पैंक्रियाटिक कैंसर: पिछले 50 वर्षों में कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे यह बीमारी पहले से कहीं अधिक सामान्य हो गई है। हर साल, दुनिया भर में 1.81 करोड़ नए कैंसर के मामले सामने आते हैं। भारत में, हर साल 11.5 लाख नए कैंसर के मामले दर्ज होते हैं, जिनमें से कुछ पैंक्रियाटिक कैंसर के होते हैं। हालांकि कैंसर के उपचार में प्रगति हुई है, लेकिन पैंक्रियाटिक कैंसर के मरीजों के जीवित रहने की संभावना अभी भी कम है। अच्छी बात यह है कि यदि प्रारंभिक लक्षणों का पता लगाया जाए, तो इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
पैंक्रियाटिक कैंसर के कारण
विशेषज्ञों के अनुसार, पैंक्रियाटिक कैंसर के कुछ प्रमुख कारण हैं जो इसके जोखिम को बढ़ाते हैं। इनमें लंबे समय तक धूम्रपान करना, परिवार में पैंक्रियाटिक कैंसर का इतिहास होना, मोटापा और मधुमेह शामिल हैं।
लक्षणों की पहचान
पैंक्रियाटिक कैंसर का सबसे सामान्य लक्षण पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द है। यह दर्द कभी-कभी तीव्र हो सकता है या हल्का महसूस हो सकता है, जो पीठ में भी फैल सकता है। हर पेट दर्द कैंसर का संकेत नहीं होता, लेकिन यदि दर्द होता है तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए। वजन में कमी भी एक महत्वपूर्ण लक्षण है। पाचन क्रिया में पैंक्रियास की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, इसलिए बार-बार अपच और वजन में कमी चिंता का विषय है।
गैस्ट्रिक अल्सर की पहचान
विशेषज्ञों का कहना है कि अपर गैस्ट्रोइंटेस्टिनल एंडोस्कोपी गैस्ट्रिक कैंसर की पहचान के लिए सबसे प्रभावी तरीका है। गैस्ट्रिक कैंसर के मामलों में, सर्जरी सबसे अच्छा विकल्प होता है, और कीमोथेरेपी तथा रेडियोथेरेपी से सर्जरी की सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
बचाव के उपाय
पैंक्रियाटिक कैंसर के प्रारंभिक लक्षण अक्सर सामान्य होते हैं और इन्हें नजरअंदाज किया जा सकता है, जिससे यह गंभीर समस्या बन जाती है। इससे बचने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं: संतुलित वजन बनाए रखें और नियमित व्यायाम करें। यह शुगर और गाल ब्लैडर की पथरी को रोकने में मदद करता है। शराब और धूम्रपान से दूर रहें, क्योंकि ये पैंक्रियाटिक कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं। कम फैट वाले आहार का सेवन करें, क्योंकि उच्च फैट वाले आहार से गाल ब्लैडर में पथरी हो सकती है। नियमित स्वास्थ्य जांच करवाते रहें, जिससे पैंक्रियाटिक कैंसर का समय पर पता लगाया जा सके।
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