Lesser Known Facts About Aghories: अघोरी साधु भारतीय समाज में सबसे रहस्यमयी और विवादास्पद साधुओं में से एक माने जाते हैं। उनकी साधना और जीवनशैली आम लोगों के लिए डर और कौतूहल का विषय बनी रहती है।
खासकर उनके शवों के अंगों को भोजन के रूप में ग्रहण करने की प्रक्रिया ने कई सवाल खड़े किए हैं। आइए इस लेख में समझते हैं कि अघोरी ऐसा क्यों करते हैं और इसके पीछे का आध्यात्मिक व दार्शनिक पक्ष क्या है।
अघोरी कौन होते हैं? अघोरी शिव भक्त होते हैं और वे भगवान शिव के “अघोर” रूप की आराधना करते हैं। उनके लिए यह साधना जीवन और मृत्यु के बीच के द्वंद्व को समाप्त करने का माध्यम है। अघोरियों का मानना है कि सृष्टि में कोई भी चीज अपवित्र या अछूत नहीं है। वे इस सिद्धांत पर आधारित साधना करते हैं कि जन्म और मृत्यु केवल एक प्रक्रिया है और आत्मा अमर है।
शव भोजन का महत्व अघोरी शवों के अंगों को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं, जो एक सामान्य व्यक्ति के लिए बेहद विचित्र और भयावह लग सकता है। लेकिन इसके पीछे उनकी साधना और विश्वास का गहन अर्थ छिपा होता है:
शव खाने की प्रक्रिया और उसका मंजर अघोरी आमतौर पर शव को श्मशान घाट में पाते हैं। वे इसे एक पवित्र कर्म मानते हैं और शव से जुड़े किसी भी प्रकार के विकार को नकारते हैं। शव का भोजन करते समय:
- वे तांत्रिक मंत्रों का जाप करते हैं।
- अपने इष्ट देव शिव की आराधना करते हैं।
- साधना में वे मानसिक और शारीरिक स्थिति को स्थिर रखने का प्रयास करते हैं।
इस दौरान उनका मंजर आम लोगों के लिए बेहद डरावना हो सकता है। श्मशान की आग, शव के अवशेष, और उनका ध्यानमग्न स्वरूप अद्भुत और रहस्यमयी दृश्य प्रस्तुत करता है।
अघोरी जीवन का संदेशअघोरियों का जीवन हमें यह संदेश देता है कि जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उनके अनुसार, मनुष्य को अपने भीतर के सभी भय, द्वेष और भेदभाव को समाप्त करना चाहिए। हालांकि, उनकी साधना की विधियां समाज के लिए चुनौतीपूर्ण और अस्वीकार्य हो सकती हैं, लेकिन उनकी साधना का अंतिम लक्ष्य मानवता के भौतिक और आध्यात्मिक बंधनों से मुक्ति है।
विवाद और निष्कर्षअघोरी साधना और उनके कर्म समाज के नियमों और आदर्शों से विपरीत हो सकते हैं। लेकिन उनके लिए यह एक गहन और व्यक्तिगत साधना है। यह आवश्यक है कि हम उनकी साधना को समझने का प्रयास करें और उनके जीवन के गहरे अर्थ को जानें। अघोरियों का जीवन हमें यह सिखाता है कि भय और भेदभाव से परे जाकर सच्चे आत्मज्ञान की खोज कैसे की जा सकती है। हालांकि, उनके तरीके और कर्म हर किसी के लिए स्वीकार्य नहीं हो सकते, लेकिन उनकी साधना का उद्देश्य मानवता को जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्त करना है।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
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