12 जून 2025 की दोपहर, एयर इंडिया की फ्लाइट AI171- लंदन गैटविक को जाने वाला एक बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर अहमदाबाद एयरपोर्ट से उड़ान भरने के चंद सेकंड बाद ही ज़मींदोज हो गया। विमान में सवार सभी 241 यात्रियों और चालक दल के सदस्यों की मौत हो गई। इसके गिरने से आसपास के भी 20 से ज़्यादा लोग मारे गए, जिनमें से कई मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर थे और मेस में लंच कर रहे थे। इस हादसे ने देश को झकझोर दिया। शोक और गुस्से के बीच भारतीय विमानन की नए सिरे से जांच की जरूरत महसूस की जा रही है। फ्लाइट का ब्लैक बॉक्स बरामद हो चुका है। पड़ताल जारी है।
कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर के साथ ब्लैक बॉक्स को डिकोड करने की एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें कई सप्ताह लगेंगे। लेकिन जांच के बीच लोगों के मन में उठते सवाल दुर्घटना के असल कारणों से कहीं बढ़कर हैं। क्या इसे रोका जा सकता था? क्या ऐसा फिर हो सकता है? क्या भारतीय विमानन उतना ही सुरक्षित है जितना दावा किया जाता है?
ड्रीमलाइनर: वास्तविकता से हिलती क्रांतिअपनी ईंधन दक्षता, मजबूती के साथ हल्के वजन और कम शोर के कारण बोइंग 787 ड्रीमलाइनर को 2011 में इसकी शुरुआत से ही एक क्रांतिकारी विमान माना जाता है। कई वायवीय और हाइड्रोलिक कार्यों की जगह उन्नत विद्युत प्रणालियों और दक्षता में सुधार के साथ, इसने एक मजबूत वैश्विक सुरक्षा रिकॉर्ड बनाया है। दुनिया भर में 1,100 से अधिक ड्रीमलाइनर उड़ान भर रहे हैं, और पहली बार है जब एआई171 ऐसे गंभीर हादसे का शिकार हुआ है।
लेकिन इस विमान का इतिहास बेदाग हो, ऐसा भी नहीं। 2013 में, लिथियम-आयन बैटरी में आग के बाद ड्रीमलाइनर के पूरे बेड़े पर उड़ान से रोक लगा दी गई थी, जिसमें एयर इंडिया संचालित विमान भी थे। बोइंग के एक इंजीनियर और व्हिसलब्लोअर जॉन बार्नेट ने ड्रीमलाइनर के इलेक्ट्रिकल सिस्टम और बैटरी घटकों के साथ संभावित सुरक्षा मुद्दों को लेकर चिंता जताई थी। उन्होंने सिस्टम के अतिरेक (रिडंडेंसी) और विफलता मोड से संबंधित जोखिमों की ओर इशारा किया, लेकिन शायद उन पर पूरी तवज्जो नहीं दी गई!
तब की जांच में बैटरी डिजाइन में आंतरिक शॉर्ट सर्किट निकला, जिसके बाद अमेरिकी संघीय विमानन प्रशासन (एफएए) और अन्य विनियामकों ने वैश्विक स्तर पर इसकी उड़ानों पर रोक लगा दी। 1979 के बाद यह पहली ऐसी कार्रवाई थी। बोइंग ने बैटरी सिस्टम को बेहतर इन्सुलेशन, आग की रोकथाम और निकास समाधानों के साथ फिर से डिजाइन किया। हालांकि 787 विमान नए आत्मविश्वास के साथ सेवा में लौट आए, लेकिन बैटरी संकट ने रेखांकित कर दिया था कि अत्याधुनिक विमानों में भी कैसे-कैसे छिपे हुए खतरे संभव हैं।
हालिया त्रासदी ने सुरक्षा को लेकर दीर्घकालिक आश्वस्ति वाला भाव ध्वस्त कर दिया है। अगर ड्रीमलाइनर जैसा उन्नत विमान बिना किसी चेतावनी के हादसे का शिकार हो सकता है, तो नीचे और क्या-क्या छिपा हो सकता है? चिंता वाजिब है!
