होलिस्टिक हेल्थ में अष्टांग योग का सहारा लिया जाता है। यहां इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि होलिस्टिक हेल्थ इस बात पर भी जोर देती है कि हर शख्स को सेहतमंद करने की विधि अलग-अलग हो सकती है। इंडियन एयरफोर्स में एविएशन मेडिकल एक्सपर्ट के रूप में काम कर चुके डॉ. आर. के. तुली बताते हैं कि होलिस्टिक हेल्थ एलोपैथी की जरूरी चीजों को भी अपनाती है तो आयुर्वेद, नेचरोपैथी, योग और एक्यूपंक्चर से भी अच्छी चीजों को लेती है। मन पर करें काम
होलिस्टिक हेल्थ मन, भावना और अध्यात्म सभी के लिए जरूरी है। यह इन सभी पर काम करता है। यह तनाव कम करने में मददगार है।1. रोज प्रार्थना करना: आप जिस भी धर्म के हैं, उस धर्म के अनुसार प्रार्थना करें। यह हमें अहंकारी होने से भी बचाता है और उस माहौल से निकलने में भी मददगार है।2. ईश्वर का आभारी होना: आप प्रार्थना, मंत्र जाप आदि के माध्यम से ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। हमें जो कुछ मिला है उसके लिए हम उनके आभारी होते हैं। अच्छी नींद लें1. नींद शरीर को रिपेयर और रिचार्ज करती है।2. नींद में शरीर तनाव रहित होता है।3. शरीर दिनभर में हुई कमी-बेशी को समझने की कोशिश भी करता है। इसलिए नींद की अहमियत बहुत ही ज्यादा है।4. हर रात 6 से 8 घंटों की नींद पूरी करके सुबह 4 से 5 बजे तक उठ जाएं।5. हम जितने वक्त तक खाना खाए बिना रह सकते हैं, लगभग उतने ही वक्त तक हम नींद के बिना भी रह सकते हैं।6. एक दिन की फास्टिंग से हमें कुछ कमजोरी आती है, वहीं एक दिन न सोने से हममें थोड़ा-सा चिड़चिड़ापन आता है। दूसरे दिन भी जब हमें खाना नहीं मिलता तो कमजोरी बढ़ जाती है। ऐसे में हम चाहते हैं कि हमें तुरंत खाना मिल जाए। इसी तरह दूसरे दिन भी नहीं सोने पर हमारी स्थिति बहुत बुरी होने लगती है। यहां तक कि हम बैठे-बैठे भी सोने लगते हैं। तब हम तुरंत कहीं भी सोना चाहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में उठना
जिन्हें अब तक देर से सोने की आदत है, वे अपनी आदत को बदल लें क्योंकि जो देर से सोते हैं, वे ही देर से उठते भी हैं। पर जरूरी है ब्रह्म मुहूर्त में उठना। इस मुहूर्त में उठकर यम-नियम को अपनाते हुए योग करने से शरीर ऊर्जावान बना रहता है।जो लोग इतनी सुबह नहीं उठ पाते, वे कोशिश करें कि वे अपनी 6 से 8 घंटे की नींद तो जरूर पूरी करें। उठने के बाद फ्रेश हों और उसके बाद ही योग आदि करें। एक्सरसाइज भी हर दिन करें। सांस लेने का तरीका सुधारेंसांस भरपूर और सही तरीके से लें: सांस जितनी गहराई और सही तरीके से लेंगे, हमारा शरीर उतना ही सेहतमंद रहेगा। कई बार हमें लगता है कि सांस लेना किसे नहीं आता होगा? सच तो यह है कि जो भी जिंदा है, वह सांस लेता है, पर सभी लोग सही तरीके से सांस नहीं लेते। कुछ लोग सांस अंदर खींचते समय भी गलती करते हैं और छोड़ते समय भी।