– डॉ. मयंक चतुर्वेदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मिजोरम से अपने भाषण में जो बातें कहीं, वे केवल एक राज्य के विकास का ब्योरा भर नहीं थीं, आज यह पूरे पूर्वोत्तर और भारत के लिए गहरे संदेश भी समेटे हुए थीं। उन्होंने कहा कि लंबे समय से हमारे देश की कुछ राजनीतिक पार्टियां वोट बैंक की पॉलिटिक्स कर रही हैं। जिन्होंने मिजोरम को अनदेखा किया, लेकिन आज मिजोरम फ्रंटलाइन में हैं।” अब पूर्वोत्तर, भारत का विकास इंजन बन रहा है।
प्रधानमंत्री ने हाल ही में मिजोरम के लिए कई करोड़ रुपये से अधिक की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया है। इनमें 51 किलोमीटर लंबी बैराबी-सायरंग रेलवे लाइन सबसे अहम है, जिसमें 45 सुरंगें और भारत का दूसरा सबसे ऊँचा रेलवे पुल शामिल है। इस लाइन से सायरंग पहली बार दिल्ली, कोलकाता और गुवाहाटी से रेल मार्ग द्वारा सीधे जुड़ गया। राजधानी एक्सप्रेस अब सायरंग से दिल्ली तक 2,510 किलोमीटर का सफर तय करेगी, जबकि कोलकाता और गुवाहाटी से भी नियमित ट्रेनें उपलब्ध होंगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह कनेक्टिविटी केवल यातायात का विस्तार नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक बदलाव का द्वार है। किसानों को अब अपने उत्पाद बड़े बाजारों तक पहुँचाने का अवसर मिलेगा, छात्रों को शिक्षा और युवाओं को रोजगार की नई राहें मिलेंगी।
देखा जाए तो पूर्वोत्तर में विकास का यह परिदृश्य कोई आकस्मिक घटना नहीं है। 2014 के बाद से केंद्र ने इस क्षेत्र को देश की विकास धारा से जोड़ने को अपनी प्राथमिकता बनाया। सड़क अवसंरचना में यह बदलाव साफ दिखता है। जहाँ 2014 में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई पूर्वोत्तर में लगभग 8,500 किलोमीटर थी, वहीं आज यह 14,000 किलोमीटर से अधिक हो चुकी है। अकेले मिजोरम में 1,500 किलोमीटर नई सड़कें बनीं। भारतमाला परियोजना के अंतर्गत दर्जनों नए पुल और सुरंगों ने दुर्गम पहाड़ी इलाकों की दूरी घटा दी है।
रेलवे का ही उदाहरण लें। आज से पहले तक पूर्वोत्तर के कई राज्य भारतीय रेल मानचित्र पर नहीं थे। अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मणिपुर की तरह अब मिजोरम भी इसमें शामिल हो गया है। यह ऐतिहासिक उपलब्धि केवल सुविधा का विस्तार नहीं बल्कि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। वर्षों तक यह भावना गहरी रही कि दिल्ली पूर्वोत्तर से दूर है। मगर रेल, सड़क और हवाई कनेक्टिविटी ने इस दूरी को सच्चे अर्थों में घटाना शुरू किया है।
हवाई संपर्क का भी यही हाल है। 2014 तक पूर्वोत्तर में केवल 9 हवाई अड्डे संचालित थे, जो अब 17 हो चुके हैं। उड़ान योजना ने छोटे शहरों और दुर्गम क्षेत्रों तक हवाई सेवा पहुँचाई। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में संकेत दिया कि जल्द ही मिजोरम में हेलीकॉप्टर सेवाएँ शुरू होंगी, जिससे दूर-दराज़ के इलाकों तक पहुँचना आसान होगा।
