मॉस्को: भारत, चीन और रूस की तिकड़ी यानी आरआईसी त्रिपक्षीय फोरम के सक्रिय होने की सुगबुगाहट ने बीते कुछ दिनों में तेजी से दुनिया का ध्यान खींचा है। मॉस्को ने इस पहल की शुरुआत की और चीन ने तुरंत ही अपनी सहमति दे दी। दूसरी ओर तेल आयात और व्यापार पर पश्चिम से तनातनी के बीच भारत एक नाजुक संतुलन बनाने की कोशिश में है। भारत ने रूस और चीन के साथ त्रिपक्षीय वार्ता को पुनर्जीवित करने का संकेत दिया है। ऐसे में फिलहाल आरआईसी का भविष्य काफी हद तक भारत पर निर्भर दिख रहा है।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने इस महीने की शुरुआत में रूस-भारत-चीन (आरआईसी) वार्ता को फिर से शुरू करने पर बयान दिया था। विदेश मंत्रालय ने 17 जुलाई को कहा कि आरआईसी वार्ता फिर से शुरू करने का कोई भी निर्णय पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तरीके से लिया जाएगा। यह कब होगा, इसकी कोई समय-सीमा भारत ने नहीं दी है। इस फोरम का भविष्य अब भारत के हाथ में है।
भारत के सामने चुनौतीविश्लेषकों का कहना है कि भारत के चीन और रूस की तरफ झुकाव की बड़ी वजह पश्चिमी देशों और अमेरिका के रुख से बढ़ी निराशा है। भारत स्थित ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में चीन अध्ययन और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की प्रोफसर श्रीपर्णा पाठक ने नाटो प्रमुख मार्क रूट के हालिया बयान की ओर ओर इशारा किया। रूट ने कहा है कि रूस से तेल खरीदने पर भारत को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
पाठक ने आगे कहा, 'भारत ने लगातार यह कहा है कि अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। भारत ने इस तरह के बयानों की निंदा भी की है। हालांकि भारत के लिए चीन एक भरोसेमंद विकल्प नहीं है लेकिन रूस भारत के लिए एक व्यवहार्य साझेदार है, जिसने अमेरिका की तरह पाखंड नहीं किया है।'
भारत ने दिखाया, झुकेंगे नहींप्रोफेसर पाठक का कहना है कि आरआईसी के पीछे की हलचल का बड़ा कारण भारत को पश्चिम से मिली हालिया धमकी हैं। भारत दिखा रहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को खुद चुनता है और धौंस-धौंस के आगे नहीं झुकेगा। आरआईसी भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपने राजनीतिक और आर्थिक दांव लगाने का अवसर देता है और पश्चिम से परे भारत को अधिक जुड़ाव के विकल्प प्रदान करता है।
भारत की गणना इस संभावना से प्रभावित है कि ट्रंप भारत और चीन सहित रूसी तेल खरीदने वाले देशों पर टैरिफ लगा सकते हैं। ये टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा हैं। अगर भारत इनका विरोध करता है तो अमेरिका के साथ संबंधों में संकट पैदा कर सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारत स्पष्ट रूप से ऐसी किसी संभावना के लिए तैयारी कर रहा है।
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चीन ने दिखाई सकारात्मकतारक्षा और सुरक्षा थिंक टैंक, यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के शोधकर्ता गौरव कुमार ने कहा कि अगले साल ब्रिक्स की अध्यक्षता भारत के हाथ में आएगी। ऐसे में दिल्ली खुद की पश्चिम और रूस के साथ संवाद स्थापित करने की क्षमता प्रदर्शित करने के लिए उत्सुक है। चीन ने हाल में कैलाश-मानसरोवर तीर्थयात्रा मार्ग को फिर से खोला है। यह चीन की ओर से एक सकारात्मक संदेश है।
गौरव कुमार ने आगे कहा, 'आरआईसी को पुनर्जीवित करने से एक स्थिर मंच मिलता है जो प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ियों के बीच संवाद को बढ़ावा देकर तनाव को कम कर सकता है। बीजिंग के हालिया कदमों ने एक दरवाजा खोला है कि अब तीनों देशों उस पर आगे बढ़ सकें।'
क्या है RICआरआईसी (रूस, भारत, चीन) की शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी। इसे येवगेनी प्रिमाकोव (पूर्व रूसी प्रधानमंत्री) की पहल पर स्थापित किया गया था। इस त्रिपक्षीय मंच का उद्देश्य गैर-पश्चिमी शक्तियों में सहयोग को बढ़ाते हुए बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था मजबूत करना है। हालांकि बीते कई वर्षों से यह फोरम निष्क्रिय है। करीब एक दशक से इसकी कोई महत्वपूर्ण बैठक नहीं हुई है।
साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने इस महीने की शुरुआत में रूस-भारत-चीन (आरआईसी) वार्ता को फिर से शुरू करने पर बयान दिया था। विदेश मंत्रालय ने 17 जुलाई को कहा कि आरआईसी वार्ता फिर से शुरू करने का कोई भी निर्णय पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तरीके से लिया जाएगा। यह कब होगा, इसकी कोई समय-सीमा भारत ने नहीं दी है। इस फोरम का भविष्य अब भारत के हाथ में है।
भारत के सामने चुनौतीविश्लेषकों का कहना है कि भारत के चीन और रूस की तरफ झुकाव की बड़ी वजह पश्चिमी देशों और अमेरिका के रुख से बढ़ी निराशा है। भारत स्थित ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में चीन अध्ययन और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की प्रोफसर श्रीपर्णा पाठक ने नाटो प्रमुख मार्क रूट के हालिया बयान की ओर ओर इशारा किया। रूट ने कहा है कि रूस से तेल खरीदने पर भारत को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
पाठक ने आगे कहा, 'भारत ने लगातार यह कहा है कि अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। भारत ने इस तरह के बयानों की निंदा भी की है। हालांकि भारत के लिए चीन एक भरोसेमंद विकल्प नहीं है लेकिन रूस भारत के लिए एक व्यवहार्य साझेदार है, जिसने अमेरिका की तरह पाखंड नहीं किया है।'
भारत ने दिखाया, झुकेंगे नहींप्रोफेसर पाठक का कहना है कि आरआईसी के पीछे की हलचल का बड़ा कारण भारत को पश्चिम से मिली हालिया धमकी हैं। भारत दिखा रहा है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को खुद चुनता है और धौंस-धौंस के आगे नहीं झुकेगा। आरआईसी भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपने राजनीतिक और आर्थिक दांव लगाने का अवसर देता है और पश्चिम से परे भारत को अधिक जुड़ाव के विकल्प प्रदान करता है।
भारत की गणना इस संभावना से प्रभावित है कि ट्रंप भारत और चीन सहित रूसी तेल खरीदने वाले देशों पर टैरिफ लगा सकते हैं। ये टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा हैं। अगर भारत इनका विरोध करता है तो अमेरिका के साथ संबंधों में संकट पैदा कर सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारत स्पष्ट रूप से ऐसी किसी संभावना के लिए तैयारी कर रहा है।
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चीन ने दिखाई सकारात्मकतारक्षा और सुरक्षा थिंक टैंक, यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के शोधकर्ता गौरव कुमार ने कहा कि अगले साल ब्रिक्स की अध्यक्षता भारत के हाथ में आएगी। ऐसे में दिल्ली खुद की पश्चिम और रूस के साथ संवाद स्थापित करने की क्षमता प्रदर्शित करने के लिए उत्सुक है। चीन ने हाल में कैलाश-मानसरोवर तीर्थयात्रा मार्ग को फिर से खोला है। यह चीन की ओर से एक सकारात्मक संदेश है।
गौरव कुमार ने आगे कहा, 'आरआईसी को पुनर्जीवित करने से एक स्थिर मंच मिलता है जो प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ियों के बीच संवाद को बढ़ावा देकर तनाव को कम कर सकता है। बीजिंग के हालिया कदमों ने एक दरवाजा खोला है कि अब तीनों देशों उस पर आगे बढ़ सकें।'
क्या है RICआरआईसी (रूस, भारत, चीन) की शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी। इसे येवगेनी प्रिमाकोव (पूर्व रूसी प्रधानमंत्री) की पहल पर स्थापित किया गया था। इस त्रिपक्षीय मंच का उद्देश्य गैर-पश्चिमी शक्तियों में सहयोग को बढ़ाते हुए बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था मजबूत करना है। हालांकि बीते कई वर्षों से यह फोरम निष्क्रिय है। करीब एक दशक से इसकी कोई महत्वपूर्ण बैठक नहीं हुई है।
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