ऐसे खींचे सांस: जब भी सांस खींचें तो हवा को अच्छी तरह से भरपूर मात्रा में अंदर खींचें और पेट बाहर की ओर जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा हवा फेफड़ों में भरे।ऐसे छोड़ें सांस: जब सांस छोड़ें तो हवा को पूरी तरह अंदर से निकाल दें ताकि फिर से फ्रेश एयर अंदर पहुंचे और शरीर को ज्यादा से ज्यादा ऑक्सिजन मिले। ...ताकि बीमारी से हम सब रहें दूरजीवनशैली को रखें दुरुस्त
लाइफस्टाइल को दुरुस्त रखकर हम आधी जंग तो आसानी से जीत सकते हैं। इसमें बचपन से ही सही संस्कार यानी आदतों को लगाकर बच्चों को बेहतर ज़िंदगी दे सकते हैं। इसका फायदा उन्हें ताउम्र मिलता है। जो बचपन से आगे निकल चुके हैं, उन्हें अब अपनी आदत को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। इसमें खानपान का जिक्र करना सबसे जरूरी है। हम जितना कुदरती खाना खाएंगे, उतने ही सेहतमंद होंगे। इसके अलावा पानी सही मात्रा पीना भी काफी अहम है। पैरंट्स बच्चों को दें सेहतमंद संस्कारअपने बच्चों को सही वक्त पर सोने और उठने के फायदे न सिर्फ बताने चाहिए बल्कि इसकी आदत डलवानी चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सही तरीके से योग और ध्यान करने की विधि भी समझानी चाहिए। अगर खुद मुमकिन न हो तो किसी एक्सपर्ट की हेल्प लेनी चाहिए। इनके अलावा पूरे दिन किस तरह से सही आचार-व्यवहार करना चाहिए, यह समझाना चाहिए। सही डाइट के बारे में जानकारी देनी चाहिए। कुल मिलाकर कहें तो बेहतर परिवार से बेहतर समाज का निर्माण होता है और इसकी नींव पैरंट्स ही रखते हैं। हम इसे कह सकते हैं हेल्थ एजुकेशन। हर दिन पानी पिएं 2 से 3 लीटर तकहर दिन 2 से 3 लीटर पानी जरूर पिएं। पानी चाहें तो खाना खाने से आधा घंटा पहले पी लें। अगर उस वक्त न पी पाएं तो खाना खाने से पहले पी लें। फिर जरूरत पड़ने पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पीते रहें। ये बेकार चीजों को निकालने के लिए बेहद जरूरी है। डॉक्टर ने अगर किसी के लिए पानी की मात्रा तय की है तो उसी को फॉलो करना चाहिए। कुदरती भोजन से स्वस्थ शरीर
वैसे तो प्रकृति के अनुसार हर शख्स का खाना थोड़ा अलग हो सकता है। आयुर्वेद के मुताबिक, हर शख्स के शरीर में कोई न कोई दोष होता है। किसी को वात दोष होता है, किसी को पित्त या फिर किसी को कफ दोष। ये दोष ही उस शख्स की प्रकृति के निर्धारण में अहम भूमिका निभाते हैं। इसके साथ ही ऋतु कौन-सी है, वह किस जगह पर रहता है? इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए उस शख्स का भोजन तय किया जाना चाहिए। मान लें, किसी के शरीर में कफ दोष है तो उसे दही, छाछ, लस्सी और दूसरी ठंडी चीजों से बचना चाहिए। किसी को पित्त दोष है तो तेल-मसाले से बनी चीजें कम से कम खानी चाहिए। ज्यादा खाने से गैस आदि की परेशानी होने की आशंका बढ़ जाती है। दरअसल, हमारा शरीर 5 तत्वों: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है।