अगर कैथोलिक चर्च का विस्तार अगले पोप के चयन का एकमात्र पैमाना माना जाए तो ये लगभग तय है कि अगले पोप अफ़्रीका से होंगे.
अफ़्रीका में कैथोलिक आबादी का तेज़ी से प्रसार हुआ है. पूरी दुनिया में जितने कैथोलिक लोगों की संख्या बढ़ी है, उसमें आधे सिर्फ़ अफ़्रीका से आते हैं.
साल 2022 के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के 20% कैथोलिक अफ़्रीका में रहते हैं. और ये आबादी बढ़ती जा रही है. इसके विपरीत यूरोप में इस दौरान कैथोलिक आबादी 0.08% घट गई है.
अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक़, 1910 से 2010 के बीच यूरोप में कैथोलिक धर्म में आस्था रखने वालों की संख्या में 63% की कमी आई.
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एक ज़माने में कैथोलिक मत का गढ़ माने जाने वाले यूरोप का अधिकतर हिस्सा अब सेकुलर बन चुका है.
हालांकि लातिन अमेरिका में कैथोलिक चर्च अभी भी प्रभावशाली है लेकिन यहां कई देशों में एवेंजेलिकल मत का प्रभाव बढ़ा है.
लेटिनोबैरोमीट्रो नामक संस्था ने इस इलाक़े के 18 देशों में एक अध्ययन करवाया था. इस अध्ययन में पाया गया कि लेटिन अमेरिका में कैथोलिक मत मानने वालों की संख्या 2010 में 70% से घटकर 2020 में 57% रह गई.
अब जब वेटिकन में कार्डिनल अगले पोप का चुनाव करेंगे तो क्या वो इन सब बातों पर ग़ौर करेंगे?
डीपॉल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर और नाइजीरियाई कैथोलिक पादरी फ़ादर स्टैन चू इलो का मत है कि अफ़्रीकी मूल का पोप होना चाहिए.
उन्होंने मुझसे कहा, "मुझे लगता है कि एक अफ़्रीकी मूल के पोप का होना बहुत बढ़िया रहेगा."
उनका तर्क था कि चर्च के नेतृत्व में ईसाई धर्मावलंबियों की संरचना बेहतर तरीक़े से प्रतिबिंबित होनी चाहिए.
पोप फ़्रांसिस ने सब-सहारन अफ़्रीका से कार्डिनल के अनुपात में ख़ासी वृद्धि की थी. यही कार्डिनल अगले पोप का चुनाव करेंगे.
साल 2013 में जब वह पोप बने थे तो इस इलाक़े से आने वाले कार्डिनल की संख्या 9% थी. 2022 में ये संख्या बढ़कर 12% हो गई है.
लेकिन फ़ादर चू इलो का कहना है कि ये ज़रूरी नहीं कि वे सभी अफ़्रीका के किसी उम्मीदवार को वोट देंगे.
वह कहते हैं कि इसकी संभावना होती है कि कार्डिनल किसी ऐसे शख़्स को चुनें जो पहले से ही हाई प्रोफ़ाइल हो.
उनके अनुसार, "चुनौती यह है कि कोई वरिष्ठ अफ़्रीकी पादरी इस समय वेटिकन में किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं है और यह एक समस्या है."
"अगर आप किसी अफ़्रीकी कार्डिनल के बारे में सोचें जो पोप बन सकता हो, तो आपके ज़हन में कोई नाम नहीं आएगा."
वह कहते हैं कि यह 2013 से उलट स्थिति है जब घाना के कार्डिनल पीटर टर्कसन एक मजबूत उम्मीदवार थे. उससे पहले 2005 में भी जब पोप बेनेडिक्ट 16वें बने थे तो उनके सामने नाइजीरिया के कार्डिनल फ़्रांसिस एरिंज़े के रूप में एक मजबूत उम्मीदवारी थी.
अफ़्रीका से तीन पोप रह चुके हैं. तीसरे पोप गेलेसियस-प्रथम का 1500 साल पहले निधन हो गया था.
अब बहुत से लोगों का कहना है कि इस महाद्वीप से एक और पोप बनने का यह सबसे सही मौका है.
कुछ अफ़्रीकी कैथोलिकों का कहना है कि अगला पोप कहां से हो इस बात पर बहुत अधिक ज़ोर दिया जा रहा है.
