हिमाचल प्रदेश के लोकनिर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह का एक बयान और फिर राज्य सरकार की तरफ़ से उसका खंडन सुर्ख़ियों में है.
विक्रमादित्य सिंह ने कहा था कि राज्य के रेहड़ी-पटरी वाली दुकानों पर फोटोयुक्त पहचान पत्र पर लगाना अनिवार्य होगा. इस पर बाद में उनकी सफाई भी आई. बाद में राज्य सरकार ने ऐसे किसी आदेश पर रोक लगा दी.
अब सरकार की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया है कि नेमप्लेट या अन्य पहचान अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करने के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया है.
विक्रमादित्य सिंह के बयान के बाद से राज्य सरकार और पार्टी के अंदर-बाहर दोनों तरफ़ सवाल उठाए जा रहे थे.
हालांकि विक्रमादित्य ने शुक्रवार को अपने फैसले का बचाव किया और
, "साफ़-सफ़ाई से जुड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए हम इस पहचान की प्रक्रिया को लागू कर रहे हैं, जो कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के निर्देशों के अनुसार है."#WATCH दिल्ली: हिमाचल प्रदेश सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा रेस्टोरेंट को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के आदेश पर कहा, "...यह मुद्दा आज का नहीं है। यह मुद्दा 2013 से चल रहा है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि नगर निगम, नगर पालिका… pic.twitter.com/UXxNdFpxVm
— ANI_HindiNews (@AHindinews) September 27, 2024
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25 सितंबर को विक्रमादित्य सिंह ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा, "हिमाचल में रेहड़ीधारकों के भोजनालय और फ़ास्टफ़ूड रेहड़ी पर मालिक का पहचान पत्र लगाया जाएगा, ताकि लोगों को किसी भी तरीके की परेशानी न हो. इसके लिए पिछले कल ही बैठक में निर्देश जारी कर दिए गए हैं. जय श्री राम."
विक्रमादित्य सिंह ने उत्तर प्रदेश में दुकानों पर नेमप्लेट लगाने के निर्देश का हवाला देते हुए ये भी कहा कि हिमाचल में भी ऐसे निर्देश दिए गए हैं ताकि खाद्य सुरक्षा जैसे मामलों को गंभीरता से लिया जाए.
कांग्रेस के ही कुछ नेताओं ने इस पर आपत्ति जताई. बाद में प्रदेश सरकार ने एक बयान जारी कर विक्रमादित्य के आदेश पर रोक लगा दी.
प्रदेश सरकार के एक प्रवक्ता ने लिखित बयान में कहा कि स्ट्रीट वेंडर्स नीति के संबंध में समाज के विभिन्न वर्गों से सुझाव प्राप्त हुए हैं और इस मामले के हर पहलू पर संवेदनशीलता के साथ विचार किया जा रहा है.
बयान के अनुसार, "अभी तक प्रदेश सरकार ने विक्रेताओं द्वारा अपनी दुकानों पर नेमप्लेट या अन्य पहचान अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करने के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया है."
"प्रदेश सरकार स्ट्रीट वेंडर्स से संबंधित मुद्दों का समाधान करने के लिए प्रतिबद्ध है और इस संदर्भ में निर्णय लेने से पूर्व सभी सुझावों पर संवेदनशीलता से विचार किया जाएगा."
विक्रमादित्य ने इससे पहले वक्फ़ बोर्ड को लेकर भी फ़ेसबुक पोस्ट पर टिप्पणी की थी और सुधार से संबंधित ख़बरों को साझा करते हुए इसे 'हिमाचल के लिए सर्वश्रेष्ठ हित' बताया था.
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दरअसल, जब उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक ऐसा ही फ़ैसला लिया था तो उस वक्त कांग्रेस और विपक्ष ने इस पर आवाज़ उठाई थी.
अब जब विक्रमादित्य ने भी ऐसे ही फ़ैसले की बात कही तो सवाल उठने लगे.
छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता टीएस सिंह देव ने भी मंत्री के बयान को ग़लत बताया.
