मुजफ्फरनगर, 6 जुलाई . उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद में मोहर्रम के अवसर पर शिया समुदाय ने विभिन्न इमामबाड़ों से ताजिया जुलूस निकाले, जो शांतिपूर्वक कर्बला पहुंचकर संपन्न हुए. इन जुलूसों में ताजिया, झंडे और निशान के साथ गुलजना घोड़े को शामिल किया गया, जो इमाम हुसैन की शहादत की याद में निकाले जाते हैं.
बताया जाता है कि 1400 वर्ष पूर्व हजरत मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को यजीद ने कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया था. उनकी शहादत की याद में हर वर्ष 10 मोहर्रम को आशुरा के रूप में गम मनाया जाता है.
शिया समुदाय के लोगों ने बताया कि जुलूस में शामिल ताबूत, दरी, निशान, आलम और देश का झंडा इमाम हुसैन की याद का प्रतीक हैं.
गुलजना घोड़ा, जिस पर इमाम हुसैन सवार थे, उनकी शहादत का प्रतीक है. उस दिन उनके साथ 72 लोग शहीद हुए थे, जबकि दुश्मनों की संख्या हजारों में थी. इमाम हुसैन ने लोगों की रक्षा के लिए अपनी कुर्बानी दी थी.
जुलूस किदवई नगर, मल्लूपुरा, नियाजीपुरा, खालापार और अन्य इमामबाड़ों से शुरू होकर शहर के विभिन्न मार्गों से होता हुआ काली नदी के किनारे स्थित कर्बला पहुंचा, जहां ताजिया दफन किए गए.
एसपी सिटी सत्यनारायण प्रजापत ने बताया कि जनपद में कुल 74 जुलूस निकाले गए, जिनमें सबसे प्रमुख शहर का जुलूस था. इस जुलूस में खादर वाला, किदवई नगर, लद्धावाला, मिमराना और मल्लूपुरा के लोग शामिल हुए. यह जुलूस बल्लम हलवाई के सामने वाली गली से होते हुए काली नदी के दूसरी ओर कर्बला तक पहुंचा. अन्य जुलूस भी शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए.
उन्होंने कहा कि जुलूस के लिए सेक्टर स्कीम लागू की गई थी, जिसमें मजिस्ट्रेट और पुलिस अधिकारियों की तैनाती की गई थी. पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया गया और पुराने प्रोटोकॉल के अनुसार मार्ग व्यवस्था सुनिश्चित की गई. जुलूस के दौरान शिया समुदाय ने इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए उनकी कुर्बानी को श्रद्धांजलि दी. स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए, जिससे सभी जुलूस शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुए. इस अवसर पर समुदाय के लोगों ने एकजुटता और भाईचारे का संदेश दिया, साथ ही शांति और सद्भाव बनाए रखने में प्रशासन का सहयोग किया.
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एकेएस/डीएससी
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