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Mohini Ekadashi 2025 Vrat Katha : मोहिनी एकादशी व्रत कथा महात्म्य, श्री कृष्ण ने बताया युधिष्ठिर को यह रहस्य

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Mohini Ekadashi Vrat Katha : युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा, हे जनार्दन! वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है? उसकी विधि क्या है, सो मुझसे कहिए। इस पर भगवान श्री कृष्ण ने बताया, हे धर्मनन्दन! पहले श्री रामचन्द्रजी के पूछने पर जिस कथा को वशिष्ठजी ने कहा, उस कथा को मैं कहता हूँ!श्री रामचन्द्रजी बोले, सब पापों और दुःखों को दूर करने वाले व्रतों में श्रेष्ठ व्रत को मैं सुनना चाहता हूँ।वशिष्ठजी बोले, हे राम! तुमने अच्छा प्रश्न किया हैं तुम्हारी बुद्धि श्रद्धा युक्त है तुम्हारे नाम लेने से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है! तो भी संसार के हित के लिए पवित्र करने वाले व्रतों में उत्तम व पवित्र व्रत को मैं तुमसे कहूँगा।हे राम! वैशाख शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है, उसका नाम मोहिनी है। वह सब पापों को हरने वाली है। मैं सत्य कहता हूँ कि इसके करने से प्राणी मोह जाल व पातकों के समूह से छूट जाता है।हे राम! यह पापों को दूर करने वाली, दुःखों को नष्ट करने वाली है। हे राम! इस पुण्य को देने वाली शुभ कथा को एकाग्रचित्त से सुनो। जिसके श्रवण मात्र से सब बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं।धुतियान् नाम का राजा राज्य करता था। वह धैर्यवान् सत्यवादी राजा चंद्रवंश में पैदा हुआ था। वह प्याऊ, यज्ञशाला, तालाब, बगीचे आदि बनवाता था। उसके पांच पुत्र थे, समान, धुतिमान, मेधावी, सुकृत और धृष्टबुद्धि। पाँचवाँ पुत्र धृष्टबुद्धि बड़ा पापी था। जुआ आदि का उसको व्यसन था। देवता, अतिथि, वृद्ध, पितर और ब्राह्मणों आदि का पूजन नहीं करता था। वह अन्यायी और दुष्ट था, पिता के धन को नष्ट करता था। अभक्ष्य वस्तुओं को खाता था, उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया और बांधवों ने भी उसको त्याग दिया। उसने अपने शरीर के आभूषण भी बेच दिए। वस्त्रहीन और भूख से वह चिंता करने लगा, मैं क्या करूँ और कहाँ जाऊँ और किस उपाय से प्राण बचे? फिर उसी नगरी में वह चोरी करने लगा। वह कई बार पकड़ा गया और छोड़ दिया गया, अंत में वह दुराचारी, धृष्टबुद्धि मजबूत बेड़ियों से बाँधा गया। वह राजा के डर से गहन वन में चला गया। वहाँ भूख प्यास से पीड़ित होकर इधर-उधर घूमने लगा फिर सिंह की तरह मृग, शूकर और चीते को मारने लगा। वह निर्दयी धृष्टबुद्धि पूर्वजन्म के पापों से पापरूपी कीचड़ में फँस गया। दुःख, शोक से युक्त होकर वह दिन-रात चिंता करता था। कुछ पुण्य के उदय होने से वह कौण्डिल्य ऋषि के आश्रम में गया। वैशाख महीने में गंगा स्नान किए हुए तपस्वी कौंडिल्य मुनि के पास शोक से पीड़ित धृष्टबुद्धि गया।कौण्डिल्य ऋषि के सामने हाथ जोड़कर बोला, हे ब्राह्मण ऐसा प्रायश्चित बताओ जिसके बिना यत्न किए जन्म भर के पापों का नाश हो जाए।कौण्डिल्य ऋषि बोले, जिसको करने से तेरे सभी पाप नष्ट हो जाए उस उपाय को तू सावधान होकर एकाग्रचित्त से सुन। वैशाख शुक्लपक्ष में मोहिनी नाम की एकादशी है। तू मेरे कहने से इस एकादशी का व्रत कर। यह मनुष्य के सुमेरू के समान पापों को नष्ट कर देती है। इस मोहिनी का उपवास करने से अनेक जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं।मुनि के इन वचनों को सुनकर धृष्टबुद्धि अपने मन में प्रसन्न हुआ। कौंडिल्य के उपदेश से उसने विधिपूर्वक व्रत किया। इस व्रत के करने से उसके पाप दूर हो गए। फिर दिव्य शरीर धारण करके गरुड़ के ऊपर बैठकर विष्णु लोक को चला गया। हे रामचन्द्र! अंधकाररूपी मोह को नष्ट करने वाला यह व्रत है। इससे बढ़कर चर-अचर तीनों लोकों में दूसरा व्रत नहीं है। हे राजन्! यज्ञ, तीर्थ, दान आदि इसके सोलहवें भाग के भी बराबर नहीं है। पठनाछ्रवणाद्राजन् गोसहस्रफलं लभेत्।।
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