इसी तरह हम जो भी खा रहे हैं, वह भी इन्हीं 5 तत्वों से बना है। चाहे बात सब्जी की हो, दाल, चावल, आटे या फिर किसी दूसरी चीज की। इन 5 तत्वों को हमें 6 रसों के हिसाब से खाना चाहिए। शरीर के 5 तत्वों को अच्छी तरह समझने के लिए हमें शरीर के तीनों दोषों (वात, पित्त और कफ) को भी समझना होगा कि किसके शरीर में किस चीज की कमी है और कौन-सी चीज ज्यादा है। जिस शख्स के शरीर में जो दोष ज्यादा होगा, उसे बाहर से कम मात्रा में खाना है। फल-सब्जी जरूर हों भोजन का हिस्सामौसमी सलाद: जब भी सलाद खाएं तो वह मौसमी हो और स्थानीय हो। यह सोचना कि विदेश से आया है, दूसरे राज्य का है, प्लांट प्रोडक्ट है तो हमारे लिए फायदेमंद ही होगा, यह धारणा गलत भी हो सकती है। सच तो यह है कि हमारा शरीर, उसकी प्रकृति, मौमस, आबोहवा, जमीन जैसी चीजों पर काफी निर्भर है। आजकल खीरा, ककड़ी, टमाटर, चुकंदर आदि मिल रहे हैं। ऐसे में इन्हें सलाद के रूप में खाने से फायदा ही होगा। वहीं सर्दियों में गाजर, चुकंदर, टमाटर, गोभी आदि को मिलाकर सलाद बना सकते हैं। कई लोग सलाद में प्याज को भी शामिल करते हैं। सलाद के रूप में प्याज को शामिल किया जा सकता है, पर इच्छा न हो तो छोड़ सकते हैं। सब्जी सीज़न वाली: मौसमी सब्जी खाना सेहत के लिए बहुत ही बढ़िया है। कई तरह के विटामिन्स, मिनरल्स के साथ फाइबर की मात्रा भी मिलती है। आजकल मिल रही सब्जियों में लौकी, भिंडी, गोभी आदि ऐसे ही नाम हैं। हर दिन 1 से 2 कटोरी मौसमी हरी सब्जी खानी चाहिए।फल जरूरी: मौसमी फल भी जरूर खाएं। तरबूज, खरबूजा, संतरा, अंगूर, अनार आदि इन दिनों मिल जाते हैं। हर दिन 1 से 2 फल जरूर खाएं। जानें खाने-पीने का सही तरीका
कहते हैं कि खाने को पानी की तरह खाएं और पानी को खाने की तरह। मतलब खाने को इतना चबा लें कि वह पानी की तरह हो जाए क्योंकि पेट में दांत नहीं होते। वैसे भी भोजन का पाचन पेट में पहुंचने से पहले यानी मुंह में ही शुरू हो जाता है। लोग कहते हैं कि इस पापी पेट के लिए सब कुछ करता हूं या फिर पापी पेट का सवाल है। लेकिन जब खाने की बारी आती है तो उस खाने को फौरन निपटा देते हैं। यह सही नहीं है। उसे वक्त लगाकर चबाकर खाएं। वहीं पानी को आराम-आराम से पीना चाहिए। ऐसे पीना चाहिए जैसे भोजन को चबा रहे हों। खाने में और क्या रखें ध्यान: आधा पेट ही खाना खाएं। एक चौथाई हिस्सा खाली रखें और एक चौथाई जगह पानी के लिए हो। दरअसल, जितना अहम खाना है, उतना ही जरूरी पेट खाली रखना भी। योग पूरा अपनाएंकुछ लोग योग का मतलब सिर्फ आसन से जोड़ते हैं। वहीं कुछ लोग इसे सिर्फ प्राणायाम या ध्यान से जोड़ते हैं। पर सच तो यह है कि योग का मतलब अष्टांग योग से है। इसमें यम और नियम इसके दो सबसे खास अंग हैं जो हमारे आचार-व्यवहार के साथ जीवनशैली को संतुलित और सेहतमंद बनाने का रास्ता तैयार करते हैं। यह स्ट्रेस मैनेजमेंट से लेकर मेंटल हेल्थ को दुरुस्त करने में मददगार है। यह शरीर के साथ आध्यात्मिक सेहत के लिए भी खास है। इसका संबंध मानसिक, शारीरिक और आत्मिक शुद्धता से है। 1. यम को जानेंयम के 5 नियम हैं:
