Top News
Next Story
Newszop

गुरुदत्त का पाली हिल का बंगला नंबर 48, जो कभी 'घर' ना बन सका

Send Push
SIMON & SCHUSTER PUBLISHER 1960 में बनी फ़िल्म चौदहवीं का चांद में वहीदा रहमान और गुरुदत्त

फ़िल्में बनाने वाले पर्दे पर सपने गढ़ते हैं. मगर अक्सर ख़ुद उनका सपना एक घर का ही होता है. हर फ़िल्मस्टार की एक तमन्ना होती है- ‘एक बंगला बने न्यारा सा.’

मुंबई के पाली हिल का बंगला नंबर 48 जिन लोगों ने देखा वो उसकी भव्यता कभी भूल नहीं पाए. वो महान फ़िल्मकार गुरुदत्त के सपनों का घर था. गुरु और गीता दत्त का आलीशान, ऐशो-आराम वाला बंगला नंबर 48.

लेकिन ये बंगला 'घर' न बन सका. और फिर, जितनी शिद्दत से गुरुदत्त ने ये बंगला बनवाया था, उतने ही जुनून से एक दोपहर इसको विध्वंस भी कर दिया था.

गुरुदत्त पर अपनी किताब लिखते वक़्त उनकी बेमिसाल फ़िल्मों के साथ-साथ उनकी ज़िंदगी के इस पहलू ने मुझे सबसे ज़्यादा सोच में डाला था. बंगले की ये कहानी गुरुदत्त के जीवन की भी दास्तान है.

image BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

1950 के दशक में मुंबई (तब बंबई) के बांद्रा (पश्चिम) में पाली हिल घने पेड़ों वाला इलाक़ा था.

ढलवां पहाड़ी पर स्थित होने की वजह से ही इसका नाम पाली हिल पड़ा था. उस दौर के पाली हिल में ज़्यादातर लोग कॉटेज या बंगलों में रहते थे.

बंगलों के मालिक शुरू में ब्रिटिश, पारसी और कैथोलिक लोग थे. बाद में दिलीप कुमार, देव आनंद और मीना कुमारी जैसे हिन्दी फ़िल्म स्टार्स ने वहां रहना शुरू किया.

वक्त बीतने के साथ साथ पाली हिल एक प्रभावशाली और महंगे इलाक़े में विकसित हो गया.

इन सबसे दूर 1925 में बंगलौर के पास पन्नमबुर में जन्मे गुरुदत्त पादुकोण का बचपन कठिन आर्थिक संघर्ष में बीता. परेशानियों का मानो कोई अंत ही नहीं था.

उनकी छोटी बहन ललिता लाजमी ने मुझे बताया था, ''पूरे बचपन हमारे पास कोई ढंग का घर नहीं था. हमारा बड़ा परिवार संसाधनों की कमी से लगातार जूझता रहता. आर्थिक रूप से वो ज़िंदगी कठिन थी.''

देव आनंद का घर और गुरुदत्त का सपना image SIMON & SCHUSTER PUBLISHER देव आनंद ने गुरुदत्त पर दांव लगाकर उन्हें अपनी फ़िल्म 'बाज़ी' का निर्देशन सौंप दिया था

उस समय घर के बारे में सोचना तक गुरुदत्त के लिए दूर का सपना लगता था. कलकत्ता, अल्मोड़ा और पूना में शुरुआती जीवन के साल बिताने बाद क़िस्मत उन्हें खींच कर मुंबई ले आई थी.

यहां गुरुदत्त की मुलाकात हुई अपने दोस्त एक्टर देव आनंद से. उनकी दोस्ती कुछ साल पहले पूना के प्रभात स्टूडियोज़ में हुई थी जब देव भी फिल्मों में काम करने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे.

देव आनंद ने अपनी आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ' में लिखा, ''हमने एक दूसरे से वादा किया था कि जिस दिन मैं प्रोड्यूसर बनूंगा, मैं गुरु को बतौर डायरेक्टर लूंगा और जिस दिन वो किसी फ़िल्म का डायरेक्शन करेंगे वो मुझे हीरो कास्ट करेंगे.''

देव आनंद को अपना वादा याद रहा. गुरुदत्त पर दांव लगाकर उन्होंने अपनी फ़िल्म 'बाज़ी' का निर्देशन उन्हें दिया. ये गुरु की पहली फ़िल्म थी.

फ़िल्मस्टार देव आनंद का खूबसूरत घर पाली हिल में था. फ़िल्म बनने के दौरान गुरुदत्त अक्सर देव के पाली हिल बंगले में आने जाने लगे.