बिजली और ऊर्जा के मोर्चे पर भी तस्वीर बदली है। सौभाग्य योजना और ‘पावर फॉर ऑल’ कार्यक्रम के तहत लगभग हर घर तक बिजली पहुँची है। मिजोरम में जहाँ 2014 तक बिजली की पहुँच 70 प्रतिशत से कम थी, आज लगभग सार्वभौमिक हो चुकी है। उज्ज्वला योजना से 1.25 लाख से अधिक परिवारों को एलपीजी कनेक्शन मिले। यह बदलाव केवल आँकड़ों में नहीं बल्कि रोज़मर्रा के जीवन में महिलाओं के लिए राहत और स्वास्थ्य में सुधार के रूप में दिखता है।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में मिजोरम की युवा शक्ति का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि राज्य प्रतिभाशाली युवाओं से भरा है और सरकार का काम उन्हें सशक्त बनाना है। यही कारण है कि यहाँ 11 एकलव्य आवासीय विद्यालय पहले ही बन चुके हैं और 6 और निर्माणाधीन हैं। इसके अतिरिक्त, लगभग 4,500 स्टार्टअप और 25 इनक्यूबेटर इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। यह आँकड़ा साबित करता है कि पूर्वोत्तर अब केवल उपभोक्ता नहीं बल्कि नवाचार का भी केंद्र बन सकता है।
स्वास्थ्य सेवाओं में प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना और आयुष्मान भारत ने बड़ा असर डाला है। मिजोरम के लाखों परिवारों को अब मुफ्त इलाज की सुविधा उपलब्ध है। नए अस्पताल और मेडिकल कॉलेज निर्माणाधीन हैं। इसी तरह खेल अवसंरचना को भी प्राथमिकता दी जा रही है। यह क्षेत्र पहले ही भारत को मैरी कॉम और मीराबाई चानू जैसे विश्वस्तरीय खिलाड़ी दे चुका है। अब उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए संस्थागत ढाँचा तैयार किया जा रहा है।
आर्थिक दृष्टि से भी मिजोरम की सौगातें महत्वपूर्ण हैं। पूर्वोत्तर औद्योगिक विकास योजना के तहत निवेशकों को कर छूट और प्रोत्साहन दिया जा रहा है। बांस आधारित उद्योगों को वैश्विक बाजार से जोड़ने की योजना पर काम हो रहा है। “वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट” कार्यक्रम ने जिलों की पारंपरिक हस्तकला और उत्पादों को नया बाजार दिया है। इससे स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
इन तमाम प्रयासों का व्यापक असर पूर्वोत्तर की मानसिकता पर दिख रहा है। कभी अलगाव और हिंसा के लिए चर्चित यह क्षेत्र अब संवाद और विकास की भाषा बोल रहा है। मोदी ने मिजोरम से जो संदेश दिया कि समस्याओं का समाधान संवाद और विकास दोनों से होता है, वह न केवल क्षेत्र के लिए बल्कि पूरे भारत के लिए महत्व रखता है। क्योंकि जब सीमांत क्षेत्र मजबूत होते हैं तो राष्ट्र की एकता और सुरक्षा अधिक मजबूत होती है,
क्योंकि पूर्वोत्तर सिर्फ सीमांत राज्य नहीं हैं बल्कि भारत के ‘एक्ट ईस्ट’ विजन के द्वार हैं।
आज मिजोरम को मिली सौगातें केवल स्थानीय जनता के लिए राहत नहीं, वस्तुत: भारत की रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक शक्ति का विस्तार भी हैं। यह वह प्रक्रिया है जिसके जरिए पूर्वोत्तर अब हाशिये से निकलकर भारत की मुख्यधारा का अभिन्न हिस्सा बन रहा है। आने वाले वर्षों में यही आत्मविश्वास अमृतकाल में प्रवेश करते भारत की प्रगति का आधार बनेगा। इसलिए यह कहा जा सकता है कि मिजोरम और पूर्वोत्तर के विकास की यह यात्रा भारत की एकता और प्रगति के लिए अनिवार्य है। आज जब देश अमृतकाल की ओर बढ़ रहा है, तब पूर्वोत्तर का हर गांव, हर शहर और हर नागरिक उसी मुख्यधारा में खड़ा दिखाई दे रहा है, जो भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में आगे ले जाएगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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