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भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष के समक्ष चुनौतियों की भरमार, बंगाल में कैसे लगायेंगे पार्टी की नैया पार?

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कोलकाता, 5 जुलाई (हि.स.) । पश्चिम बंगाल भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य के सामने पार्टी को एकजुट करने, राज्य की राजनीतिक संस्कृति से मेल बैठाने और स्पष्ट वैचारिक दिशा तय करने जैसी कई अहम चुनौतियां हैं। एक ओर जहां उन्हेंभाजपा को ‘बाहरी और हिंदी भाषी पार्टी’ की छवि से बाहर निकालने के लिए जद्दोजहद करनी होगी वहीं पार्टी के भीतर गुटबाजी, सांस्कृतिक मुद्दों और अल्पसंख्यकों को लेकर मतभेद जैसे मुद्दे उनकी राह में चुनौती बन सकती है।

प्रदेश के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने स्वीकार किया कि बंगाल में पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए समावेशिता को अपनाना जरूरी है। उन्होंने कहा, हमें बंगाल की विशिष्ट राजनीतिक संस्कृति को समझना होगा। अगर हमें मध्यवर्गीय बंगाली हिंदुओं, उदार पेशेवरों और नए मतदाताओं का समर्थन चाहिए, तो सभी समुदायों को साथ लेकर चलना होगा।

हालांकि पार्टी के भीतर सभी इस सोच से सहमत नहीं हैं। विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी के करीबी एक नेता का मानना है कि बंगाल के मतदाता स्पष्टता चाहते हैं। अगर हम उन्हें अस्पष्ट संदेश देंगे, तो मुख्य और झूलते (अनिश्चित) मतदाता दोनों को खो देंगे।

बंगाल की लगभग 30 प्रतिशत आबादी अल्पसंख्यकों की है, जो 294 विधानसभा सीटों में से लगभग 120 में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम के अनुसार, प्रदेश अध्यक्ष का तक ग्रहण करने के बाद भट्टाचार्य का पहला बयान भाजपा की बंगाल इकाई के लिए एक वैचारिक बदलाव का संकेत है। उन्होंने कहा, भट्टाचार्य ने कहा कि भाजपा अल्पसंख्यकों की दुश्मन नहीं है और बहुलवाद की रक्षा करना चाहती है, यह अब तक की पार्टी लाइन से बिल्कुल अलग है। अब देखना होगा कि वे पार्टी के भीतर ‘मध्यम हिंदुत्व’ को कितना प्रभावी बना पाते हैं।

तृणमूल कांग्रेस ने लंबे समय से भाजपा पर ‘हिंदी-हिंदू-हिंदुस्तान’ की विचारधारा थोपने का आरोप लगाया है। हालांकि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा, बंगाली संस्कृति पर किसी का एकाधिकार नहीं है। भाजपा उन सभी बंगालियों का प्रतिनिधित्व करती है जो विकास और सम्मान चाहते हैं।

इसके बावजूद तृणमूल का नजरिया बदला नहीं है। पार्टी नेता कुणाल घोष ने कहा, भाजपा अब भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से चल रही है। शमिक भट्टाचार्य भी उसे छुपा नहीं सकते।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भट्टाचार्य का सौम्य स्वभाव, बंगाली साहित्य पर उनकी पकड़ और संघ की पृष्ठभूमि उन्हें पार्टी की वैचारिक धुरी और आम बंगाली मतदाता के बीच सेतु बना सकता है लेकिन ‘बाहरी पार्टी’ की छवि को मिटाकर सांस्कृतिक वैधता पाना आसान नहीं होगा।

भट्टाचार्य के लिए एक अन्य गंभीर चुनौती है—पार्टी के भीतर जारी गुटबाजी। 2021 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से पुराने भाजपाई नेताओं और तृणमूल से आए नेताओं के बीच टकराव संगठन को कमजोर करता रहा है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया, शमिक दा किसी खेमे से नहीं माने जाते, इसलिए दिल्ली ने उन्हें चुना लेकिन अगर उन्होंने नेतृत्व का प्रभाव नहीं दिखाया, तो वे सिर्फ प्रतीकात्मक अध्यक्ष बनकर रह जाएंगे।

अपने पहले संबोधन में भट्टाचार्य ने संगठनात्मक विभाजन को स्वीकार किया और एकता की अपील की। राजनीतिक विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती के अनुसार, भट्टाचार्य की असली परीक्षा पार्टी के कार्यकर्ताओं को फिर से एक्टिव करने में है। उन्होंने कहा, भाजपा बंगाल में हताश है। उन्हें सभी गुटों को एकजुट करके तृणमूल के खिलाफ जन आंदोलन खड़ा करना होगा।

2021 के 77 सीटों के प्रदर्शन के बाद से पार्टी का जनाधार लगातार कमजोर हुआ है। 2023 के पंचायत चुनावों और हालिया उपचुनावों में ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में पार्टी की संगठनात्मक कमजोरी साफ नजर आई।

भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, बूथ स्तर की संगठनात्मक संरचना को तुरंत सक्रिय करना होगा। कार्यकर्ता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। नेताओं को जिलों में जाकर कार्यकर्ताओं से सीधा जुड़ाव बनाना होगा।

हालांकि पार्टी ने अभी टकराव से दूर रहकर शांति का रास्ता चुना है, लेकिन एक भाजपा सूत्र ने आगाह किया, अब पार्टी को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह शांति निष्क्रियता में न बदल जाए।

हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर

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