एक न्यूज़ एजेंसी को दिए साक्षात्कार में सिंह देव ने कहा कि, "मैं हिमाचल सरकार के इस निर्णय से सहमत नहीं हूँ. मैंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो देखा, जिसमें अल्पसंख्यकों की दुकानों के सामने कुछ लोग क्रॉस लगा रहे हैं कि इनका हमें बहिष्कार करना है, ये बहुत ही निंदनीय है. अगर हिमाचल की सरकार ऐसा कर रही है, तो वो सरकार में रहने लायक हैं कि नहीं, उस पर प्रश्नचिन्ह है."
बिहार से पार्टी के सांसद तारिक अनवर ने प्रेस से बात करते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार भाजपा सरकार का अनुसरण करे यह सही नहीं है.
उन्होंने कहा, "यह एक ग़लत निर्णय है. कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष को इस बारे में संज्ञान लेना चाहिए."
Saurabh Chauhan बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने विक्रमादित्य सिंह के बयान का समर्थन किया है.वामपंथी नेता वृंदा करात ने भी इस कांग्रेस सरकार के मंत्री के निर्णय को आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए विरोध किया.
हालांकि, हिमाचल प्रदेश के कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला ने कहा कि विक्रमादित्य सिंह के बयान को ग़लत तरीके से पेश किया जा रहा है.
वहीं, विक्रमादित्य सिंह को इस मुद्दे पर प्रदेश भाजपा का समर्थन मिला है.
पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि 'इस सब की शुरुआत पिछली सरकार के समय में हो चुकी थी, लेकिन तब इस पर बहुत सवाल उठे थे. अब जो कांग्रेस के मंत्री कह रहे हैं, वह बिलकुल सही है.'
उन्होंने कहा, "हिमाचल प्रदेश में हम देख रहे हैं कि बाहर से बहुत लोग आकर काम करते हैं. आपत्ति उनके आने या काम करने से नहीं है, आपत्ति इस बात से होनी चाहिए कि कोई अपनी पहचान क्यों छुपाना चाहता है? पहचान होनी चाहिए, ताकि प्रदेश में कानून व्यवस्था से संबंधित कोई समस्या न खड़ी हो."
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विक्रमादित्य सिंह का बयान ऐसे वक्त में आया जब शिमला, मंडी समेत कुछ जगहों पर लोग प्रदर्शन कर रहे हैं. इसी महीने इन जगहों पर मस्जिदों के बाहर स्थानीय लोगों का भी प्रदर्शन दिखा.
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िला के शिक्षाविद् प्रोफ़ेसर अमर सिंह चौहान का कहना है कि 'इस आदेश की मंशा भले ही ठीक हो लेकिन समय ठीक नहीं था.'
उन्होंने कहा, "इस वक्त जिस तरह का माहौल प्रदेश में बना है, इस आदेश को भी उसी रंग से देखा गया. जहाँ तक बात पहचान दिखाने की है, तो दुकानों में लाइसेंस की प्रति ऐसी जगह पर लगाने के आदेश हैं जहाँ सब देख सकें."
"व्यावसायिक गाड़ियों में मालिक का नाम, पता लिखना अनिवार्य है, तो यदि स्ट्रीट वेंडर्स, जिसमें प्रवासी लोग भी हैं, उस स्थिति में ऐसे आदेश पर सवाल उठाना सही नहीं है. लेकिन यह भी देखना ज़रूरी है कि इन आदेशों का दुरुपयोग न हो."
राजनीतिक विश्लेषक एम.पी.एस. राणा बताते हैं कि विक्रमादित्य सिंह ने एक बार फिर पार्टी लाइन से ऊपर उठकर कदम उठाया है.
उन्होंने कहा, "सरकार ने भले ही बयान दे दिया हो और इस निर्णय को झुठला दिया हो, लेकिन विक्रमादित्य सिंह के निर्णय का विरोध प्रदेश के अंदर कहीं नहीं हुआ. अगर कांग्रेस की राजनीति की बात करें तो इसका उन्हें नुकसान हो सकता है, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब विक्रमादित्य सिंह ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर या हठ कर कुछ किया हो."
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विक्रमादित्य सिंह ने बीबीसी से कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश में स्थानीय लोगों और व्यापारियों ने कुछ मुद्दे उठाए थे. इसके अलावा, 2014 के कानून में भी पहचान पत्र का प्रावधान है.
