जम्मू-कश्मीर के साबिर अहमद डार बीते 20 साल से पश्मीना शॉल बेच रहे हैं. हल्के वजन के ये शॉल मसूरी में उनके ग्राहकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं.
उनके ग्राहकों के लिए ये शॉल लग्जरी का प्रतीक हैं.
डार के लिए ये शॉल उनके घर के साथ जुड़े हुए हैं और ये उनकी कश्मीरी पहचान का प्रतीक भी हैं.
लेकिन हाल ही में यही पहचान उनके लिए बोझ बन गई है.
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रविवार को डार और एक अन्य सेल्समैन को सार्वजनिक रूप से परेशान किया गया और उन पर हमला किया गया.
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 लोगों की हत्या के बाद लोग बेहद ग़ुस्से में हैं और ये हमला उसी ग़ुस्से का परिणाम था.
भारत ने इस हमले के बाद सिंधु जल समझौते को निलंबित करने समेत कई कड़े फ़ैसले लिए जिसमें पाकिस्तान के विमानों के लिए एयर स्पेस बंद करने जैसे निर्णय शामिल हैं.
हमले के एक वीडियो से मालूम चलता है कि लोग डार और उनके दोस्त को पीट रहे हैं. इसके साथ ही बाजार के बीच उनके स्टॉल में तोड़फोड़ कर रहे हैं.
डार कहते हैं, "वो हमले के लिए हमें ज़िम्मेदार ठहराते हैं और शहर छोड़ने के लिए कहते हैं. वो कहते हैं कि हम अपना चेहरा दोबारा कभी नहीं दिखाएं."
वो कहते हैं लाखों रुपये का उनका सामान वहीं है. लेकिन उन्हें वहां वापस जाने से डर लग रहा है.
पहलगाम हमले के बाद बढ़ा तनावजब ये बात ज्यादा फैल गई तो पुलिस ने बुधवार को तीन लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन कुछ ही घंटों में उन्हें रिहा कर दिया गया. उन पर कुछ जुर्माना लगाया गया और उनसे कहा गया कि वो डार और उनके साथी से माफ़ी मांगे.
लेकिन डार तब तक वो जगह छोड़ चुके थे. डार के साथ दर्जनों और लोगों ने मसूरी को छोड़ा. ये लोग दशकों से मसूरी में कश्मीरी शॉल बेच रहे थे. लेकिन अब ये जगह उन्हें सुरक्षित महसूस नहीं हो रही है.
पहलगाम हमले के बाद भारत के अलग-अलग हिस्सों में कई कश्मीरी छात्रों और विक्रेताओं के साथ मारपीट की ख़बरें सामने आई हैं.
इतना ही नहीं छात्रों के सहपाठी, कश्मीरी दुकानदारों और व्यापारियों के ग्राहक और उनके पड़ोसी भी उन्हें परेशान कर रहे हैं. इस तरह के कई वीडियो सामने आए हैं.
गुरुवार को पहलगाम हमले में मारे गए विनय नरवाल की पत्नी हिमांशी नरवाल ने लोगों से मुसलमानों और कश्मीरियों को परेशान नहीं करने की अपील की. उन्होंने कहा, "हम शांति चाहते हैं सिर्फ शांति."
लेकिन डार जैसे कई कश्मीरी सुरक्षा के मद्देनजर अपने घर वापस लौट रहे हैं.
डरे हुए हैं कश्मीरी छात्र
उममत साबिर पंजाब की एक यूनिवर्सिटी में नर्सिंग स्टूडेंट हैं. उन्होंने कहा कि पड़ोस की कई महिलाओं ने पिछले हफ्ते उन पर 'आतंकवादी' होने का आरोप लगाया और शहर से बाहर जाने के लिए कहा.
उन्होंने कहा, "उसी दिन मेरी एक क्लासमेट को टैक्सी ड्राइवर ने इसलिए बाहर कर दिया क्योंकि वो कश्मीरी है. हमें कश्मीर वापस जाने में तीन दिन लगे, लेकिन हमारे पास कोई और विकल्प नहीं था. हमें वापस जाना पड़ा."
साबिर वापस कश्मीर में अपने घर लौट चुकी हैं. लेकिन कई लोगों को अपना घर भी सुरक्षित नहीं लग रहा है.
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने कहा कि दोषियों को सजा मिलनी चाहिए, लेकिन "मासूम लोगों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए."
एक और छात्र ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बीबीसी से कहा, "जब भी तनाव बढ़ता है तो सबसे पहले हम ही इसका ख़ामियाजा भुगतते हैं. हमें संदिग्ध माना जाता है और हमसे उम्मीद की जाती है कि हम अपनी जिंदगी को होल्ड पर डालें."
मसूरी में काम कर चुके एक और शॉल व्रिकेता शेफी सुभान ने कहा कि इस बार स्थिति बेहद गंभीर लग रही है.
20 साल तक मसूरी जिले में काम करने के बाद सुभान कहते हैं कि जनता के बीच उन्हें कभी डर महसूस नहीं हुआ.
अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर होने के बावजूद मसूरी में सुभान को घर जैसा महसूस होता था. वो देशभर से आ रहे अपने ग्राहकों के साथ भावनात्मक जुड़ाव भी महसूस करते हैं.
सुभान कहते हैं, "लोग हमेशा हमारे प्रति नरम रहे हैं और खुशी के साथ हमारे कपड़ों को पहनते रहे हैं. लेकिन हमले के दिन हमारे साथियों को निशाना बनाया गया और कोई भी मदद करने नहीं आया. लोग खड़े होकर ये सब देखते रहे. उनके शरीर पर चोट लगी, लेकिन भावनात्मक रूप से हम उससे भी ज़्यादा आहत हैं."
पहलगाम हमले का स्थानीय कश्मीरी लोगों ने किया विरोधकश्मीर टाइम्स न्यूजपेपर की मैनेजिंग एडिटर अनुराधा भसीन कहती हैं, "शक की सुई हमेशा स्थानीय लोगों पर ही रहती है, भले ही पिछले डेढ़ दशक में चरमपंथ में कमी आई है. उन्हें हमेशा खुद को निर्दोष साबित करना पड़ता है."
पिछले सप्ताह जैसे ही पहलगाम हमले की खबर फैली कश्मीरी सड़कों पर उतर आए और कैंडल मार्च निकालकर उन्होंने हमले का सख्त विरोध किया.
हमले के एक दिन बाद कश्मीर बंद रहा. अखबारों ने घटना का विरोध जताते हुए पहले पन्ने काले रंग के छापे.
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगते हुए कहा कि "हमने अपने मेहमानों को निराश किया है."
भसीन कहती हैं कि ऐसे हमलों के खिलाफ कश्मीरियों की ऐसी प्रतिक्रिया कोई नई बात नहीं है.
वो कहती हैं, "अतीत में भी इसी तरह की निंदा की गई है. हालांकि छोटे पैमाने पर. वहां कोई भी नागरिक हत्याओं का समर्थन नहीं करता. वे अपनों को खोने के दर्द को अच्छी तरह से जानते हैं."
लेकिन वो कहती हैं कि कश्मीरियों पर बेगुनाही साबित करने का बोझ डालना सही नहीं है क्योंकि वो खुद ही नफरत और हिंसा का निशाना बन चुके हैं.
वो कहती हैं, "इससे सिर्फ डर बढ़ेगा और लोग और अलग-थलग पड़ जाएंगे. इनमें से कई लोग पहले से ही देश के बाकी हिस्सों से अलग-थलग महसूस करते हैं."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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