गुरुदत्त पर अपनी किताब 'गुरुदत्त एन अनफिनिश्ड स्टोरी' की रिसर्च के समय, गुरुदत्त की बहन और मशहूर आर्टिस्ट ललिता लाजमी ने मुझे बताया था, ''वो देव आनंद के बंगले की बार-बार बेहद तारीफ़ करते. हम बैठ कर उनकी बातें बड़े चाव से सुनते. वो कहते थे घर तो ऐसा ही होना चाहिए. अपना घर होने की ललक हम सबके अंदर थी क्योंकि घर कभी था ही नहीं.''

देव आनंद के घर आने-जाने के दौरान ही गुरु ने दिल में ये हसरत पाल ली थी कि अगर ज़िंदगी ने मौक़ा दिया तो वो पाली हिल में ही अपना बंगला बनवाएंगे. वो उनके सपनों का घर होगा.

'मैं तुम्हारे भाई से शादी करने जा रही हूं, हम मिलकर अपना घर बनाएंगे' image YASEER USMAN लेखक के साथ गुरुदत्त की बहन ललिता लाजमी

इसी फ़िल्म ने बंगले की हसरत दी और इसी फ़िल्म 'बाज़ी' के निर्माण के दौरान प्यार ने भी दस्तक दी.

स्ट्रगलिंग निर्देशक गुरुदत्त और उस ज़माने की स्टार प्लेबैक सिंगर गीता रॉय को एक दूसरे से प्यार हो गया था. गुरु का परिवार भी गीता पर जान छिड़कता था.

गुरुदत्त की बहन ललिता लाजमी ने मुझे बताया, ''गीता स्टार थीं. लेकिन सादगी पसंद थीं. हमारी दोस्ती हो गयी थी. वो मेरे बहुत करीब थीं. वो अपने परिवार के साथ एक बंगले में रहती थीं जिसका नाम 'अमिया कुटीर' था. मुझे याद है एक रात अपने बंगले की बालकनी में खड़े होकर गीता ने मुझे बताया था, 'मैं तुम्हारे भाई से शादी करने जा रही हूं. हम मिलकर अपना घर बनाएंगे."

26 मई 1953 को दोनों की शादी हुई. शादी के वक्त भी गीता रॉय गुरुदत्त से ज़्यादा लोकप्रिय थीं.

प्यार में डूबीं स्टार सिंगर गीता रॉय ने अपना नाम बदलकर गीता दत्त कर लिया था. हालांकि जैसे-जैसे ज़िंदगी आगे बढ़ी उन्हें अहसास होने लगा था कि बदलाव महज़ उनके नाम में ही नहीं हुआ था. उनके जीवन में बहुत कुछ बदल चुका था.

गुरुदत्त चाहते था कि गीता अब सिर्फ़ उनकी फिल्मों में ही गाएं. गुरु का करियर भी बेहद तेज़ी से ऊपर गया.

'आर पार', 'मिस्टर एंड मिसेज़ 55' और फिर 'प्यासा' की कामयाबी से कुछ ही साल में उनकी गिनती हिंदी सिनेमा के कामयाब फ़िल्मकारों में होने लगी.

जबकि गीता का करियर शादी के बाद थम सा गया था. ललिता लाजमी ने मुझे बताया था कि गीता करियर पर ज़्यादा ध्यान देना चाहती थीं मगर गुरु चाहते थे कि वो घर-परिवार-बच्चों का ध्यान रखें और गीत सिर्फ़ उनकी फ़िल्मों में ही गाएं.

गीता को ये बात चुभती थी. दोनों में इस बात पर झगड़े होते रहे लेकिन शुरुआत में दोनों उसे सुलझा भी लेते थे.

जब ख़्वाब हक़ीक़त बन गया image SIMON & SCHUSTER PUBLISHER गुरुदत्त पत्नी गीता दत्त और बच्चों के साथ

फिर एक दिन गुरुदत्त ने अख़बार में विज्ञापन देखा कि पाली हिल में एक पुराना बंगला बिकाऊ है.

उन्होंने इसे एक लाख रुपए में खरीद लिया जो उस समय बहुत बड़ी रकम थी. बंगला नंबर 48, पाली हिल: गुरुदत्त के ख़्वाब का ऐड्रेस था जो अब हक़ीक़त बन गया था.

ये बंगला क़रीब तीन बीघा ज़मीन में फैला हुआ था. घने पेड़ों और बग़ीचों से घिरा हुआ था.