उनका कहना है कि प्रदेश उच्च न्यायालय की तरफ़ से भी स्ट्रीट वेंडर्स के लिए नीति बनाने और उसका सख्ती से पालन करने के आदेश हैं.
वो कहते हैं, ''एक संयुक्त समिति बनी है, जिसमें इन सब मुद्दों पर चर्चा होगी. जहाँ तक बैठक में लिए गए निर्णय का सवाल था, वह कानूनसम्मत था और हिमाचल प्रदेश के लोगों के हित में उठाया गया था. उसका मकसद मतभेद पैदा करना नहीं, बल्कि सुरक्षा और स्वच्छ खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित करना था. "
''बाहर के राज्य के लोगों का हिमाचल में स्वागत है. किसी को न रोका जा रहा है, न ही टारगेट किया जा रहा है. यहाँ कोई भी काम के लिए आ सकता है. लेकिन प्रदेश की आंतरिक सुरक्षा बनाए रखना ज़रूरी है. कानून व्यवस्था को ठीक रखना है. लोगों को साफ़ खाना मिले, इसलिए हाईजीन को भी ध्यान में रखना है. इसीलिए हमने बैठक में फैसला लिया था, अब संयुक्त समिति इस पूरे मामले पर विचार करेगी."
हालांकि विक्रमादित्य सिंह ने शुक्रवार फिर दुहराया कि साफ़-सफ़ाई से जुड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए इस पहचान की प्रक्रिया को लागू किया जा रहा है.
उन्होंने मीडिया से
, “यह मुद्दा 2013 से चल रहा है. तब सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया था कि नगरपालिका में टाउन वेंडिंग कमिटी बननी चाहिए. 2016 में हिमाचल प्रदेश में इस पर क़ानून को बनाया गया, जिसमें सरकार ने टाउन वेंडिंग कमिटी को बनाने का फ़ैसला किया था. मगर ये काफ़ी समय तक लागू नहीं हो पाया था.”#WATCH दिल्ली: हिमाचल प्रदेश सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा रेस्टोरेंट को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने के आदेश पर कहा, "...यह मुद्दा आज का नहीं है। यह मुद्दा 2013 से चल रहा है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि नगर निगम, नगर पालिका… pic.twitter.com/UXxNdFpxVm
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उनके मुताबिक़, “साल 2023 में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस ने एक जनहित याचिका के ज़रिए हिमाचल प्रदेश सरकार को यह निर्देश दिया कि तत्काल प्रभाव से टाउन एंड वेडिंग कमिटी को बनाया जाए ताकि रेहड़ी-पटरी लगाने वालों को एक अधिकृत स्थान मिल सके. हमने इस विषय को आगे ले जाने का काम किया है.”
इस संदर्भ में विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने संसदीय कार्य मंत्री हर्षवर्धन चौहान की अध्यक्षता में कांग्रेस और भाजपा विधायकों की एक संयुक्त समिति का गठन किया है.
ग्रामीण विकास एवं पंचायती मंत्री अनिरुद्ध सिंह, लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह, विधायक अनिल शर्मा, सतपाल सती, रणधीर शर्मा और हरीश जनारथा इस समिति के सदस्य हैं.
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शिमला के कारोबारियों में विक्रमादित्य के बयान पर कुछ चिंताएं ज़रूर नज़र आईं.
शिमला के संजौली में सब्ज़ी की पटरी लगाने वाले अब्दुल आज़िम का कहना है कि सरकार अगर प्रमाणपत्र देखकर दुकान लगाने दे या कोई जगह दे, तो इसमें कुछ ग़लत नहीं है.
वो कहते हैं, "लेकिन यह सुनिश्चित हो कि पहचान का इस्तेमाल बहिष्कार करने में या चिह्नित करने के लिए न हो. और जिनके पास पहचानपत्र नहीं है या ग़लत है, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन एक ग़लत आदमी के चलते सबको सजा भुगतना कहाँ तक सही है."
शिमला के लोअर बाजार में फल की दुकान लगाने वाले मोहम्मद सलीम कहते हैं, "जहाँ तक नाम या पहचान दिखाने का सवाल है, उसमें कुछ ग़लत नहीं है. मैं पिछले 15 सालों से यहाँ काम कर रहा हूँ और सब जानते हैं कि मैं मुस्लिम हूँ और मेरा नाम सलीम है. अब अगर मुझे नाम लिखना पड़े, या पहचान दिखानी भी पड़े, तो भी क्या दिक्कत है."
