्हें पता चला कि उनकी गतिविधियां कैमरे में रिकॉर्ड हो रही हैं.
मई 2025 में बेंगलुरु मेट्रो में रिकॉर्ड किए गए महिलाओं के वीडियो भी कुछ इसी तरह के थे.
उनका शीर्षक था: "नम्मा (हमारी) मेट्रो में सुंदर लड़कियां ढूंढना."
उस पेज को दिगंत चला रहे थे. कर्नाटक के हासन से आने वाले 27 वर्षीय दिगंत एक निजी कंपनी में काम करते थे. वह सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर 'Metro_Chicks' नाम से एक गुमनाम अकाउंट चलाते थे.
गिरफ्तारी के समय, दिगंत के अकाउंट पर 13 वीडियो अपलोड थे. इन वीडियो को 5900 से ज़्यादा बार देखा जा चुका था. दिगंत ने पुलिस को बताया कि सभी वीडियो उन्होंने खुद रिकॉर्ड किए थे.
उन पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 77 और 78 (पीछा करना) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करना) के तहत मामला दर्ज किया गया है.
यही धाराएं गुरदीप सिंह के ख़िलाफ़ भी लगाई गई हैं. पुलिस अधिकारी ने बताया, "दिगंत फिलहाल जमानत पर हैं."
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बृंदा अडिगे इस बात से बिल्कुल असहमत हैं कि ये वीडियो महिलाओं के पहनावे की वजह से बनाए जाते हैं.
वह कहती हैं, "यह बिल्कुल ग़लत है, क्योंकि अगर यह सच होता तो बच्चों के साथ दुर्व्यवहार क्यों होता या महिलाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार क्यों होता? इसका पहनावे या कपड़ों से कोई ताल्लुक नहीं है."
उनका कहना है कि वीडियो सिर्फ़ कम कपड़े पहने महिलाओं के ही नहीं बनाए जाते, "पूरे कपड़े पहने महिलाओं को भी नहीं बख्शा जाता. यहाँ तक कि बुर्का पहनने वालों को भी नहीं छोड़ा जाता."
गुरदीप सिंह के मामले पर बात करते हुए बृंदा अडिगे ने कहा, "मुझे लगता है कि इसका कपड़ों से उतना लेना-देना नहीं है, जितना किसी बेरोज़गार के पैसे कमाने की कोशिश से है. क्योंकि हम जानते हैं कि ये तस्वीरें डार्क वेब पर महंगी बिकती हैं."
हालांकि, पुलिस को अभी तक इस केस का डार्क वेब से कोई संबंध नहीं मिला है.
अडिगे कहती हैं कि मौजूदा साइबर अपराध कानून कड़े नहीं हैं, क्योंकि पहली बार अपराध करने पर सज़ा कम मिलती है.
उन्होंने बताया, "पहली बार अपराध करने पर सिर्फ़ एक से तीन साल की सज़ा होती है. तो क्या हमें अपराधी को उचित सज़ा देने के लिए दूसरी बार अपराध करने तक इंतज़ार करना होगा?"
अल्टरनेटिव लॉ फ़ोरम (एएलएफ) की एडवोकेट पूर्णा रविशंकर ने बीबीसी हिंदी को बताया, "समस्या सिस्टम में है, जो इस तरह की हिंसा को गंभीरता से नहीं लेता. व्यवस्था की उदासीनता ऐसे अपराधों को जारी रहने का रास्ता देती है. हम जानते हैं कि 'मेट्रो क्लिक्स' मामले में पुलिस ने बहुत तेज़ी से कार्रवाई की. जन आक्रोश के कारण तुरंत ही अकाउंट को बंद कर दिया गया."
एक अन्य युवा अधिवक्ता प्रज्वल आराध्या ने बीबीसी हिंदी को बताया, "हमारे यहाँ मानसिक उत्पीड़न (मेंटल ट्रॉमा) के लिए मुकदमा दायर करने की प्रथा नहीं है. और डार्क वेब पर लगाम लगाने के लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है. लोग कहते हैं कि समय के साथ सब भूल जाएँगे, लेकिन किसी को यह एहसास नहीं है कि इंटरनेट कभी कुछ नहीं भूलता."
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)
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