पटना: बिहार में चुनाव के वक्त सीमांचल और कोसी क्षेत्र में बसे मुसमानों के कानों में 'घुसपैठिया' सुनाई देने लगता है। माना जाता है कि भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता जिन मुसलमानों को 'घुसपैठिया' कह रहे हैं, वे वास्तव में 'शेरशाहाबादी मुस्लिम' हैं। ये समुदाय बहुत पहले पश्चिम बंगाल से आया है और खुद को ऐतिहासिक रूप से 'शेरशाह सूरी' से जोड़ता है। 'शेरशाह सूरी' मुसलमान आज भी बांग्ला भाषा बोलते हैं। जबकि, बाकी मुसलमान जातियां सुरजापुरी (स्थानीय भाषा) में बातचीत करती है। हालांकि, इस समुदाय को काफी मेहनती माना जाता है। स्थानीय मुसलमान खुद को 'देसी' (स्थानीय) और 'पच्छिमा' (पश्चिम से आए) में बांटते हैं। सीमांचल में बाहर से सभी मुसलमान एक तो दिखते हैं, मगर इनके अंदर भी भाषा और दूसरे मुद्दों पर काफी मतभेद हैं। इसी का फायदा सियासी पार्टियां उठाना चाहती हैं।
शेरशाहाबादी Vs देसी मुस्लिमसीमांचल के स्थानीय मुस्लिम खुद को 'देसी' कहते हैं, जिनमें मुख्य रूप से सुरजापुरी और कुल्हैया मुस्लिम शामिल हैं। आबादी के लिहाज से सुरजापुरी समुदाय सबसे बड़ा है। किशनगंज की चारों विधानसभा सीटों सहित पूर्णिया की अमौर-बायसी और कटिहार की बलरामपुर सीट पर सुरजापुरी मतदाताओं की निर्णायक भूमिका मानी जाती है। इसी तरह, अररिया की जोकीहाट और अररिया सीट पर कुल्हैया मुस्लिमों का प्रभाव है। 2020 में सीमांचल से 11 मुस्लिम विधायक जीते थे, जिनमें 6 सुरजापुरी थे।
बिहार में शेरशाहबादी मुस्लिम कौन?सीमांचल में उर्दू-बंगाली मिक्स बोलनेवालों की पहचान आमतौर पर शेरशाहबादी मुस्लिम के तौर पर है। सरकारी रिकॉर्ड में अति पिछड़ा वर्ग में ये आबादी आती हैं। आपस में ये लोग ठेठ बंगाली में बातचीत करते हैं। इनके समाज का दावा है कि इनके वंशज शेरशाह सूरी की सेना में सैनिक के तौर पर काम करते थे। सूरी वंश के संस्थापक शेरशाह सूरी ने मुगल बादशाह हुमायूं को हराकर अपनी सल्तनत स्थापित की थी। शेरशाहबादी मुस्लिमों की परंपराएं भी दूसरी मुस्लिम जातियों से काफी अलग है, जो इनको मुसलमान समुदाय में ही अलग-थलग करने के लिए काफी है। सीमांचल में घुसपैठियों का एक ही मतलब है- शेरशाहबादी समुदाय। स्थानीय मुसलमान इन्हें भटिया, बधिया और मलदहिया जैसे नामों से पुकारते है। हालांकि, शेरशाहबादी समुदाय के लोग इन संबोधनों को अपमानजनक मानते हैं। वैसे, शेरशाहबादी मुसलमानों का कहना है कि वो मालदा-मुर्शिदाबाद के मूल बाशिंदा हैं। मगर, इनके विरोधी इन बातों पर यकीन नहीं करते। जब-जब चुनाव का वक्त आता है, खुद को शेरशाह सूरी के सैनिकों के वंशज कहने वाले मुसलमानों की सीमांचल में पहचान घुसपैठिये के तौर पर गढ़ दी जाती है।
सीमांचल पॉलिटिक्स की बड़ी बातें
सीमांचल में ध्रुवीकरण की राजनीतिस्थानीय सुरजापुरी मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग इस तरह से 'शेरशाहाबादियों' को अलग-थलग करने की कोशिशों से कई बार नाराज दिखता है। बातचीत करने पर ये बताते हैं कि इनके दिमाग में उल्टी-सीधी बातें चुनाव के वक्त डाली जाती है, जिससे भाईचारे में खलल पड़ता है। सीमांचल के किशनगंज में 67 फीसदी, कटिहार में 42 प्रतिशत, अररिया में 41 फीसदी और पूर्णिया में 37 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। बिहार सरकार की जातीय सर्वे 2023 के मुताबिक सुरजापुरी मुसलमानों की संख्या 24 लाख 46 हजार 212 (1.8713%) है। वहीं, शेरशाहबादी मुसलमानों की तादाद 13 लाख 2 हजार 644 (0.9965%) है। ये डेटा केवल केवल पूर्णिया, कटिहार किशनगंज और अररिया जिलों के लिए है।
सीमांचल में NDA की रणनीतिसीमांचल ( पूर्णिया, कटिहार किशनगंज और अररिया) क्षेत्र में मतदान 11 नवंबर को होना है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सत्ताधारी एनडीए गठबंधन की कोशिश मुस्लिम वोटों को 'देसी' और 'शेरशाहाबादी' के बीच बांटकर उनके वोट बैंक को कमजोर करने की होगी। इस ध्रुवीकरण की राजनीति का चुनावी नतीजों पर क्या असर होगा, ये 14 नवंबर को मतगणना के बाद ही साफ हो पाएगा।
