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मायावती योगी सरकार की प्रशंसा और अखिलेश पर निशाना साध क्या संकेत दे रही हैं?

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BSP गुरुवार की रैली में मायावती ने समाजवादी पार्टी (सपा) पर निशाना साधा, तो वहीं यूपी की बीजेपी सरकार का आभार जताया

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती ने नौ अक्तूबर को प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रैली की.

लोकसभा चुनाव, 2024 में हार के बाद मायावती की इस रैली को उनके शक्ति प्रदर्शन के तौर पर भी देखा जा रहा है.

लखनऊ में विधानसभा भवन से तक़रीबन 10 किलोमीटर दूर खचाखच भरे कांशीराम स्मारक स्थल से उन्होंने अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं को संबोधित किया.

मायावती ने इस दौरान समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की आलोचना की लेकिन यूपी की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार का आभार जताया.

सपा-कांग्रेस पर निशाना और बीजेपी का आभार

मायावती ने मंच से एक बार फिर साफ़ किया कि 2027 का विधानसभा चुनाव बीएसपी अकेली लड़ेगी.

राज्य में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में होने के साथ ही इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं. मायावती ने दोनों दलों पर तीखा हमला बोलकर यह संदेश देने की कोशिश की कि बीएसपी किसी भी 'मोर्चे' या 'गठबंधन' का हिस्सा नहीं बनने जा रही है.

बीबीसी से इस मुद्दे पर लखनऊ स्थित राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान ने कहा, ''मायावती का आज का बयान बीएसपी से ज़्यादा बीजेपी के लिए फ़ायदेमंद है क्योंकि विपक्ष के वोट के बिखराव से बीजेपी को लाभ मिलेगा. लेकिन इस वक़्त मायावती का निशाना बिहार चुनाव है.''

शरत प्रधान कहते हैं, "अपने भाषण में कांग्रेस को 'नाटकबाज़' और सपा को 'दलित-पिछड़ों का उत्पीड़क' बता कर यह साफ़ किया है कि बीएसपी का फ़ोकस अपने पुराने जनाधार की वापसी पर ही रहेगा."

मायावती ने अपनी रैली में कहा कि समाजवादी पार्टी जब सरकार में रहती है, तब न उन्हें पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) याद आता है, न कांशीराम की जयंती और न ही उनकी पुण्यतिथि याद आती है.

हालांकि, कांग्रेस नेता नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी इससे इनकार करते हैं. वो कहते हैं कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने कांशीराम की पुण्यतिथि पर होर्डिंग लगाए हैं. नसीमुद्दीन सिद्दीक़ी पहले बीएसपी में थे.

वो कहते हैं, ''कांशीराम जी के विचार सभी दलित शोषित समाज के लिए हैं. कांग्रेस ने विचार गोष्ठी भी की है.''

मायावती ने इस रैली में बीजेपी की तारीफ़ भी की है.

उन्होंने रैली में कहा, "मैंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री (योगी आदित्यनाथ) को लिखित चिट्ठी के ज़रिए कहा और आग्रह किया कि कांशीराम स्मारक में एंट्री टिकटों के पैसे को स्मारक और पार्कों के रखरखाव पर लगाया जाए."

"उत्तर प्रदेश की वर्तमान बीजेपी सरकार ने इस मामले को संज्ञान में लेकर हमसे वादा किया कि जो भी पैसा टिकटों के ज़रिए आता है, वह इन स्थलों के रखरखाव के लिए लगाया जाएगा इसलिए हमारी पार्टी उनके प्रति आभार व्यक्त करती है."

इस बीच अखिलेश यादव ने बिना किसी का नाम लिए एक्स पर एक पोस्ट की.

उन्होंने लिखा, "क्योंकि 'उनकी' अंदरूनी सांठगांठ है जारी, इसीलिए वो हैं ज़ुल्म करने वालों के आभारी."

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image BSP समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने 2019 का लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था और तब यह गठबंधन यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से सिर्फ़ 15 सीटें जीत पाया था कभी तल्ख़ रिश्ते और कभी साथ में चुनाव

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच रिश्ते तल्ख़ रहे हैं. हालांकि, दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव भी लड़ चुकी हैं.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता उदयवीर सिंह ने अखिलेश यादव की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि बीएसपी बीजेपी को राजनीतिक संकट से बचाना चाहती है.

उन्होंने कहा, ''बीजेपी पर जब भी संकट आता है तो वो कौन सा बटन दबाते हैं कि बीएसपी की चाल बदल जाती है.''

