लाइव हिंदी खबर :- इस साल का नोबेल पुरस्कार रसायनशास्त्र के क्षेत्र में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया तीन देशों के वैज्ञानिकों को मिला है। जापान के सुसुमु कितागावा, ऑस्ट्रेलिया के रिचर्ड रॉबसन और अमेरिका के उमर एम याघी को दिया गया है। स्वीडन की रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने बुधवार को घोषणा करते हुए बताया कि इन वैज्ञानिकों ने मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOF) नाम की ऐसी रासायनिक संरचना विकसित की है, जो गैस और रसायनों को अपने अंदर समा सकती है और उन्हें जरूरत पड़ने पर छोड़ भी सकती है।
इन वैज्ञानिकों ने परमाणुओं को जोड़कर ऐसी जालीदार संरचनाएं तैयार की हैं। जिनके अंदर बहुत सूक्ष्म खाली जगह होती हैं। इन जगहों के कारण इनमें गैसे, नमी या रासायनिक पदार्थ आसानी से गुजर सकते हैं। यही तकनीक आने वाले समय में प्रदूषण हटाने, रेगिस्तानी हवा से पानी निकालने, कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने और ऊर्जा बचाने के काम में क्रांतिकारी साबित हो सकती है।
उमर याघी ने साल 1995 में पहली बार मेटल ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (MOF) की अवधारणा की और 1999 में MOF-5 नामक संरचना बनाई। जिसकी कुल ग्राम मात्रा में फुटबॉल मैदान जितना सतही क्षेत्र होता है। उन्होंने रेगिस्तान की सूखी हवा से भी नमी खींचकर पानी बनाने का तरीका दिखाया।
सुसुमु कितागावा ने साल 1997 में ऐसे MOF तैयार किए, जो स्थिर और लचीले थे। उन्होंने दिखाया कि यह संरचनाएं गैसों को पकड़ने और छोड़ने में बहुत उपयोगी हैं, ठीक वैसे जैसे हमारे फेफडे हवा को अंदर बाहर करते हैं।
रिचर्ड रॉबसन ने 1980 के दशक में तांबे और कार्बनिक अणुओं को जोड़कर पहली बार ऐसी क्रिस्टल जैसी रचना तैयार की जिसमें खाली जगहें थी यही MOF की शुरुआत थी। उनकी खोज का महत्व इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि अब इन संरचनाओं का उपयोग स्वच्छ हवा और अपनी ऊर्जा संरक्षण और दवाओं को नियंत्रित आपूर्ति जैसे क्षेत्रों में किया जा सकेगा। रेगिस्तानी क्षेत्रों में नमी से पानी बनाना, जहरीली गैसों को कैप्चर करना और वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड हटाना अब संभव हो गया है।
तीनों वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना करीब 10.3 करोड रुपए के स्वर्ण पदक और प्रमाण-पत्र के रूप में दिया जाएगा। पुरस्कार वितरण समारोह 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में होगा। वैज्ञानिकों की यह खोजें मानव जीवन और पर्यावरण दोनों के लिए मील का पत्थर साबित होगी। विज्ञान की दुनिया में इसे एक ऐसी उपलब्धि माना जा रहा है। जिसने रसायन शास्त्र को प्रयोगशाला से निकालकर सीधे पृथ्वी के भविष्य से जोड़ दिया है।
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