शेरशाहाबादी Vs देसी मुस्लिमसीमांचल के स्थानीय मुस्लिम खुद को 'देसी' कहते हैं, जिनमें मुख्य रूप से सुरजापुरी और कुल्हैया मुस्लिम शामिल हैं। आबादी के लिहाज से सुरजापुरी समुदाय सबसे बड़ा है। किशनगंज की चारों विधानसभा सीटों सहित पूर्णिया की अमौर-बायसी और कटिहार की बलरामपुर सीट पर सुरजापुरी मतदाताओं की निर्णायक भूमिका मानी जाती है। इसी तरह, अररिया की जोकीहाट और अररिया सीट पर कुल्हैया मुस्लिमों का प्रभाव है। 2020 में सीमांचल से 11 मुस्लिम विधायक जीते थे, जिनमें 6 सुरजापुरी थे।
बिहार में शेरशाहबादी मुस्लिम कौन?सीमांचल में उर्दू-बंगाली मिक्स बोलनेवालों की पहचान आमतौर पर शेरशाहबादी मुस्लिम के तौर पर है। सरकारी रिकॉर्ड में अति पिछड़ा वर्ग में ये आबादी आती हैं। आपस में ये लोग ठेठ बंगाली में बातचीत करते हैं। इनके समाज का दावा है कि इनके वंशज शेरशाह सूरी की सेना में सैनिक के तौर पर काम करते थे। सूरी वंश के संस्थापक शेरशाह सूरी ने मुगल बादशाह हुमायूं को हराकर अपनी सल्तनत स्थापित की थी। शेरशाहबादी मुस्लिमों की परंपराएं भी दूसरी मुस्लिम जातियों से काफी अलग है, जो इनको मुसलमान समुदाय में ही अलग-थलग करने के लिए काफी है। सीमांचल में घुसपैठियों का एक ही मतलब है- शेरशाहबादी समुदाय। स्थानीय मुसलमान इन्हें भटिया, बधिया और मलदहिया जैसे नामों से पुकारते है। हालांकि, शेरशाहबादी समुदाय के लोग इन संबोधनों को अपमानजनक मानते हैं। वैसे, शेरशाहबादी मुसलमानों का कहना है कि वो मालदा-मुर्शिदाबाद के मूल बाशिंदा हैं। मगर, इनके विरोधी इन बातों पर यकीन नहीं करते। जब-जब चुनाव का वक्त आता है, खुद को शेरशाह सूरी के सैनिकों के वंशज कहने वाले मुसलमानों की सीमांचल में पहचान घुसपैठिये के तौर पर गढ़ दी जाती है।
सीमांचल पॉलिटिक्स की बड़ी बातें
- बिहार के किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया जिलों को सीमांचल कहा जाता है
- सीमांचल की चार जिलों में विधानसभा की कुल 24 सीटें हैं, सरकार के लिए अहम
- 2020 रिजल्ट के मुताबिक 12 सीटों पर एनडीए (8 बीजेपी, 4 जेडीयू) को जीत मिली थी
- 2020 में 7 सीटों पर महागठबंधन (कांग्रेस 5, आरजेडी और सीपीआईएमएल 1-1) को जीत
- ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 2020 में 5 सीटें जीतकर सीमांचल की राजनीति को हिला डाला
- सीमांचल में AIMIM की एंट्री ने कांग्रेस-आरजेडी के एकछत्र राजनीति को तोड़ा
- AIMIM ने 2020 में जो सीटें जीतीं, उनमें 3 पर RJD और 2 पर थे कांग्रेस के विधायक
- 2020 में जीते AIMIM के 5 में से 4 विधायक, अख्तरूल को छोड़ RJD में चले गए
- सीमांचल में इस बार कांग्रेस 12, RJD 9 सीट, VIP 2 और CPIML 1 सीट पर लड़ रही
- सीमांचल की 15 समेत पूरे बिहार में AIMIM ने इस बार 25 उम्मीदवार उतारे हैं
- NDA में BJP 11, JDU 10 और LJP (R) 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है
सीमांचल में ध्रुवीकरण की राजनीतिस्थानीय सुरजापुरी मुस्लिमों का एक बड़ा वर्ग इस तरह से 'शेरशाहाबादियों' को अलग-थलग करने की कोशिशों से कई बार नाराज दिखता है। बातचीत करने पर ये बताते हैं कि इनके दिमाग में उल्टी-सीधी बातें चुनाव के वक्त डाली जाती है, जिससे भाईचारे में खलल पड़ता है। सीमांचल के किशनगंज में 67 फीसदी, कटिहार में 42 प्रतिशत, अररिया में 41 फीसदी और पूर्णिया में 37 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। बिहार सरकार की जातीय सर्वे 2023 के मुताबिक सुरजापुरी मुसलमानों की संख्या 24 लाख 46 हजार 212 (1.8713%) है। वहीं, शेरशाहबादी मुसलमानों की तादाद 13 लाख 2 हजार 644 (0.9965%) है। ये डेटा केवल केवल पूर्णिया, कटिहार किशनगंज और अररिया जिलों के लिए है।
सीमांचल में NDA की रणनीतिसीमांचल ( पूर्णिया, कटिहार किशनगंज और अररिया) क्षेत्र में मतदान 11 नवंबर को होना है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सत्ताधारी एनडीए गठबंधन की कोशिश मुस्लिम वोटों को 'देसी' और 'शेरशाहाबादी' के बीच बांटकर उनके वोट बैंक को कमजोर करने की होगी। इस ध्रुवीकरण की राजनीति का चुनावी नतीजों पर क्या असर होगा, ये 14 नवंबर को मतगणना के बाद ही साफ हो पाएगा।
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