उदयवीर का कहना है, "जब चीफ़ जस्टिस पर हमला हो रहा है, रायबरेली में दलित की जान ले ली गई ऐसे में बीजेपी की तारीफ़ करना तार्किक नहीं लगता है. समाजवादी पार्टी की आलोचना वो पुरानी बातों को लेकर कर रही हैं.''

हालांकि, समाजवादी पार्टी के साथ बीएसपी का 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन था. इसके बाद मायावती और मुलायम सिंह के बीच सुलह हो गई थी. मायावती ने सपा के लिए प्रचार भी किया था.

लेकिन गुरुवार की रैली में मायावती ने कहा कि गठबंधन के अनुभव बीएसपी के लिए फ़ायदेमंद नहीं रहे. 1993 और 1996 के चुनावों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब भी बीएसपी ने दूसरे दलों के साथ हाथ मिलाया, पार्टी की सीटें और वोट शेयर दोनों घटे थे.

1993 के चुनाव में बीएसपी ने सपा और 1996 में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था.

अपने कार्यकर्ताओं से मायावती ने कहा, ''गठबंधन में बीएसपी का वोट तो दूसरे दलों को ट्रांसफ़र हो जाता है, लेकिन दूसरी पार्टियों का वोट उनकी पार्टी को नहीं मिलता है.''

लेकिन समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता उदयवीर सिंह ने कहा, ''2019 के गठबंधन के इस चुनाव में बीएसपी के 10 सांसद जीते तो समाजवादी पार्टी के सिर्फ पांच ही लोकसभा तक पहुंच पाए. इस वक़्त समाजवादी पार्टी दलित शोषित और वंचित की लड़ाई के लिए कांग्रेस के साथ है, पहले भी कई दलों से इस वजह से गठबंधन किया था.'

image BBC/TARIQ KHAN रैली में मौजूद भीड़

मायावती के भाषण के बाद अखिलेश यादव के ट्वीट पर बीजेपी के प्रवक्ता मनीष शुक्ला कहते हैं, ''अखिलेश यादव ये जवाब दें कि आखिरकार कांशीराम के नाम पर बने कासगंज ज़िले का नाम क्यों बदल दिया.''

पार्कों के रखरखाव पर मायावती की तारीफ़ पर मनीष शुक्ला कहते हैं, ''आभार तो अखिलेश यादव को भी जताना चाहिए. उनके लोकार्पण किए गए अधूरे प्रोजेक्ट को बीजेपी ने पूरा किया है क्योंकि बीजेपी जनहित की राजनीति करती है.''

हालांकि बीजेपी के नेता समाजवादी पार्टी के उन आरोपों से इनकार करते हैं कि मायावती से उनका कोई अंदरूनी समझौता है.

मायावती बीजेपी के समर्थन से 1995,1997, 2002 में तीन बार प्रदेश की मुख्यमंत्री बन चुकी हैं.

image BBC 'मायावती के बयान के दूसरे मायने नहीं निकाले जाने चाहिए'

मायावती की सपा-कांग्रेस से नाराज़गी के बारे में बीएसपी की राजनीति को कई साल से कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सैयद क़ासिम कहते हैं, ''मायावती के भाषण में अखिलेश यादव पर प्रहार और बीजेपी तथा योगी सरकार को धन्यवाद के दूसरे मायने नहीं निकाले जाने चाहिए क्योंकि रैली कांशीराम पर केंद्रित थी."

मायावती ने कांग्रेस को भी निशाना बनाया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने देश में इमरजेंसी लगाकर संविधान और बाबा साहेब आंबेडकर के आदर्शों का अपमान किया था.

मायावती ने कहा कि अब कांग्रेस नेता संविधान की प्रति लेकर "नाटकबाज़ी" कर रहे हैं.

इसके जवाब में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश के प्रभारी अविनाश पांडे ने बीबीसी से कहा, ''इस देश को बाबा साहेब की अगुआई में संविधान कांग्रेस ने दिया है. पार्टी के नेता राहुल गांधी ने संविधान को बचाने के लिए 10 हज़ार किलोमीटर की पद यात्रा की है. जब इंडिया गठबंधन बन रहा था तो मायावती कहां थीं. इस प्रकार के बयान सिर्फ़ बीजेपी को फ़ायदा पहुंचाने के लिए है.''

मायावती के भाषण पर लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार रचना सरन कहती हैं कि बीएसपी को असल डर कांग्रेस और सपा से ही है.

उन्होंने कहा, ''दलित मतदाता बीएसपी से पहले कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा है. इसलिए उनको डर है कि एक बार ये कांग्रेस की तरफ़ गया तो पलट कर आना मुश्किल है.''

