वाराणसी, 5 नवंबर . हिंदू धर्म में काशी को सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक आस्था, एक भावना और मोक्ष का द्वार माना जाता है. कहते हैं कि यह शहर उतना ही पुराना है जितना खुद समय. यही कारण है कि इसे आनंदवन और मोक्ष नगरी भी कहा गया है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, काशी भगवान शिव का प्रिय धाम है. यहां आज भी महादेव माता पार्वती के साथ विराजमान हैं.
कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया तो वे उन्हें कैलाश पर्वत पर ले गए. कुछ समय तक सब ठीक रहा, लेकिन फिर पार्वती जी को लगा कि शादी के बाद भी वे अपने पिता के घर ही रह रही हैं. एक दिन उन्होंने भोलेनाथ से कहा कि हर स्त्री विवाह के बाद अपने पति के घर जाती है, पर मैं तो अब तक अपने पिता के घर ही रह रही हूं.
माता पार्वती की यह बात सुनकर भगवान शिव उन्हें लेकर पृथ्वी पर आए और गंगा तट पर बसे उस दिव्य स्थान काशी को अपना घर बनाया.
काशी स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर में स्वयं महादेव विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं. यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि सनातन संस्कृति और अध्यात्म का अद्भुत संगम भी है. मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान विश्वनाथ के दर्शन करता है, वह अपने सारे पापों से मुक्त हो जाता है और उसके जीवन में शांति एवं समृद्धि आती है.
कहा जाता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन भगवान विश्वनाथ की आराधना करता है, उसकी जीवन यात्रा की सारी जिम्मेदारी स्वयं महादेव अपने ऊपर ले लेते हैं. भक्त के दुख, संकट और कष्ट मिटाकर शिव उसे मोक्ष का मार्ग प्रदान करते हैं. यही कारण है कि काशी को मोक्ष नगरी भी कहा जाता है.
काशी की गलियों, घाटों और मंदिरों में जीवन और मृत्यु दोनों का अनोखा संगम देखने को मिलता है. लोग अपने जीवन के अंतिम क्षण काशी में बिताने आते हैं. ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति काशी में अपने प्राण त्यागता है, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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पीआईएम/वीसी
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