बुधवार प्रदोष व्रत की कथा एक युवक की भूल और शिव कृपा की चमत्कारी घटना को दर्शाती है। बुधवार को पत्नी को विदा कर लाने पर उसके जीवन में भ्रम और संकट आ गया, जिसे शिव जी से प्रार्थना कर दूर किया गया। बुधवार प्रदोष व्रत सभी प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इस व्रत में हरी वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। भगवान शिव का पूजन बिल्वपत्र, धूपादि से करना चाहिए तथा भोजन एक बार ही करना चाहिए।
बुधवार प्रदोष व्रत कथा - यह कथा अति प्राचीन है। एक युवक का नया-नया विवाह हुआ था। विवाह के दो दिन बाद ही उसकी नवविवाहिता पत्नी अपने पीहर चली गई। युवक से उसका बिछोह सहन नहीं हुआ तो कुछ दिनों बाद ही वह अपनी पत्नी को लाने के लिए अपनी ससुराल जा पहुंचा। बुधवार के दिन वह अपनी पत्नी को विदा कराने की जिद कर बैठा। ससुराल वालों ने काफी समझाया कि बुधवार को बेटी को विदा नहीं किया जाता, लेकिन वह नहीं माना और पत्नी को विदा करवाकर अपने घर की ओर चल पड़ा।
अभी वे पति-पत्नी नगर के बाहर पहुंचे ही थे कि पत्नी को प्यास लगी। पति लोटा लेकर पानी की खोज में चला गया। पत्नी एक पेड़ के नीचे बैठकर पति के आने की प्रतीक्षा करने लगी। जब पति पानी लेकर लौटा तो उसे यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि उसकी पत्नी के पास उसी का हमशक्ल युवक बैठा था और दोनों हंस-हंसकर बातें कर रहे थे। यह देख पति क्रोधित हो गया। फिर वह अपने हमशक्ल युवक से झगड़ने लगा। दोनों में गुत्मगुत्था हो गई, तब तक वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। यह देखकर पत्नी को भी बड़ा आश्चर्य हुआ। इसी बीच सिपाही भी वहां आ गए। उन्होंने उस स्त्री से पूछा कि बताओ इन हमशक्लों में से तुम्हारा पति कौन है। यह सुनकर वह स्त्री असमंजस में पड़ गई। अपनी पत्नी की ऐसी अवस्था देखकर युवक ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि, ‘हे प्रभो! आप हमारी रक्षा करें। मुझसे बड़ी भूल हो गई कि बुधवार को अपनी पत्नी को उसके पीहर से विदा करा लाया। अब भविष्य में कभी भी ऐसा नहीं करूंगा।’
युवक द्वारा ऐसी प्रार्थना करते ही दूसरा हमशक्ल युवक अंतर्धान हो गया और वे पति-पत्नी सकुशल घर पहुंच गए, तब से दोनों पति-पत्नी नियमपूर्वक बुधवार प्रदोष व्रत करने लगे। प्राचीन मान्यताओं का भले ही वैज्ञानिक आधार हमें न समझ में आए, परन्तु उनका प्रभाव, अनुभव और सतत प्रचलन यह सिद्ध करता है कि उनमें कोई न कोई गूढ़ रहस्य अवश्य छिपा होता है।
बुधवार प्रदोष व्रत कथा - यह कथा अति प्राचीन है। एक युवक का नया-नया विवाह हुआ था। विवाह के दो दिन बाद ही उसकी नवविवाहिता पत्नी अपने पीहर चली गई। युवक से उसका बिछोह सहन नहीं हुआ तो कुछ दिनों बाद ही वह अपनी पत्नी को लाने के लिए अपनी ससुराल जा पहुंचा। बुधवार के दिन वह अपनी पत्नी को विदा कराने की जिद कर बैठा। ससुराल वालों ने काफी समझाया कि बुधवार को बेटी को विदा नहीं किया जाता, लेकिन वह नहीं माना और पत्नी को विदा करवाकर अपने घर की ओर चल पड़ा।
अभी वे पति-पत्नी नगर के बाहर पहुंचे ही थे कि पत्नी को प्यास लगी। पति लोटा लेकर पानी की खोज में चला गया। पत्नी एक पेड़ के नीचे बैठकर पति के आने की प्रतीक्षा करने लगी। जब पति पानी लेकर लौटा तो उसे यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि उसकी पत्नी के पास उसी का हमशक्ल युवक बैठा था और दोनों हंस-हंसकर बातें कर रहे थे। यह देख पति क्रोधित हो गया। फिर वह अपने हमशक्ल युवक से झगड़ने लगा। दोनों में गुत्मगुत्था हो गई, तब तक वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। यह देखकर पत्नी को भी बड़ा आश्चर्य हुआ। इसी बीच सिपाही भी वहां आ गए। उन्होंने उस स्त्री से पूछा कि बताओ इन हमशक्लों में से तुम्हारा पति कौन है। यह सुनकर वह स्त्री असमंजस में पड़ गई। अपनी पत्नी की ऐसी अवस्था देखकर युवक ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि, ‘हे प्रभो! आप हमारी रक्षा करें। मुझसे बड़ी भूल हो गई कि बुधवार को अपनी पत्नी को उसके पीहर से विदा करा लाया। अब भविष्य में कभी भी ऐसा नहीं करूंगा।’
युवक द्वारा ऐसी प्रार्थना करते ही दूसरा हमशक्ल युवक अंतर्धान हो गया और वे पति-पत्नी सकुशल घर पहुंच गए, तब से दोनों पति-पत्नी नियमपूर्वक बुधवार प्रदोष व्रत करने लगे। प्राचीन मान्यताओं का भले ही वैज्ञानिक आधार हमें न समझ में आए, परन्तु उनका प्रभाव, अनुभव और सतत प्रचलन यह सिद्ध करता है कि उनमें कोई न कोई गूढ़ रहस्य अवश्य छिपा होता है।
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