नई दिल्ली: रूस से समुद्र के रास्ते कच्चे तेल की सप्लाई में भारी गिरावट आई है। यह गिरावट जनवरी 2024 के बाद सबसे ज्यादा है। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि अमेरिका की नई पाबंदियों के चलते बड़े खरीदार (चीन, भारत और तुर्की) रूसी तेल से कतरा रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूसी तेल कंपनियों पर बैन लगाया है। इसके चलते जहाजों पर माल चढ़ाने से ज्यादा असर माल उतारने पर पड़ा है, जिसकी वजह से समुद्र में तेल का भंडार बढ़ता जा रहा है।
ब्लूमबर्ग के जहाज-ट्रैकिंग डेटा के मुताबिक 2 नवंबर तक पिछले चार हफ्तों में रूस के बंदरगाहों से हर दिन औसतन 35.8 लाख बैरल तेल निकला। यह 26 अक्टूबर तक के पिछले चार हफ्तों के संशोधित आंकड़े से करीब 1.9 लाख बैरल कम है। चार हफ्तों का औसत और हफ्ते भर के आंकड़े भी गिरे हैं। इस गिरावट से रूसी तेल से होने वाली कमाई में भी कमी आई है। यह अगस्त के बाद सबसे कम है। यह सब रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट (Rosneft) और लुकोइल (Lukoil) के साथ कारोबार पर अमेरिका की पाबंदियों के बाद हुआ है। ट्रंप के आदेश के बाद भारत समेत कई देशों ने रूसी तेल खरीदना कम कर दिया है। ये देश उम्मीद कर रहे हैं कि ऐसा करने से शायद ट्रंप टैरिफ में कटौती कर दें।
समुद्र में बढ़ गया रूसी तेलरूसी एक्सपोर्टर अभी भी टैंकरों में कच्चा तेल भर रहे हैं, लेकिन रिफाइनर उसे अपने स्टोरेज टैंकों में लेने के लिए कम इच्छुक हैं। इसकी वजह से समुद्र में रूसी कच्चे तेल की मात्रा बढ़कर 38 करोड़ बैरल से ज्यादा हो गई है। यह सितंबर की शुरुआत से 2.7 करोड़ बैरल, यानी 8% ज्यादा है।
तीनों देशों पर क्या असर?चीन, भारत और तुर्की के रिफाइनर (तेल साफ करने वाली कंपनियां) पाबंदियों वाले तेल के कार्गो खरीदना फिलहाल रोक रहे हैं और वैकल्पिक सप्लाई ढूंढ रहे हैं। भारत, चीन और तुर्की मिलकर रूस के समुद्र के रास्ते होने वाले कुल कच्चे तेल निर्यात का 95% से ज्यादा हिस्सा खरीदते हैं। इसलिए, अगर वे अपनी खरीद में थोड़ी भी कमी करते हैं, तो उसकी भरपाई करना लगभग नामुमकिन होगा। ट्रंप के आदेश का तीनों देशों पर यह असर पड़ा:
रूस को होने लगा नुकसानतेल की बिक्री में गिरावट आने से रूस को नुकसान होने लगा है। चार हफ्तों के औसत के हिसाब से रूस के निर्यात का कुल मूल्य 2 नवंबर तक के 28 दिनों में हर हफ्ते करीब 9 करोड़ डॉलर घटकर 1.36 अरब डॉलर रह गया। इसमें निर्यात की मात्रा और कीमतें दोनों गिरीं।
ब्लूमबर्ग के जहाज-ट्रैकिंग डेटा के मुताबिक 2 नवंबर तक पिछले चार हफ्तों में रूस के बंदरगाहों से हर दिन औसतन 35.8 लाख बैरल तेल निकला। यह 26 अक्टूबर तक के पिछले चार हफ्तों के संशोधित आंकड़े से करीब 1.9 लाख बैरल कम है। चार हफ्तों का औसत और हफ्ते भर के आंकड़े भी गिरे हैं। इस गिरावट से रूसी तेल से होने वाली कमाई में भी कमी आई है। यह अगस्त के बाद सबसे कम है। यह सब रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट (Rosneft) और लुकोइल (Lukoil) के साथ कारोबार पर अमेरिका की पाबंदियों के बाद हुआ है। ट्रंप के आदेश के बाद भारत समेत कई देशों ने रूसी तेल खरीदना कम कर दिया है। ये देश उम्मीद कर रहे हैं कि ऐसा करने से शायद ट्रंप टैरिफ में कटौती कर दें।
समुद्र में बढ़ गया रूसी तेलरूसी एक्सपोर्टर अभी भी टैंकरों में कच्चा तेल भर रहे हैं, लेकिन रिफाइनर उसे अपने स्टोरेज टैंकों में लेने के लिए कम इच्छुक हैं। इसकी वजह से समुद्र में रूसी कच्चे तेल की मात्रा बढ़कर 38 करोड़ बैरल से ज्यादा हो गई है। यह सितंबर की शुरुआत से 2.7 करोड़ बैरल, यानी 8% ज्यादा है।
तीनों देशों पर क्या असर?चीन, भारत और तुर्की के रिफाइनर (तेल साफ करने वाली कंपनियां) पाबंदियों वाले तेल के कार्गो खरीदना फिलहाल रोक रहे हैं और वैकल्पिक सप्लाई ढूंढ रहे हैं। भारत, चीन और तुर्की मिलकर रूस के समुद्र के रास्ते होने वाले कुल कच्चे तेल निर्यात का 95% से ज्यादा हिस्सा खरीदते हैं। इसलिए, अगर वे अपनी खरीद में थोड़ी भी कमी करते हैं, तो उसकी भरपाई करना लगभग नामुमकिन होगा। ट्रंप के आदेश का तीनों देशों पर यह असर पड़ा:
- भारत के कई बड़े तेल रिफाइनर, जो हर दिन करीब 10 लाख बैरल रूसी कच्चा तेल खरीद रहे थे, फिलहाल खरीद रोक रहे हैं। वे तब तक इंतजार कर रहे हैं जब तक कोई रास्ता नहीं निकल आता।
- चीनी रिफाइनरें भी ऐसे ही कदम उठा रही हैं। सरकारी कंपनियों ने भी अमेरिकी पाबंदियों के बाद कुछ रूसी कार्गो रद्द कर दिए हैं।
- तुर्की के रिफाइनर, जो रूस से तीसरा सबसे बड़ा खरीदार है, उन्होंने भी खरीद कम कर दी है। वे इराक, लीबिया, सऊदी अरब और कजाकिस्तान जैसे छोटे और करीब के सप्लायरों से वैकल्पिक सप्लाई ढूंढ रहे हैं।
रूस को होने लगा नुकसानतेल की बिक्री में गिरावट आने से रूस को नुकसान होने लगा है। चार हफ्तों के औसत के हिसाब से रूस के निर्यात का कुल मूल्य 2 नवंबर तक के 28 दिनों में हर हफ्ते करीब 9 करोड़ डॉलर घटकर 1.36 अरब डॉलर रह गया। इसमें निर्यात की मात्रा और कीमतें दोनों गिरीं।
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