सपा के पीडीए फॉर्मूला का प्रदर्शन भी लोकसभा में अच्छा रहा है. इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये भी एक वजह हो सकती है कि मायावती अपने समर्थकों से दोनों ही पार्टियों से समान दूरी बनाने के लिए कह रही हैं.

राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान कहते हैं, ''दलित वोटर अब कांग्रेस की तरफ़ लौट रहे हैं इसलिए भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी, दोनों इस बात से चिंतित हैं.''

मायावती राज्य की चार बार मुख्यमंत्री बनीं लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं कर पाईं.

मायावती की इस रैली को उत्तर प्रदेश की राजनीति में फिर से सक्रिय होने के रूप में भी देखा जा रहा है.

बीएसपी अब उस स्थिति में नहीं है जो 2007 में थी, जब उसने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी. लेकिन लखनऊ की इस भीड़ ने यह संकेत ज़रूर दिया कि मायावती का प्रभाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है.

उनके समर्थकों में अब भी भावनात्मक जुड़ाव है. प्रदेश में दलित समुदाय का बड़ा तबका अब भी उनको नेता के तौर पर देखता है.

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image BSP बीएसपी से निष्कासन के बाद कुछ महीने पहले ही आकाश आनंद की पार्टी में वापसी हुई है भविष्य की रणनीति-आकाश आनंद?

मायावती की रैली में आकाश आनंद को ख़ास जगह दी गई है. इस रैली में मायावती के साथ बसपा के राष्ट्रीय संयोजक आकाश आनंद का भी संबोधन विशेष रूप से चर्चा में रहा है.

आकाश आनंद ने कहा कि आरक्षण का पूरा लाभ समाज को नहीं मिल पा रहा है. उन्होंने दावा किया कि केवल बसपा सरकार ही दलितों और पिछड़ों को उनका हक़ दिला सकती है.

आकाश आनंद ने अपने भाषण में कहा, "यूपी की जनता को मायावती की ज़रूरत है. जातिवाद से पीड़ितों को मान-सम्मान की ज़िंदगी मायावती ने दी है."

इस रैली में आईं लखनऊ की पूजा कहती हैं, ''मायावती और आकाश आनंद दोनों ही पार्टी के नेता हैं. हम तो चाहते हैं कि 2027 में बहनजी की सरकार बन जाए.''

विश्लेषक मानते हैं कि आकाश आनंद को सामने लाकर मायावती पार्टी में एक पीढ़ीगत बदलाव का संदेश दे रही हैं क्योंकि पिछले 13 साल में पार्टी का जनाधार कमज़ोर हुआ है.

2012 के बाद से बीएसपी की विधानसभा में सीट कम हो रही है. 2022 में उसे केवल एक सीट मिली है.

ऐसे में संगठन को पुनर्जीवित करने के लिए मायावती अब नए चेहरों पर भरोसा दिखा रही हैं. हालांकि आकाश आनंद को मायावती कई बार पार्टी के पदों से हटा भी चुकी है.

मायावती की बुधवार की रैली कामयाब मानी जा रही है.

वरिष्ठ पत्रकार सैयद क़ासिम ने कहा, ''मायावती के सरकार में रहते हुए भी कई रैलियां हुई थी. लेकिन आज की रैली लगातार 13 साल से विपक्ष में होने के बाद हुई है. इससे पहले 2014 में रमाबाई आंबेडकर मैदान और 2021 में कांशीराम स्मारक स्थल पर रैली हुई थी."

राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि बीएसपी अब एक बार फिर 'सर्वजन हिताय' की नीति को दोहराने की कोशिश कर रही है. जिसके तहत वह दलितों के साथ सवर्णों, पिछड़ों और मुसलमानों को भी जोड़ने की बात कर रही है.

मंच पर तीन मुस्लिम नेताओं को बिठाना, आकाश आनंद को भाषण का मौका देना भी रैली की विशेष बात है.

जिन तीन मुस्लिम नेताओं को मायावती के साथ जगह मिली है, उनमें मुनक़ाद अली, नौशाद अली और शमशुद्दीन राईन थे. इसके अलावा बीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा और एकमात्र विधायक उमाशंकर सिंह भी थे.

राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान कहते हैं, ''बीएसपी के पास यही तीन मुस्लिम नेता हैं, लेकिन बीजेपी की तारीफ़ करके मायावती ने मुसलमानों को और दूर कर दिया है.''

बीएसपी को 2027 तक अपना जनाधार फिर से खड़ा करना होगा. वहीं यह भी साबित करना होगा कि मायावती की राजनीति अब भी प्रदेश में प्रासंगिक है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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