देव आनंद के बंगले से भी बड़ा. गुरु और गीता ने इसे घर बनाने के लिए काफ़ी समय और धन खर्च किया. कश्मीर से लकड़ी मंगवाई गयी, लंदन से कालीन और बाथरूम के लिए खालिस इटैलियन संगमरमर.

गुरुदत्त की मां वासंती ने अपनी किताब 'माई सन गुरुदत्त' में लिखा था, ''पाली हिल के बंगले को बड़े बग़ीचे और सामने लॉन के साथ सुंदर मकान का रूप दिया गया. सीढ़ियों से पश्चिम की तरफ से समंदर और सूर्यास्त नज़र आता था. उसने तमाम तरह के कुत्ते, सुंदर चिड़िया, एक स्यामी बिल्ली और एक बंदर भी खरीदा था. वो एक मुर्गी फार्म भी शुरू करना चाहता था.''

दूसरे बेटे अरुण के जन्म के बाद गुरुदत्त और उनका परिवार अपने खार वाले फ्लैट से पाली हिल के बंगला नंबर 48 आ गया था.

खुशियों से भरे इस परिवार में गुरु-गीता के पास दो बच्चे थे, कामयाबी और सुखी जीवन की तमन्ना थी.

शुरुआती वर्षों में ये बंगला सैकड़ों कहानियों, फिल्मों पर चर्चा, पार्टियों और संगीतमय शामों का गवाह बना. लेकिन इन वर्षों में गुरु और गीता के बीच के समीकरण काफ़ी बदल चुके थे.

अब गुरुदत्त स्टार थे और गीता पिछड़ गई थीं image SIMON & SCHUSTER PUBLISHER गुरुदत्त की पत्नी गीता दत्त, जिनसे उनके रिश्ते बिगड़ गए थे

गुरुदत्त अब स्टार निर्देशक थे जबकि इन चंद वर्षों में गीता का स्टारडम तेज़ी से नीचे आया था.

इसी दौर में लता मंगेशकर और आशा भोंसले तेज़ी से प्लेबैक सिंगिंग में ऊपर आयी थीं. गीता इस रेस में पिछड़ गई थीं.उन्हें महसूस होने लगा था मानो वो गुज़रे ज़माने की सिंगर हो चुकी हैं.

वहीं गुरुदत्त काम में डूबे रहते थे. अब उनका ख़ुद का स्टूडियो था और लगातार फ़िल्मों का निर्माण करना था.

उनके पास गीता के लिए ज़्यादा समय नहीं था. अभिनेत्रियों के साथ उनके संबंधों की चर्चा भी फिल्मी गलियारों में खूब होने लगी थीं.

मेरी किताब 'गुरुदत्त अ अनफिनिश्ड स्टोरी' के लिए दिए गए इंटरव्यू में ललिता लाजमी ने मुझे बताया था, ''गीता शक्की स्वभाव की थीं और बेहद पज़ेसिव भी. एक फिल्मकार या अभिनेता कई अभिनेत्रियों के साथ काम करता है लेकिन गीता के लिए ये स्वीकार करना मुश्किल हो रहा था.''

झगड़े बढ़ते ही गए. अकेलेपन से ज़्यादा स्टारडम खोने के अहसास ने भी गीता को घेर लिया था. निजी और प्रोफेशनल कुंठाओं से निपटने में नाकाम होकर गुरुदत्त ने शराब में शांति तलाश ली.

गुरुदत्त की मां वासंती ने अपनी किताब ‘माई सन गुरुदत्त' में लिखा, ''घर तो बना लिया मगर गुरुदत्त व्यस्त होने के कारण अपने ख़ुद के घर पर ध्यान नहीं दे सका.''

image SIMON & SCHUSTER PUBLISHER गुरदत्त वहीदा रहमान के साथ

बंबई के प्रमुख रियल एस्टेट में सबसे खूबसूरत बंगलों में से एक इस घर में अब उन्हें नींद तक नहीं आती थी.

गुरुदत्त के मित्र लेखक बिमल मित्र की किताब ‘बिनिद्र’ में दर्ज है कि गुरुदत्त ने एक बार उनसे कहा था, ''मैं हमेशा अपने मकान में खुश रहना चाहता था. मेरा मकान पाली हिल कि सभी इमारतों में सबसे ज़्यादा सुंदर है. उस मकान में बैठकर लगता ही नहीं कि आप बंबई में हैं. वो बग़ीचा, वो माहौल और कहां मिलेगा मुझे? इसके बावजूद, मैं उसमें ज़्यादा समय तक नहीं रुक पाता.''

