Mumbai , 14 अक्टूबर . मीरा नायर का नाम सिर्फ एक फिल्म निर्माता के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसी कलाकार के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने अपने काम के जरिए समाज की विविध और जटिल समस्याओं को पर्दे पर बड़े ही खूबसूरती से पेश किया है. उनकी फिल्मों में केवल मनोरंजन नहीं होता, बल्कि वे दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देती हैं.
मीरा नायर ने अपने करियर में कई ऐसी फिल्में बनाई हैं, जो न केवल मनोरंजक हैं, बल्कि समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं. यही वजह है कि उनकी फिल्में न सिर्फ India में बल्कि दुनिया भर में सराही जाती हैं.
मीरा नायर का जन्म 15 अक्टूबर 1957 को Odisha के राउरकेला में हुआ था. उनका परिवार काफी पढ़ा-लिखा और सामाजिक रूप से जागरूक था. उनके पिता अमृत लाल नायर भारतीय प्रशासनिक सेवा में अधिकारी थे और उनकी मां परवीन नायर एक समाजसेवी थीं. इस वजह से बचपन से ही मीरा ने सामाजिक मुद्दों के प्रति एक अलग दृष्टिकोण विकसित किया. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भुवनेश्वर और शिमला में पूरी की और दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से समाजशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्कॉलरशिप मिली, लेकिन उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला लिया. ये उनके व्यक्तित्व की एक खास बात थी कि वे हमेशा अपने मन की सुनती थीं और नए अनुभवों के लिए तैयार रहती थीं.
मीरा नायर ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत एक्टिंग से की थी, लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ आ गया कि उन्हें कहानीकार बनना चाहिए. उन्होंने ‘जामा मस्जिद स्ट्रीट जर्नल’ नामक एक शॉर्ट फिल्म बनाई, जो दिल्ली की पुरानी गलियों पर आधारित थी. इसके बाद उन्होंने अपने दोस्त सूनी तारापोरवाला के साथ मिलकर ‘सलाम बॉम्बे’ की स्क्रिप्ट लिखी. यह फिल्म Mumbai की झुग्गियों में रहने वाले बच्चों की जिंदगी को बयां करती है. ‘सलाम बॉम्बे’ ने न केवल भारतीय दर्शकों का दिल जीता, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी खूब प्रशंसा हासिल की. इसे ऑस्कर में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए नामांकित किया गया, जो किसी भारतीय फिल्म के लिए बड़ी उपलब्धि थी. इस फिल्म में मीरा ने गरीबी, बच्चों की सुरक्षा और शहर की कठिनाइयों को बहुत संवेदनशीलता से दिखाया.
मीरा की फिल्मों में सामाजिक और Political मुद्दे गहराई से झलकते हैं. उनकी ‘मिसिसिपी मसाला’ फिल्म ने भारतीय प्रवासियों की जिंदगी और नस्लभेद के मुद्दे को उठाया, जबकि ‘कामसूत्र: प्रेम की एक कहानी’ में प्रेम, विवाह और भारतीय समाज की रूढ़ियों पर सवाल उठाए गए. ‘मानसून वेडिंग’ में पारंपरिक भारतीय शादी की रस्मों के बीच नई सोच और परिवार के बदलाव की कहानी देखने को मिली. उनका फिल्मों के जरिए हमेशा से एक खास मकसद रहा है कि वे मनोरंजन के साथ-साथ समाज में फैली पुरानी सोच में बदलाव की लाएं.
मीरा नायर को उनके काम के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं. ‘सलाम बॉम्बे’ को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला, तो ‘मानसून वेडिंग’ ने कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में नाम कमाया. मीरा की फिल्मों को दुनियाभर में सम्मान मिला और वे विश्व की एक प्रभावशाली फिल्मकार के रूप में उभरीं. उनके काम ने न केवल भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई पहचान दी, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर बातचीत को भी बढ़ावा दिया.
–
पीके/एएस
You may also like
पर्सनैलिटी राइट्स की सुरक्षा के लिए दिल्ली हाईकोर्ट पहुंचे ऋतिक रोशन, बुधवार को सुनवाई
5 साल पहले भागी बीवी पति के 35 लाख लेने उडकर आ गई, ढिठाई देख पीट लेंगे सिर
बिहार चुनाव : गोरियाकोठी सीट पर सत्ता का रोमांचक खेल
Sim Card का ये नियम टूटा तो खानी पड़ सकती है जेल की हवा, जुर्माना भी लगेगा भारी, 99% लोग हैं अनजान!
यूएई में पत्नी की हत्या में 12 साल से फरार चल रहे आरोपी को सीबीआई ने किया गिरफ्तार