नई दिल्ली: अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत को आज एक महाशक्ति के रूप में देखा जाता है। भारत ने अंतरिक्ष में सटीकता के साथ लक्ष्य भेदने की क्षमता हासिल कर एक बड़े कारनामे को अंजाम दिया। सैटेलाइट लॉन्च के क्षेत्र में भारत की विशेषज्ञता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज बहुत से देश कम लागत में अपने सैटेलाइट के लॉन्च के लिए भारत पर निर्भर हैं। देश के अंतरिक्ष के इस सफर में 19 अप्रैल का खास महत्व है। दरअसल यही वह दिन है जब भारत रूस की मदद से 19 अप्रैल 1975 को अपना पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट लॉन्च कर अंतरिक्ष युग में दाखिल हुआ। यह भारत का पहला वैज्ञानिक उपग्रह था। इसका नाम प्रसिद्ध भारतीय खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था। पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट कैसे हुआ लॉन्चउडुपी रामचंद्र रावभारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के भूतपूर्व अध्यक्ष थे। उनकी अगुवाई में साल 1975 में भारत के पहले उपग्रह 'आर्यभट्ट' को अंतरिक्ष में लॉन्च किया गया। वह भारत के पहले अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे, जिन्हें साल 2013 में 'सैटेलाइट हाल ऑफ द फेम' से और साल 2016 में 'आईएएफ हाल ऑफ द फेम' में शामिल करने के साथ ही सम्मानित भी किया गया। साल 1972 में भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की स्थापना की जिम्मेदारी ली। क्या था मकसद? यह सैटेलाइट पृथ्वी के आयनमंडल की स्थितियों का अध्ययन करने, सूर्य से न्यूट्रॉन और गामा किरणों को मापने और एक्स-रे खगोल विज्ञान में प्रयोग करने के लिए बनाया गया था। इसे सोवियत संघ के इंटरकोस्मोस कार्यक्रम के तहत, कपुस्टिन यार से सोवियत कॉस्मॉस-3एम रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया था। इसका वजन 360 किलोग्राम था। इसमें ऑन-बोर्ड पावर 46 वाट्स थी। यह स्थैतिक गोलाकार था, जिसके 26 पार्श्व थे। इसमें सौर पैनल लगाए गए थे जो 46 वाट की शक्ति प्रदान करते थे।
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