नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में सरकारी नौकरियों की कमी की बात कही है। अदालत ने कहा कि देश को आजाद हुए 80 साल होने वाले हैं, फिर भी सार्वजनिक क्षेत्र में पर्याप्त नौकरियां उत्पन्न करना कठिन लक्ष्य बना हुआ है। जो लोग भी सरकारी नौकरी में आने के इच्छुक हैं, उन्हें नौकरी दी जा सके यह काफी कठिन हो चुका है। देश में योग्य उम्मीदवारों की कोई कमी नहीं है और ये लोग कतार में हैं, लेकिन फिर भी पर्याप्त रोजगार अवसरों की कमी के कारण उनकी पब्लिक सेक्टर में नौकरी की तलाश विफल हो जाती है।जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने 2 अप्रैल को दिए फैसले में यह टिप्पणी की। दरअसल पटना हाई कोर्ट ने बिहार राज्य सरकार के उस नियम को असंवैधानिक करार दिया था, जिसमें चौकीदारों के पद पर वंशानुगत नियुक्ति की इजाजत थी। पटना हाई कोर्ट ने उक्त नियम को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। नामित करने की थी अनुमतिपेश मामले के मुताबिक बिहार चौकीदारी कैडर (संशोधन) नियमावली, 2014 के नियम 5(7) के प्रावधान (क) के अनुसार, रिटायर्ड चौकीदार को अपनी जगह पर किसी आश्रित परिजन को नियुक्त करने के लिए नामित करने की अनुमति थी। पटना हाई कोर्ट की बेंच ने इस प्रावधान को संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर) का उल्लंघन मानते हुए निरस्त कर दिया, भले ही इस प्रावधान को औपचारिक रूप से चुनौती नहीं दी गई थी। कोर्ट ने करार दिया गैर संवैधानिकइसके बाद इस फैसले को बिहार राज्य दफादार चौकीदार पंचायत (मगध डिवीजन) की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाकर्ता संगठन हलांकि हाई कोर्ट में पक्षकार नहीं है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि हाई कोर्ट ने उस नियम को असंवैधानिक घोषित करके अपने जूरिडिक्शन को पार किया है। जबकि वंशानुगत नियम की वैधता को अदालत के सामने चुनौती नहीं दी गई थी। वंशानुगत नियम की वैधता को चुनौती न देने के बावजूद हाई कोर्ट ने उसे गैर संवैधानिक कर दे दिया। प्रक्रिया को ठहराया सहीसुप्रीम कोर्ट के सामने अहम सवाल यह था कि क्या हाई कोर्ट ने अपने स्वतः संज्ञान अधिकारों का प्रयोग करते हुए वंशानुगत नियम को असंवैधानिक घोषित करने में न्यायसंगत काम किया? सुप्रीम कोर्ट ने व्यस्था दी और हाई कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखते हुए अपीलकर्ता के इस तर्क को अस्वीकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने वंशानुगत नियम को निरस्त करने का सही निर्णय लिया, भले ही उसे औपचारिक रूप से चुनौती नहीं दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 226 के तहत स्वतः संज्ञान लेकर अधीनस्थ विधिक प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने की प्रक्रिया को भी सही ठहराया।
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