बोइंग दुःस्वप्न की वापसीअहमदाबाद दुर्घटना ने गुणवत्ता नियंत्रण और सुरक्षा को लेकर पहले से ही सवालों से जूझ रहे बोइंग पर नए सिरे से दबाव बना दिया है। डिजाइन दोषों और पायलटों के अपर्याप्त प्रशिक्षण के कारण हुई दुर्घटनाओं में 346 लोगों के जान गंवाने के बाद उठते सवालों और 737 मैक्स की विफलताओं से अभी पूरी तरह उबर भी नहीं पाया कि ताजा हादसे ने उड़ान के साथ ही टुकड़ों में गिरने और नए जेट में गुणवत्ता संबंधी तमाम मुद्दों के साथ फिर से इसकी घेराबंदी कर दी है।
इसने न सिर्फ बोइंग या एयर इंडिया, बल्कि पूरे विमानन उद्योग की वैश्विक जांच जरूरतों को फिर से हवा दे दी है। उत्पादन (विनिर्माण) मानकों और रखरखाव से लेकर विनियामक निरीक्षण और पायलट प्रशिक्षण तक, तमाम प्रणालीगत मुद्दे फिर से सुर्खियों में हैं।
क्या डीजीसीए के पास जवाब है?हादसे ने न सिर्फ बोइंग को लेकर सवाल उठाए, भारत के अपने विमानन निगरानी तंत्र की संभावित कमजोरियां भी उजागर कर दीं। भारत का सर्वोच्च विमानन नियामक, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए), अक्सर एफएए और यूरोपीय संघ विमानन सुरक्षा एजेंसी (ईएएसए) जैसे विदेशी समकक्षों से प्रमाणन और सुरक्षा निष्कर्षों पर निर्भर करता है। अनुभवी पायलट और विमानन सुरक्षा के प्रति चिंतित कैप्टन अमित सिंह का मानना है कि यह अपर्याप्त है। वह भारत के नियामक ढांचे को “कॉस्मेटिक” कहते हुए चेतावनी देते हैं कि स्वतंत्र तकनीकी विशेषज्ञता और प्रवर्तन क्षमता विकसित किए बिना, हमारे साथ दूसरों की निगरानी कमियां ढोने का जोखिम बना रहेगा।
हमारा एक स्वतंत्र विमानन प्राधिकरण?हादसे ने अमेरिका के एफएए या ब्रिटेन के नागरिक विमानन प्राधिकरण की तर्ज पर एक स्वायत्त विमानन प्राधिकरण बनाने की लंबे समय से अनसुनी सिफारिश फिर से जीवित कर दी है। 2013 में, भारत सरकार ने अपना नागरिक विमानन प्राधिकरण बनाने का प्रस्ताव किया था। मकसद डीजीसीए के बदले वित्तीय और प्रशासनिक रूप से स्वतंत्र और राजनीतिक या वाणिज्यिक हस्तक्षेप से मुक्त सुरक्षा मानकों को निर्धारित करने और लागू करने में सक्षम एक नई संस्था बनाना था। यह एकीकृत संरचना के तहत दुर्घटना जांच, पर्यावरण चिंताओं और उपभोक्ता शिकायतों की देखरेख भी करती। लेकिन, विस्तृत योजना और बजटीय अनुमानों के बावजूद, यह इरादा राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और नौकरशाही की जड़ता का शिकार हो गया। विशेषज्ञों की नज़र में सिर्फ ऐसा स्वतंत्र प्राधिकरण ही राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र में निष्पक्ष और विशेषज्ञ-नेतृत्व वाली निगरानी सुनिश्चित कर सकता है।
जे.के. सेठ रिपोर्ट फिर खंगालने की जरूरतइसने भारतीय विमानन इतिहास के सबसे ज्यादा खुलासा करने वाले और कहीं गहरे दफन दस्तावेजों में से एक ‘एयर मार्शल जे.के. सेठ की 1997 की रिपोर्ट’ को लेकर दिलचस्पी फिर जगा दी है। इसमें डीजीसीए की अपनी प्रणालीगत खामियां उजागर की गई थीं, जिसमें खराब समन्वय, स्वतंत्र जांच निकायों की कमी और डीजीसीए और एएआईबी के एक ही मंत्रालय के तहत काम करने से होने वाला विनियामक कब्ज़ा शामिल है। रिपोर्ट में संरचनात्मक सुधार, जांचकर्ताओं की आजादी, बेहतर प्रशिक्षण और आधुनिक सुरक्षा ऑडिट तंत्र की सिफारिश थी, लेकिन ज्यादातर सिफारिशें नजरअंदाज कर दी गईं। कई मुद्दे तीन दशक बाद आज भी अनसुलझे हैं।