अक्सर सुबह-सुबह, नींद भरी आंखों के साथ वो अपने स्टूडियो पहुंच जाते. यहां एक छोटे से कमरे में वो चुपचाप लेट जाते और यहीं उन्हें नींद आ पाती थी.

कभी सुकून की तलाश में वो बंबई से भागकर लोनावला में अपने फार्महाउस चले जाते और कई दिन वहां खेती करते.

बंगले में भूत रहता है! image SIMON & SCHUSTER PUBLISHER के. आसिफ की फिल्म 'लव एंड गॉड' में अभिनय करते गुरुदत्त. इसमें वो मजनूं की भूमिका निभा रहे थे. लेकिन फिल्म पूरी होने से पहले ही उनका निधन हो गया

गुरु और गीता के रिश्ते में दूरियां बढ़ती रहीं. आपसी रिश्ते को सुधारने के लिए बतौर हीरोइन गीता को लेकर निर्देशक गुरुदत्त ने एक बड़ी फ़िल्म 'गौरी' की शुरुआत की.

लेकिन शूटिंग के दौरान ही दोनों के बीच झगड़ा इतना बढ़ा कि 'गौरी’ को शुरुआती शूटिंग के बाद गुरुदत्त ने रद्द कर दिया. ये दोनों के रिश्ते में बड़ा झटका था. तनाव में गीता लगातार अंधविश्वासी होती गयीं. अपने ख़राब होते रिश्ते के लिए उन्होंने बंगले को दोष देना शुरू कर दिया.

कहीं अंतर्मन में उनका मानना था कि पाली हिल के पॉश इलाके के इस बंगले में शिफ़्ट होने के बाद से ही उनके और गुरु के रिश्ते में कभी ना भरने वाली दरार पैदा हो गयी थी.

वो ये यक़ीन करने लगीं कि बंगला नंबर 48 के कारण ही उनके वैवाहिक जीवन में अपशकुन हुआ है.

गुरु-गीता की शुरुआती मुलाक़ातों से लेकर अंत तक रिश्ते की गवाह रही ललिता लाजमी ने मुझे बताया था, ''गीता मानने लगी थीं कि बंगला भुतहा था. घर के लॉन में एक ख़ास तरह का पेड़ था और वो कहती थीं कि उस पेड़ पर भूत रहता है जो उनकी शादी को बर्बाद कर रहा है. उनके विशाल ड्रॉइंग रूम में बुद्ध की एक मूर्ति भी थी. उससे भी उन्हें कुछ आपत्ति थी. दोनों में बहुत झगड़े होते थे. वो बार बार गुरु से वो बंगला छोड़कर कहीं और रहने की बात कहती थीं.''

image SIMON & SCHUSTER PUBLISHER गीता दत्त के साथ अच्छे दिनों में गुरुदत्त

ये ख़याल ही गुरुदत्त के लिए दिल तोड़ देने वाला था. ये उनके सपनों का घर था. मगर गुरुदत्त को इस कड़वी सच्चाई का अहसास होने लगा था कि ये वो घर नहीं बन पाया जिसकी उन्हें चाहत थी.

ललिता लाजमी ने अपने इंटरव्यू में मुझे बताया, ''जो गीता चाहती थीं गुरुदत्त आख़िरकार बंगला छोड़ने के लिए सहमत हो गये. मगर उनका दिल टूट गया. वो गीता को ही दोष दिया करते थे.”

तनाव इतना बढ़ा कि जिस बंगले में रहते हुए गुरुदत्त ने भारतीय सिनेमा की यादगार फिल्मों को रचा, उसी बंगले में रहते हुए उन्होंने दो बार ख़ुदकुशी की कोशिश भी की.

ललिता लाजमी ने मुझे बताया था कि बड़ी मुश्किल से दोनों बार गुरुदत्त की जान बचाई जा सकी. उन्होंने बताया था, ''कई बार गीता से झगड़ा होता तो वो मुझे बुलाया करते थे. मैं आधी रात को भागकर उनके पास पहुँच जाती. मगर वो चुपचाप बैठे रहते थे. मुझे लगता था कि वो कुछ कहना चाहते हैं लेकिन वो बस ख़ामोश बैठे रहते. कभी कुछ नहीं कहा. कभी भी नहीं.''

दो बार ख़ुदकुशी की कोशिश करने वाले इंसान ने इसके बारे में कभी परिवार से बात तक नहीं की थी. फिर साल 1963 में अपने जन्मदिन पर गुरुदत्त ने एक अजीब निर्णय लिया.

आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है. अगर आप भी तनाव से गुज़र रहे हैं तो भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 से मदद ले सकते हैं. आपको अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भी बात करनी चाहिए.