अहिंसा: किसी के प्रति हिंसा या क्रूरता न करना। शारीरिक, मानसिक या बोली से भी किसी को दुख न पहुंचाना। किसी के साथ ऐसी भाषा का भी प्रयोग न करना जो हिंसा के दायरे में आती हो। बोली से की जाने वाली हिंसा अपनों के साथ ही नहीं, दूसरों के साथ भी नहीं करना।सत्य: सच बोलना और सच के साथ रहना। यह हमारे वचन और कामों में ईमानदारी को तय करता है। अगर हम अपनी जिम्मेदारी को सही तरीके से निभाते हैं तो यह कर्म द्वारा सच बोलना हुआ।अस्तेय: इसका मतलब है चोरी से बचना यानी किसी का पैसा, सामान आदि को बिना अनुमति के न लेना।ब्रह्मचर्य: संयमित जीवन जीना, शारीरिक इच्छाओं और स्वार्थों पर काबू रखना।अपरिग्रह: पैसे के पीछे न भागना और ज्यादा जमा न करना। जितनी जरूरत हो उतनी ही चीजें रखना। 2. नियमनियम भी 5 तरह के हैं:शौच: इसका अर्थ है शुद्धता, जिसे शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक शुद्धता के रूप में समझा जा सकता है।संतोष: कुछ भी हमारे पास है, उसमें खुश रहना और संतुष्ट होना। यही हमारे जीवन में भीतर की शांति लाता है।तप: ज्यादा मेहनत करना, खुद को मानसिक दृढ़ता के साथ अनुशासन में रखना। ऐसा करने से हम मुश्किल समय का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं। हमारी इच्छाशक्ति मजबूत होती है।स्वाध्याय: खुद के बारे में जानना। यह खुद को समझने और आत्मज्ञान की ओर बढ़ने का एक तरीका है कि हमारा जन्म क्यों हुआ है? हमारे जीवन का मकसद क्या है? आदि। इसके लिए अपने-अपने धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने और समझने से फायदा होता है।ईश्वर के लिए समर्पण: ईश्वर के प्रति समर्पण और आत्मसमर्पण। यह विश्वास और आध्यात्मिकता का प्रतीक है जो किसी शख्स को अपने लक्ष्य और उद्देश्य से जोड़ता है। इसमें हमारा हर कर्म ईश्वर को समर्पित होना चाहिए। योग के ये हैं बाकी 6 अंग
3. आसन: शारीरिक मुद्राएं जो शरीर को लचीला, सेहतमंद बनाती हैं और ध्यान के लिए तैयार करती हैं। मसलन: पद्मासन, वृक्षासन, ताड़ासन, शीर्षासन, सूर्य नमस्कार आदि करना। सुबह 15 से 20 मिनट।4. प्राणायाम: श्वास नियंत्रण यानी सांसों पर काबू रखना। यह प्राण को नियंत्रित करने की विधि है। इससे फेफड़े मजबूत होते हैं। मसलन: अनुलोम-विलोम, कपालभाति, आदि। सुबह 5 से 10 मिनट।5. प्रत्याहार: इंद्रियों पर संयम रखना।6. धारणा: मन को एक ही बिंदु पर केंद्रित करना। इससे एकाग्र होने में मदद मिलती है।7. ध्यान: लगातार गहरे ध्यान की अवस्था में जाना।8. समाधि: पूरी चेतना की अवस्था है। शख्स अहंकार से मुक्त होकर ब्रह्म से एकाकार हो जाता है। अगर बीमार हो जाएं तो...