सुरक्षा योजनाएं या महज कागजी खनापूर्ति!विमानन सुरक्षा के लिए भारत का मौजूदा रणनीतिक रोडमैप, राष्ट्रीय विमानन सुरक्षा योजना (एनएएसपी) 2024-2028, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ जुड़े व्यापक लक्ष्यों की रूपरेखा बनाता है। डीजीसीए ने इसे तैयार तो विमानन उद्योग के हितधारकों के परामर्श से किया है, लेकिन कार्यान्वयन में देरी हुई। ऑडिट बैकलॉग, सीमित जनशक्ति और बजटीय बाधाओं ने इसकी प्रगति रोकी। विशेषज्ञों का मानना है कि जबतक एनएएसपी को वास्तविक प्रवर्तन और क्षमता-निर्माण से लैस नहीं किया जाता, बड़े बदलाव का यह दस्तावेज ‘दिखावटी’ बना रहेगा।
एआई171 दुर्घटना ने इतना तो साफ कर दिया है कि- टुकड़ों-टुकड़ों में होने वाला सुधार और विलंबित कार्यान्वयन अब नहीं चलने वाला।
पायलटों को पर्याप्त आराम का सवालपायलटों की थकान को विमानन दुर्घटनाओं में वैश्विक रूप से स्वीकृत जोखिम माना गया है और सख्त ड्यूटी घंटा मानक लागू करने के मामले में भारत ऐतिहासिक रूप से पिछड़ा है। हालांकि, जून 2024 से प्रभावी और चरणबद्ध कार्यान्वयन के तहत नए उड़ान ड्यूटी समय सीमा नियमों का मकसद इसी समस्या का समाधान करना है। इनमें आराम की अवधि बढ़ाना, रात में लैंडिंग और उड़ान के घंटे सीमित करना शामिल है। कर्मचारियों की संख्या और परिचालन लागत को लेकर चिंतित एयरलाइनों के प्रतिरोध के बावजूद, अदालतें और पायलट एसोसिएशन नवंबर 2025 तक इसके पूर्ण कार्यान्वयन का दबाव बनाए हुए हैं। विशेषज्ञ इसे एक महत्वपूर्ण बदलाव मानते हैं, लेकिन तभी जब इन्हें अक्षरशः और जिम्मेदारी से लागू किया जाए।
एक पल का हिसाबएयर इंडिया ड्रीमलाइनर दुर्घटना ने उजागर कर दिया कि भारत के विमानन क्षेत्र में भारी उछाल के पीछे सुधारों की उपेक्षा, अत्यधिक दबाव वाले नियामक और प्रणालीगत कमजोरियां छिपी हैं। यह दुर्घटना स्वाभाविक रूप से उड़ान को कम सुरक्षित भले न बनाती हो- सतर्कता, विनियामक निरीक्षण और सुरक्षा मानकों में निरंतर सुधार पर जोर तो देती है।
यह एक महत्वपूर्ण क्षण है- न सिर्फ बोइंग या एयर इंडिया के लिए, बल्कि हर उस संस्था के लिए जिन पर आकाश को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी है। ताजा त्रासदी से गंभीर सबक लिया जाए तो- अगर भारत अंततः अपने विनियामक सशक्त बनाता है, थकान नियम सख्ती से लागू करता है, नागरिक उड्डयन प्राधिकरण पर पुनर्विचार के साथ एक सच्ची सुरक्षा संस्कृति बनाता है- तो शक नहीं कि इस अंधेरे समय से अब भी कुछ स्थायी और सकारात्मक निकाल सकता है। तब तक, देश यह पूछता रहेगा कि क्या हम वास्तव में अपना आकाश सुरक्षित रखने के लिए पर्याप्त प्रयास कर रहे हैं।
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