'बंगले को तोड़ने दो! मैंने ही उनसे कहा है' image SIMON & SCHUSTER PUBLISHER गुरदत्त और मधुबाला फिल्म 'मिस्टर एंड मिसेज़ 55' एक दृश्य में

उस दोपहर गीता बंगले में सो रही थीं जब उन्हें कुछ शोर सा सुनाई दिया. उन्होंने देखा कि कुछ मज़दूर बंगले की दीवार तोड़ रहे थे. उन्होंने तुरंत गुरुदत्त को स्टूडियो में फोन किया.

गुरुदत्त ने गीता को बताया, ''उन्हें तोड़ने दो गीता. मैंने ही उनसे कहा है. हम कुछ दिन होटल में रहेंगे. मैंने एक कमरा पहले ही बुक करा लिया है.''

गीता और उनके बच्चों ने सोचा था कि गुरु शायद कुछ कंस्ट्रक्शन का काम करा रहे हैं और पूरा होते ही वो सब वापस इस बंगले में आ जाएंगे.

गुरुदत्त ने ये सब इतनी बेफिक्री से बोला जैसे किसी फ़िल्म की शूटिंग पूरी हो जाने के बाद उसका सेट गिराया जा रहा हो. इस बार ये सेट फिल्मी नहीं था.

वो बंगला ढहाया जा रहा था जिसके 'घर' बनने का ख्वाब उन्होंने देखा था. कुछ ही दिन में बंगला नंबर 48 ज़मींदोज़ कर दिया गया. बंगले के मलबे में कमरों की दीवारें थीं, टूटा हुआ नीला संगमरमर था, बिखरी हुई लकड़ियां और प्लास्टर के टुकड़े थे. मगर इनके साथ साथ एक सपने के टूटे हुए टुकड़े भी थे.

गुरुदत्त की बहन ललिता लाजमी ने मुझे बताया था, "मुझे याद है उस दिन उनका जन्मदिन था. वो उस बंगले से प्यार करते थे और जब उसे गिराया गया तो ना जाने उनके दिल पर क्या बीती होगी.''

किताब 'बिनिद्र' में दर्ज है कि उन्होंने अपने दोस्त और 'साहिब, बीबी और गुलाम' के लेखक बिमल मित्र से कहा था कि उन्होंने अपना बंगला पत्नी गीता की वजह से तुड़वाया.

बंगला नंबर 48 के ढहने के बाद गुरुदत्त का जीवन और परिवार की ख़ुशियां भी हर गुज़रते दिन के साथ ढहती चली गई थीं.

बंगले से निकलने के बाद गीता और बच्चों के साथ गुरुदत्त पाली हिल में ही दिलीप कुमार के बंगले के सामने आशीष नाम की बिल्डिंग में शिफ्ट हो गए थे. लेकिन उनका और गीता का रिश्ता नहीं सुधरा.

कुछ समय बाद अपने बच्चों को लेकर गीता बांद्रा में एक दूसरे किराए के मकान में चली गयीं.

image SIMON & SCHUSTER PUBLISHER गुरुदत्त की अंत्येष्टि के दौरान राज कपूर, देव आनंद और फिल्म जगत के अन्य लोग

अपने भव्य बंगले की यादों को पीछे छोड़कर गुरुदत्त बंबई की पेडर रोड पर आर्क रॉयल अपार्टमेंट में अकेले रहने लगे.

'माई सन गुरुदत्त' में गुरुदत्त की मां ने लिखा, ''गुरु के सितारे गर्दिश में थे. उन्होंने अपना सुंदर बंगला नष्ट कर दिया. जब से बंगला ढहाया गया था, गुरु का पारिवारिक जीवन भी टुकड़े-टुकड़े होता चला गया."

तक़रीबन एक साल बाद, 10 अक्तूबर की सुबह इसी फ्लैट में गुरुदत्त अपने कमरे में मृत पाए गए.

उन दिनों को याद करते हुए ललिता लाजमी ने अफ़सोस के साथ मुझसे कहा था कि अगर खुशहाल घर बना होता तो उनके भाई का अंत इतनी जल्दी ना होता. गुरुदत्त अपनी फिल्मों से अमर हो गए लेकिन बंगला नंबर 48 का अब नामोनिशान तक नहीं है .

गुरुदत्त ने कहा था, ''घर ना होने की तकलीफ़ से, घर होने की तकलीफ़ और भयंकर होती है.''

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, और व्हॉट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

image
Loving Newspoint? Download the app now