किसी भी बीमारी का इलाज जितना आसान हो उतना बढ़िया है। जटिल होने पर इसका असर भी शरीर पर ज्यादा होता है। वहीं दूसरी ओर बीमार होने के बाद उसे नियति नहीं मान लेना चाहिए। सही विधि को अपनाकर उसे बेहतर किया जा सकता है और कई मामलों में ठीक भी। होलिस्टिक हेल्थ यह दावा करता है कि साइंटिफिक तरीके से इससे कई बीमारियों का इलाज हो सकता है। इसमें एक्यूपंक्चर समेत कई तरीके अपनाए जाते हैं। डाइट में बदलाव करके, लाइफस्टाइल को ठीक करके, आयुर्वेद, नेचरोपैथी और आष्टांगिक योग की मदद से ऐसा किया जाता है। इसके कुछ आधार बताए गए हैं: इन सामान्य गलतियों को दुरुस्त करें\
शुरू में ही पकड़ना: अगर किसी बीमारी को शुरू में ही पकड़ लें तो उसे ज्यादा नुकसान करने से रोक सकते हैं। इसलिए छोटे लक्षणों पर भी ध्यान देन जरूरी है। यह कभी मकसद नहीं होना चाहिए कि बीमार होंगे तो दवा ले लेंगे।गलती ठीक करके: अगर लाइफस्टाइल सही न हो। खाने-पीने का रुटीन और तरीका सही न हो तो उसमें बदलाव करके या सुधार करके बेहतर किया जा सकता है। अहम बात यह कि इस तरह के बदलाव का असर एक-दो दिनों में ही दिखने लगता है।असंतुलन दूर करना: चूंकि आयुर्वेद शरीर के 5 तत्वों के संतुलन की बात करता है। साथ ही 3 तरह के दोषों: वात, पित्त और कफ में भी संतुलन रखने की सलाह देता है। ऐसे में अगर कोई शख्स बीमार हो गया है तो किस तरह असंतुलन को संतुलित करें?पॉजिटिव सोच: सबसे पहले यह सोचें कि जो परेशानी हुई है, उसका निदान मुमकिन है, इस पर भरोसा करना है। इस परिस्थिति में भी जो दूसरे लोगों का हित चाहे, दूसरों के चेहरे पर खुशी देखना चाहे, वह जल्दी ठीक होता है।यथासंभव दवा के बिना हो इलाजहोलिस्टिक हेल्थ का असल मकसद है दवा के बिना इलाज। इसलिए यह हर उस विधा को अपनाकर बीमारी की जरूरत के हिसाब से दवा रहित इलाज के लिए जाना जाता है। इसमें दो तरीके से इलाज हो सकता है:
1. ट्रडिशनल तरीकों से: इसमें आयुर्वेद, नेचरोपैथी, यूनानी, तिब्बती आदि शामिल हैं। यहां देखें तो यूनानी, तिब्बती आदि आयुर्वेद के जैसी ही विधा है। जिस इलाके में जिस तरह की जड़ी-बूटी होती है, उसे उस इलाके के हिसाब से नाम दिया गया है।2. मॉडर्न तरीकों से: इसमें एलोपैथी और होम्योपैथी आती है।होलिस्टिक हेल्थ में किस तरह से इलाज होता है इसे से विस्तार से समझने की जरूरत है। मान लें कोई शख्स किसी दुख या मानसिक तकलीफ की वजह से स्ट्रेस यानी तनाव या एंग्जायटी से गुजर रहा है। उसकी रातों की नींद डिस्टर्ब हो गई। इन सभी वजहों से उसका बीपी कुछ बढ़ा हुआ रहता है। वह डॉक्टर के पास जाता है और बीपी की परेशानी बताता है। डॉक्टर बीपी को कम करने की दवा शुरू कर देता है। उस दवा से बीपी तो कम हुआ, लेकिन साइड इफेक्ट दिखने लगे। फिर नई परेशानियां भी शुरू हो जाती हैं। यहां ध्यान वाली एक बात और है कि उसे जिस वजह से तनाव था, उसका कोई निदान नहीं हुआ।