बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के पक्ष और विपक्ष में बहस जारी है। इस बीच आज सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सुनवाई करेगी। विपक्ष और कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चुनाव आयोग के इस फैसले को चुनौती दी है।
कांग्रेस समेत 9 अन्य विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर लिखा कि इस प्रक्रिया में "दुर्भावनापूर्ण और मनमानी प्रक्रिया की वजह से भारी संख्या में मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए जाने की पूरी आशंका है।" कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग लोगों से ऐसे दस्तावेज दिखाने को कह रहा है, जिनमें आधार कार्ड और वोटर आईडी शामिल नहीं हैं, जिससे लाखों मतदाताओं के नाम सूची से बाहर होने का खतरा है।
इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता अरशद अजमल और रूपेश कुमार ने भी एक नई याचिका दायर की है। उनकी याचिका में कहा गया है कि आयोग का यह फैसला जन्म, निवास और नागरिकता से संबंधित मनमानी, अनुचित और असंगत दस्तावेजीकरण आवश्यकताओं को लागू कर रहा है। उनका तर्क है कि यह प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव तथा प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांतों को कमजोर करती है, जो संविधान की मूल संरचना के अभिन्न अंग हैं।
दूसरी ओर, वकील अश्विनी उपाध्याय ने चुनाव आयोग के फैसले का समर्थन करते हुए एक अलग याचिका दायर की है। उन्होंने कोर्ट से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का निर्देश देने की अपील की है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सिर्फ भारतीय नागरिक ही राजनीति और नीति निर्धारण में भाग लें, न कि "अवैध विदेशी घुसपैठिए।"
सुप्रीम कोर्ट फर सभी की निगाहें टिकी हैं। यह देखना अहम होगा कि क्या न्यायालय चुनाव आयोग के इस पुनरीक्षण प्रक्रिया पर रोक लगाता है, या इसमें किसी प्रकार के बदलाव का निर्देश देता है, या फिर इसे जारी रखने की अनुमति देता है। क्योंकि अदालत फैसला बिहार के लाखों मतदाताओं के मतदान के अधिकार और आगामी विधानसभा चुनावों पर सीधा प्रभाव डालेगा।
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