भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन के क्विंगदाओ में हुई शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की मीटिंग के ज्वाइंट स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस मामले में जानकारी देते हुए कहा कि एससीओ के कुछ सदस्यों देशों के बीच कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बनने की वजह से ज्वाइंट स्टेटमेंट जारी नहीं हुआ.
रणधीर जायसवाल ने कहा, "हमारी आतंकवाद को लेकर कुछ चिंताए थीं और हम चाहते थे कि वे उस दस्तावेज में जाएं. लेकिन एक देश को उस पर आपत्ति थी. जिसकी वजह से स्टेटमेंट फाइनल नहीं हुआ."
हालांकि कांग्रेस ने ज्वाइंट स्टेटमेंट में पहलगाम का जिक्र नहीं होने की वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर पर सवाल उठाए हैं.
कांग्रेस प्रवक्ता शमा मोहम्मद का कहना है कि पीएम मोदी की अगुवाई में भारत अलग-थलग पड़ गया है.
चीन के क्विंगदाओ में दो दिन तक चली एससीओ मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए भारत के रक्षा मंत्री चीन पहुंचे थे. ये मीटिंग 25 जून को शुरू हुई और 26 जून तक चली.
भारत के विदेश मंत्रालय की ओर इस बारे में बयान भी जारी किया गया है. रणधीर जायसवाल ने कहा, "आतंकवाद के खतरे से हमें लड़ना चाहिए. इस बात को हमने (एससीओ बैठक में) उठाया."
विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, "रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एससीओ मीटिंग में आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत की नीति में बदलाव की व्यापक रूपरेखा पेश की."
बयान में कहा गया कि राजनाथ सिंह ने सदस्यों देशों से सामूहिक सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाली इस चुनौती से निपटने के लिए एकजुट होने की अपील की.
राजनाथ सिंह ने क्या कहा?राजनाथ सिंह ने कहा कि क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां शांति, सुरक्षा और विश्वास की कमी से जुड़ी हुई हैं.
उन्होंने कहा, "इन समस्याओं की वजह बढ़ती कट्टरता, उग्रवाद और आतंकवाद हैं."
राजनाथ सिंह ने कहा कि शांति, समृद्धि और आतंकवाद एक साथ नहीं चल सकते हैं और इन चुनौतियों से निपटने के लिए निर्णायक कदम उठाने की ज़रूरत है.
राजनाथ सिंह ने कहा, "कुछ देश सीमा पार आतंकवाद को साधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं और आतंकवादियों को पनाह देते हैं. ऐसे दोहरे मानदंडों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. एससीओ को ऐसे देशों की आलोचना करने में संकोच नहीं करना चाहिए."
एससीओ मीटिंग में दिए गए अपने बयान में राजनाथ सिंह ने 'ऑपरेशन सिंदूर' का जिक्र भी किया.
उन्होंने कहा, "ऑपरेशन सिंदूर को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में शुरू किया गया था. पहलगाम आतंकी हमले के दौरान पीड़ितों को उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर गोली मार दी गई थी. संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलटीई) से जुड़े द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ़) ने हमले की जिम्मेदारी ली है."
"पहलगाम हमले का पैटर्न भारत में एलईटी के पिछले आतंकी हमलों जैसा है. हमने दिखाया है कि आतंकवाद के केंद्र अब सुरक्षित नहीं हैं और हम उन्हें निशाना बनाने में संकोच नहीं करेंगे."
राजनाथ सिंह ने कहा, "एससीओ सदस्यों को इस बुराई (आतंकवाद) की निंदा करनी चाहिए."
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चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता जांग शाओगिंग से आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर मतभेदों के कारण एससीओ ज्वाइंट स्टेटमेंट पर भारत के इनकार से जुड़ा सवाल किया गया.
जिसके जवाब में जांग शाओगिंग ने कहा, "जहां तक मुझे मालूम है सभी पक्षों के संयुक्त प्रयासों से एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक सफलतापूर्वक संपन्न हुई."
द वायर पीके और न्यू पाकिस्तान फाउंडेशन थिंक टैंक से जुड़े अली के चिश्ती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "असल हेडलाइन भारत का हस्ताक्षर करने से इनकार करना या फिर पहलगाम का जिक्र न होना नहीं है. बल्कि ये है कि सभी एससीओ सदस्य बलूचिस्तान में भारतीय आतंकवाद की निंदा करने में एकजुट हो गए. पाकिस्तान के लिए यह एक बड़ी कूटनीतिक जीत है."
भारत के पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस मामले से संबंधित एक पोस्ट किया है.
उन्होंने लिखा, "भारत वैश्विक मंच पर पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गया है. एससीओ की प्रेस रिलीज इसका ताजा उदाहरण है. जिसमें पहलगाम में हुए आतंकी हमले को नजरअंदाज कर दिया गया है और बलूचिस्तान का जिक्र किया गया है. प्रधानमंत्री पूरी तरह से विफल हो चुके हैं और उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए."
कांग्रेस प्रवक्ता शमा मोहम्मद ने भी ज्वाइंट स्टेटमेंट में पहलगाम का जिक्र नहीं होने की वजह से पीएम नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर पर सवाल उठाए हैं.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा,"एससीओ के ज्वाइंट स्टेटमेंट में पहलगाम और पाकिस्तान की ओर संचालित पहलगाम आतंकवाद का कोई जिक्र नहीं था. लेकिन बलूचिस्तान का जिक्र किया गया."
"यह कूटनीतिक विफलता है. नरेंद्र मोदी की सरकार में भारत अलग-थलग पड़ गया है. पाकिस्तान को अरबों की मदद मिल रही है और आतंकवाद की निंदा करने के लिए कोई भी देश हमारे साथ खड़ा नहीं है."
एससीओ क्या है?शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की स्थापना वर्ष 2001 में चीन, रूस और सोवियत संघ का हिस्सा रहे चार मध्य एशियाई देशों कज़ाख़स्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान ने मिलकर थी.
इसका उदय रूस, चीन और इन मध्य एशियाई देशों के बीच वर्ष 1996 में सीमा को लेकर हुए एक समझौते के साथ हुआ था. इसे 'शंघाई फाइव' समझौता कहा गया.
चीन के सुझाव पर इस समझौते का विस्तार, क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए किया गया.
सदस्य देशों के बीच व्यापार और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए, संगठन की भूमिका भी बढ़ाने की बात की गई.
भारत और पाकिस्तान साल 2017 में इस संगठन में शामिल हुए थे, जबकि ईरान वर्ष 2023 में इसका सदस्य बना.
इस समय एससीओ देशों में पूरी दुनिया की लगभग 40 फीसदी आबादी रहती है. पूरी दुनिया की जीडीपी में एससीओ देशों की 20 फीसदी हिस्सेदारी है. दुनिया भर के तेल रिजर्व का 20 फीसदी हिस्सा इन्हीं देशों में है.
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