हां, उसके बीपी को मैनेज कर लिया गया। ऐसे में इस तरह के शख्स का इलाज ऐसा होना चाहिए कि पहले उसकी मानसिक परेशानी को दूर किया जाए। उसकी नींद सही करके रुटीन सुधारा जाए कि वह 6 से 8 घंटों की नींद पूरी करके ब्रह्म मुहूर्त यानी सुबह 4 से 5 बजे तक उठ पाए। इसमें अष्टांग योग कारगर है तो ध्यान आदि के माध्यम से उसकी स्प्रिचुअल हेल्थ को बेहतर किया जाए। सीधे कहें तो यहां पर एलोपैथी से ज्यादा कारगर योग है।दूसरी ओर डाइट को आयुर्वेद और नेचरोपैथ के अनुसार रखने की बात भी की जा सकती है। साथ ही एक तय समय पर भोजन करें। सूर्यास्त से पहले या फिर शाम 7 बजे तक भोजन कर लें। भोजन आधा पेट करें। इन सभी बातों का ध्यान रखने से मुमकिन है कि उस शख्स को दवा की जरूरत न पड़े और वह बेहतर हो जाए।यहां इस बात का भी ध्यान रखना है कि होलिस्टिक हेल्थ में जरूरी दवा को नहीं रोका जाता। अगर किसी की इमरजेंसी की स्थिति है तो वहां दवा जरूरी है। हां, गैर-जरूरी दवाओं से बचने की सलाह जरूर दी जाती है। अगर किसी को ऐसी समस्या है जिसमें दवा लेना जरूरी है तो जरूर लेनी चाहिए। एक्यूपंक्चर से इलाज
होलिस्टिक हेल्थ में योग, आहार-विहार सुधार के साथ एक्यूपंक्चर से भी इलाज किया जाता है। एक्यूपंक्चर के अनुसार शरीर में एनर्जी फ्लो अलग-अलग चैनलों या पॉइंट द्वारा विभिन्न अंगों तक जाता है। इन पॉइंट्स की सही समझ होने पर इनमें सुई (Needle) को स्किन में कुछ भीतर लगाया जाता है। इससे चैनल में होने वाला एनर्जी का धीमा प्रवाह बढ़ने लगता है और फायदा भी होने लगता है। एक्यूपंक्चर सभी तरह के दर्द में कारगर है, लेकिन दूसरी बीमारियों में यह उन स्थितियों में ही कारगर है जहां समस्या शुरुआती हो, दवाओं, पेनकिलर्स या स्टेरॉइड का इस्तेमाल शुरू न हुआ हो या शुरू हुए कुछ ही दिन हुए हों।यह सर्वाइकल पेन, सामान्य सिरदर्द और माइग्रेन, पीठ दर्द, साइटिका, गठिया, आर्थराइटिस जैसी स्थितियों में जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करता है। यह न्यूरोपैथी के दर्द में, चेहरे की नसों में होने वाले दर्द में, पेट में ऐंठन, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) में, दांत और जबड़े के दर्द में, दांत की सर्जरी के बाद होने वाले दर्द को कम करने में, कीमोथेरपी के बाद होने वाले दर्द में भी काफी कारगर है। अस्थमा के मरीजों के लिए एक खास पॉइंट है, इसका चैनल भी चेस्ट में है। इस पर सुई लगाने से अस्थमा के मरीजों काफी फायदा होता है।ध्यान दें: यहां इस बात को समझना भी जरूरी है कि एक्यूपंक्चर सिर्फ सुई चिकित्सा की बात करता है जबकि होलिस्टिक हेल्थ में योग, लाइफस्टाइल सब कुछ शामिल है। इसमें तन, मन और स्प्रिचुअल हेल्थ की बात है।डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

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