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मौद्रिक नीति में आरबीआई की ढील से वित्त वर्ष 2026 में ऋण में 10.8 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना : रिपोर्ट

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मुंबई, 8 अप्रैल . हाल के महीनों में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा मौद्रिक नीति में ढील देने के लिए उठाए गए कदमों से 2025-2026 में 19 लाख करोड़ रुपए से 20.5 लाख करोड़ रुपए तक के सालाना ऋण विस्तार में लगभग 10.8 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है. यह जानकारी मंगलवार को जारी आईसीआरए की रिपोर्ट में दी गई.

ऐसे उपायों में रेपो रेट में कटौती, लिक्विडिटी कवरेज अनुपात (एलसीआर) फ्रेमवर्क में प्रस्तावित बदलावों को स्थगित करना और इंफ्रा परियोजनाओं पर अतिरिक्त प्रावधान, साथ ही असुरक्षित उपभोक्ता ऋण और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को ऋण देने पर बढ़े हुए जोखिम भार को वापस लेना शामिल है.

जमा जुटाने में लगातार चुनौतियां, उच्च ऋण-जमा (सीडी) अनुपात, असुरक्षित खुदरा और छोटे व्यवसाय ऋणों में बढ़ते तनाव, ऋण वृद्धि पर एक बाधा बने रहेंगे.

रिपोर्ट में कहा गया है, “विकास समर्थक नियामक रुख ने वित्त वर्ष 2025 की शुरुआती अवधि में ‘धीमी वृद्धिशील ऋण वृद्धि’ की एक संक्षिप्त अवधि के बाद वर्ष की चौथी तिमाही में ऋण वृद्धि के लिए उधारदाताओं की जरूरत को फिर से पैदा किया है.”

आरबीआई द्वारा लिक्विडिटी इंजेक्शन की हाल की घोषणाओं का उद्देश्य दरों में कटौती के तेज ट्रांसमिशन को बढ़ावा देना है.

पिछले कुछ वर्षों में बैंकिंग क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रतिस्पर्धी मूल्य पर जमा राशि, खास तौर पर खुदरा जमा राशि जुटाना है, क्योंकि एलसीआर पर दबाव है.

रिपोर्ट के अनुसार, दूसरे निवेश माध्यमों से बढ़ती प्रतिस्पर्धा और निवेशकों द्वारा सावधि जमा राशि को प्राथमिकता दिए जाने के कारण कम लागत वाले चालू और बचत खाते (सीएएसए) शेष राशि में कमी आई है, जिससे बैंकों की निधियों की लागत प्रभावित हुई है.

इसके अलावा, बढ़े हुए सीडी अनुपात के कारण बैंकिंग क्षेत्र की थोक जमा राशि पर निर्भरता बढ़ गई है, जिससे क्षेत्र की औसत एलसीआर में लगातार गिरावट आई है.

आईसीआरए के उपाध्यक्ष सचिन सचदेवा ने कहा, “उच्च सीडी अनुपात के साथ, वित्त वर्ष 2026 के दौरान भी जमा जुटाने के लिए प्रतिस्पर्धा अधिक रहने की संभावना है, जो बैंकों की जमा दरों में कटौती करने की क्षमता को सीमित कर देगा.

हालांकि, एक्सटर्नल बेंचमार्क-लिंक्ड लोन में गिरावट और ऋण पूंजी बाजारों से प्रतिस्पर्धा के कारण लेंडिंग रेट्स दबाव में रह सकती हैं.

फरवरी 2025 से रेपो दरों में संचयी 75 आधार अंकों (बीपीएस) की कटौती की उम्मीद के साथ, हम उम्मीद करते हैं कि वित्त वर्ष 2026 के दौरान बैंकों के लिए नेट इंटरेस्ट मार्जिन (एनआईएम) में 15-17 बीपीएस की गिरावट आएगी.”

उन्होंने कहा, “हालांकि आईसीआरए को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2026 में लाभप्रदता में गिरावट आएगी और परिसंपत्तियों पर रिटर्न (आरओए) और इक्विटी पर रिटर्न (आरओई) वित्त वर्ष 2026 में क्रमशः 1.1-1.2 प्रतिशत और 12.1-13.4 प्रतिशत पर रहेगा, लेकिन फ्रेश कैपिटल पर निर्भरता के बिना अनुमानित वृद्धि के लिए ये आरामदायक बने रहने का अनुमान है, जिससे आईसीआरए का इस क्षेत्र के लिए स्थिर दृष्टिकोण है.”

एसकेटी/

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