नोट्रे डेम यूनिवर्सिटी में नाइजीरियाई मूल के प्रोफ़ेसर फ़ादर पॉलिनस इकेचुक्वू ओडोज़ोर ने कहा, "आप अफ़्रीका से हैं या यूरोप से, ये अहम नहीं होना चाहिए. जब आप चुन लिए जाते हैं तो हर किसी का मुद्दा आपका मुद्दा हो जाता है. आपकी बस एक चिंता होती है यीशू मसीह के समुदाय को बढ़ाना."
उनका कहना है कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पोप को "चर्च का मुख्य धर्माचार्य होना चाहिए."
फ़ादर ओडोज़ोर कहते हैं कि पोप कहां से होना चाहिए, यह सवाल बहुत निराशाजनक है क्योंकि इसमें एक रस्म का भाव है, "जैसे लोग कह रहे हों- अच्छा तो अफ़्रीकी इतनी संख्या में ईसाई हैं, तो हम क्यों नहीं उन्हें एक पोप दे देते हैं."
उनके विचार से, सबसे अधिक ज़रूरी बात है ये सुनिश्चित करना है कि अफ़्रीका में रह रहे अनुयायियों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को वेटिकन की सत्ता में रहने वाले लोग गंभीरता से लें.
फ़ादर चू इलो की तरह ही उन्हें भी लगता है कि अफ़्रीकी महाद्वीप से आने वाले कार्डिनलों की संख्या बढ़ी है लेकिन चर्च में उनकी वास्तविक ताक़त बहुत कम है.
वो कहते हैं, "मैं पोप फ़्रांसिस की ओर से नियुक्त कार्डिनलों के स्तर को कम करके नहीं आंक रहा. लेकिन जब आप उन्हें नियुक्त करते हैं तो क्या आप उन्हें बाक़ियों के बराबर अधिकार देते हैं? इन लोगों को अधिकार दीजिए, उनके काम पर भरोसा करिए."
हालांकि दोनों ही पादरियों ने एक मुद्दे को उठाया जो चर्च के नेतृत्व को अधिक समावेशी बनाने के लिए पोप फ़्रांसिस के कामों पर पानी फेर सकता है.
फ़ादर ओडोज़ोर कहते हैं, "चर्च में नस्लवाद पर कोई भी बात नहीं करना चाहता. अफ़्रीका से आने वाला पोप जितना भी काबिल क्यों ना हो उसे केवल एक अफ़्रीकी पोप के रूप में ही देखा जाएगा."
साल 2022 के अंत में पोप फ़्रांसिस ने दो तिहाई कार्डिनल चुने थे जो उनके उत्तराधिकारी का चुनाव करेंगे, यह नए पोप के चुनाव के लिए बहुमत से थोड़ा ही कम है.
इसका मतलब है कि जो भी चुना जाएगा, इस बात की अधिक संभावना है कि ग़रीबों और वंचितों तक पहुंचने के पोप फ़्रांसिस के नज़रिए का अनुसरण करेगा.
इसे फ़ादर चू इलो "पुअर फ़र्स्ट" नज़रिया कहते हैं, जिसमें फ़ोकस इस बात पर हो कि चर्च ऐसी आवाज़ों को अधिक सुने और अधिक दयालु हो.
चुनाव चौंकाने वाला हो सकता हैफ़ादर चू इलो कहते हैं कि एक और कारण है जिसकी वजह से अगले पोप के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल है.
वह कहते हैं, "कैथोलिक मानते हैं कि भगवान और पवित्र आत्मा, चर्च के नेताओं को चुनने में मदद करती है."
इसका मतलब हुआ कि नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं जैसा 2013 में हुआ था जब पोप फ़्रांसिस चुने गए थे, "उनके बारे में किसी ने अनुमान नहीं लगाया था."
फ़ादर चू इलो से मैंने पूछा कि क्या वो सोचते हैं कि अगले पोप अपने पूर्ववर्ती के विचारों को आगे बढ़ाएंगे या क्या उन्हें अफ़्रीका से होना चाहिए?
हंसते हुए उन्होंने कहा, "मैं एक अच्छे पादरी की तरह जवाब दूंगा. मैं प्रार्थना करूंगा कि ईश्वर हमें ऐसा पोप दे जो फ़्रांसिस के नज़रिए को आगे बढ़ाए और मैं ये भी प्रार्थना करूंगा कि ऐसा व्यक्ति अफ़्रीका से हो."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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