स्थानीय कारोबारी तरुण राणा ने बीबीसी को बताया कि पहचान बताने या नाम लिखने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
उन्होंने कहा, "अब समय के साथ जिस प्रकार से आपराधिक घटनाएँ हो रही हैं, ऐसे में यह ज़रूरी भी है. जहाँ तक गुणवत्ता का प्रश्न है, तो ग्राहक को यह पता होना चाहिए कि किस रेहड़ी-पटरी वाले से सामान लिया गया था."
शिमला व्यापार मंडल के अध्यक्ष हरजीत मंगा ने कहा, "कुछ लोगों की ग़लती से सभी बदनाम न हों, इसके लिए पहचान होना ज़रूरी है. कोई भेदभाव न हो, यह सुनिश्चित करना है, लेकिन पहचान दिखाने के निर्णय में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. और ये नियम सिर्फ बाहर से आने वालों के लिए ही नहीं, प्रदेश के लोगों के लिए भी होगा."
उधर विक्रमादित्य सिंह की मां प्रतिभा सिंह ने खाने पीने की दुकानों पर पहचान लगाए जाने की वक़ालत की है.
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हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में लगभग 1000 स्ट्रीट वेंडर्स (रेहड़ी पटरी वाले) पंजीकृत हैं, जबकि प्रदेश में यह संख्या लगभग 1 लाख है.
असल में काम करने वालों की संख्या इससे कहीं अधिक है. अब सरकार नई समितियाँ बनाकर नया सर्वे करने का विचार बना रही है.
शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिव देवेश कुमार ने कहा कि प्रदेश में तहबाजारी संबंधी कानूनों का पालन किया जा रहा है. इस दिशा में जो भी निर्णय सरकार लेगी, उसे लागू किया जाएगा.
पहले से ही एक स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट, 2014 है, जो शहरी इलाकों में स्ट्रीट वेंडरों के अधिकारों और आजीविका की सुरक्षा के लिए बनाया गया है.
यह कानून यूपीए सरकार के समय में लोकसभा में पेश किया गया था और 2014 में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिली. इ
सी कानून के तहत रेहड़ी फड़ी लगाकर काम करने के लिए प्रमाणपत्र और पहचान पत्र जारी किए जाएंगे, और ये लोग सिर्फ अधिसूचित वेंडिंग ज़ोन में ही काम करेंगे.
हालांकि, इस क़ानून में नाम या पहचान को दिखाने की अनिवार्यता नहीं थी.
कौन हैं विक्रमादित्य सिंह?विक्रमादित्य सिंह कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र हैं. उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफ़न्स कॉलेज से पढ़ाई की है. वे शिमला (ग्रामीण) विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक हैं.
वे राज्य सरकार में लोक निर्माण और शहरी विकास मंत्री हैं.
उनके पहचान पत्रों को लेकर दिए गये बयान से राज्य कांग्रेस में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के खींचतान के रूप में भी देखा जा रहा है.
इस साल 28 फ़रवरी को विक्रमादित्य ने एक प्रेसवार्ता बुलाकर मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया था.
दरअसल राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस के छह विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर, बीजेपी के प्रत्याशी हर्ष महाजन को राज्यसभा पहुँचा दिया था. कांग्रेस के उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी मिली हार के कारण पार्टी को काफ़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी.
इसके बाद ये सारे विधायक पंचकुला के एक होटल में शिफ्ट हो गए थे. विक्रमादित्य इस होटल में विधायकों से मिलने भी गए थे.
तब विक्रमादित्य ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पर विधायकों की आवाज़ दबाने का आरोप लगाया था.
कांग्रेस पार्टी ने इस साल 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने के न्योते को 'ससम्मान' अस्वीकार कर दिया था.
कांग्रेस ने इस पर काफी सोच विचार के बाद कहा था कि "एक अर्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है."
पार्टी की आधिकारिक स्टैंड के बावजूद विक्रमादित्य सिंह ने इस समारोह में हिस्सा लिया.
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