पटना: सामाजिक न्याय के मसीहा और कभी देश की राजनीति में अव्वल रहने वाले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव सत्ता के संघर्ष में एक-एक कर परिवार को बिखरते देख रहे हैं। पहले तेज प्रताप यादव विद्रोह की भेंट चढ़े और अब लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने नैतिक विरोध का एक नया दरवाजा ही खोल दिया है। ऐसे में तेजस्वी यादव का राज्यारोहण की उम्मीद कर रहे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव या कि तेजस्वी यादव पहले एनडीए से लड़े या फिर घर परिवार के सदस्यों से।
पारिवारिक संघर्ष के इस पड़ाव में न केवल लालू प्रसाद बल्कि तेजस्वी यादव के लिए भी परिवार को बचाए रखने के साथ साथ अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाना भी एक बड़ी चुनौती बन गई है। आइए जानते हैं विरोध की सबसे बड़ी वजह क्या है और किस शख्स के विरुद्ध बिखर रहा है लालू प्रसाद यादव का कुनबा।
रोहिणी भी हुई विरोध पर सवार
लालू प्रसाद यादव की बहुत ही प्यारी और भरोसे वाली बेटी रोहिणी आचार्य ने सांसद संजय यादव का विरोध कर न केवल तेज प्रताप के साथ खड़ी हुई, बल्कि राजद के तमाम बड़े कार्यकर्ता जो संजय यादव के व्यवहार से नाराज हैं, उन्हें भी बल दिया। रोहिणी आचार्य का संवेदनात्मक अपील राजद की वर्तमान राजनीति पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा कर गया है।
रोहिणी की ओर से तेजस्वी की सीट पर संजय यादव के बैठे होने की तस्वीर को री-पोस्ट करने का मकसद कहीं न कहीं तेजस्वी यादव को यह बताना रहा है कि पार्टी को हाइजैक करने की कोशिश शुरू हो चुकी है।
राजनीतिक महत्वाकांक्षा से किया इनकार
रोहिणी के विरोध को सत्ता संघर्ष की तरफ न मोड दिया जाए इसके पहले ही रोहिणी ने साफ कर दिया कि जो जान हथेली पर रखते हुए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने का जज्बा रखते हैं, बेखौफ, बेबाकी, खुद्दारी उनके लहू में बहती है। मैंने एक बेटी और बहन के तौर पर अपना कर्तव्य और धर्म निभाया है और आगे भी निभाती रहूंगी। मुझे किसी पद की लालसा नहीं है, न मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा है, मेरे लिए मेरा आत्म-सम्मान सर्वोपरि है।
तेज प्रताप ने पार्टी के जयचंद के विरुद्ध मोर्चा खोला
राजद सुप्रीमो लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने रोहिणी से पहले ही विरोध का परचम लहराया था। लेकिन तेज प्रताप ने सीधा सीधा संजय यादव का नाम नहीं लिया पर उन्हें जयचंद करार देकर छोटे भाई तेजस्वी यादव को सावधान भी किया।
फिर तेज प्रताप ने आखिरी उम्मीद को ट्वीट में व्यक्त किया। इस ट्वीट में तेजस्वी यादव को केन्द्रित कर तेज प्रताप ने कहा कि 'मेरे अर्जुन से मुझे अलग करने का सपना देखने वालों, तुम कभी अपनी साजिशों में सफल नही हो सकोगे, कृष्ण की सेना तो तुम ले सकते हो, लेकिन खुद कृष्ण को नहीं। हर साजिश को जल्द बेनकाब करूंगा। बस मेरे भाई भरोसा रखना मैं हर परिस्थिति में तुम्हारे साथ हूं। फिलहाल दूर हूं। लेकिन मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ था और रहेगा। मेरे भाई मम्मी पापा का ख्याल रखना, जयचंद हर जगह है अंदर भी और बाहर भी।'
पर तेज प्रताप की यह अपील नक्कारखाने में तूती साबित हुई। अंततः तेज प्रताप ने जनशक्ति जनता पार्टी बनाकर अपनी राजनीतिक सफर को जारी रखा।
मीसा भारती भी थी नाराज
मीसा भारती ने तो तब संजय यादव का विरोध किया था जब तेजस्वी यादव के कहने पर संजय यादव को राज्यसभा भेजा गया। तब मीसा भारती का कहना था कि पार्टी के भीतर सामाजिक न्याय यात्रा के साथ कदम से कदम मिलाकर जो चले उन्हें भेजना चाहिए। तब यह सवाल भी उठा था कि संजय यादव न तो नेता थे और न ही बिहार से रहने वाले। एक आईटी सेल को देखने वालों को राज्यसभा भेजना एक मजबूत राजनीतिक निर्णय नहीं है।
लालू परिवार पर खतरा तो है: ओम प्रकाश अश्क
वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क का मानना है कि संजय यादव राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के परिवार पर ही खतरा नहीं हैं, बल्कि राजद की राजनीति की जो अपनी पहचान है उस पर भी खतरा हैं। राजद सुप्रीमो लालू यादव की कुर्सी पर संजय यादव का बैठना कोई छोटी घटना नहीं है। तेजस्वी यादव तो तब बैठे जब पार्टी की ओर से संवैधानिक अधिकार दिया गया। पर बगैर किसी संवैधानिक अधिकार के लालू यादव की कुर्सी पर बैठना उनके अति महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। ये राजद की राजनीति पर सबसे बड़ा खतरा है।
पारिवारिक विद्रोह की जो सूरत अभी दिखाई पड़ रही है वह तो अब एनडीए के लिए एक मुद्दा बन जाएगा कि जो परिवार न बचा सके वे देश और बिहार कैसे संभालेंगे। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की राजनीति में संजय यादव की बढ़ती पकड़ और एक-एक कर दरकिनार होते राजद के वरीय नेता यानी अब्दुल बारी सिद्दीकी, रामचंद्र पूर्व, शिवानंद तिवारी जैसे नेताओं के हाशिए पर आना राजद के भीतरी लोकतंत्र के लिए खतरा है।
पारिवारिक संघर्ष के इस पड़ाव में न केवल लालू प्रसाद बल्कि तेजस्वी यादव के लिए भी परिवार को बचाए रखने के साथ साथ अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाना भी एक बड़ी चुनौती बन गई है। आइए जानते हैं विरोध की सबसे बड़ी वजह क्या है और किस शख्स के विरुद्ध बिखर रहा है लालू प्रसाद यादव का कुनबा।
रोहिणी भी हुई विरोध पर सवार
लालू प्रसाद यादव की बहुत ही प्यारी और भरोसे वाली बेटी रोहिणी आचार्य ने सांसद संजय यादव का विरोध कर न केवल तेज प्रताप के साथ खड़ी हुई, बल्कि राजद के तमाम बड़े कार्यकर्ता जो संजय यादव के व्यवहार से नाराज हैं, उन्हें भी बल दिया। रोहिणी आचार्य का संवेदनात्मक अपील राजद की वर्तमान राजनीति पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा कर गया है।
रोहिणी की ओर से तेजस्वी की सीट पर संजय यादव के बैठे होने की तस्वीर को री-पोस्ट करने का मकसद कहीं न कहीं तेजस्वी यादव को यह बताना रहा है कि पार्टी को हाइजैक करने की कोशिश शुरू हो चुकी है।
राजनीतिक महत्वाकांक्षा से किया इनकार
रोहिणी के विरोध को सत्ता संघर्ष की तरफ न मोड दिया जाए इसके पहले ही रोहिणी ने साफ कर दिया कि जो जान हथेली पर रखते हुए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने का जज्बा रखते हैं, बेखौफ, बेबाकी, खुद्दारी उनके लहू में बहती है। मैंने एक बेटी और बहन के तौर पर अपना कर्तव्य और धर्म निभाया है और आगे भी निभाती रहूंगी। मुझे किसी पद की लालसा नहीं है, न मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा है, मेरे लिए मेरा आत्म-सम्मान सर्वोपरि है।
तेज प्रताप ने पार्टी के जयचंद के विरुद्ध मोर्चा खोला
राजद सुप्रीमो लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने रोहिणी से पहले ही विरोध का परचम लहराया था। लेकिन तेज प्रताप ने सीधा सीधा संजय यादव का नाम नहीं लिया पर उन्हें जयचंद करार देकर छोटे भाई तेजस्वी यादव को सावधान भी किया।
फिर तेज प्रताप ने आखिरी उम्मीद को ट्वीट में व्यक्त किया। इस ट्वीट में तेजस्वी यादव को केन्द्रित कर तेज प्रताप ने कहा कि 'मेरे अर्जुन से मुझे अलग करने का सपना देखने वालों, तुम कभी अपनी साजिशों में सफल नही हो सकोगे, कृष्ण की सेना तो तुम ले सकते हो, लेकिन खुद कृष्ण को नहीं। हर साजिश को जल्द बेनकाब करूंगा। बस मेरे भाई भरोसा रखना मैं हर परिस्थिति में तुम्हारे साथ हूं। फिलहाल दूर हूं। लेकिन मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ था और रहेगा। मेरे भाई मम्मी पापा का ख्याल रखना, जयचंद हर जगह है अंदर भी और बाहर भी।'
पर तेज प्रताप की यह अपील नक्कारखाने में तूती साबित हुई। अंततः तेज प्रताप ने जनशक्ति जनता पार्टी बनाकर अपनी राजनीतिक सफर को जारी रखा।
मीसा भारती भी थी नाराज
मीसा भारती ने तो तब संजय यादव का विरोध किया था जब तेजस्वी यादव के कहने पर संजय यादव को राज्यसभा भेजा गया। तब मीसा भारती का कहना था कि पार्टी के भीतर सामाजिक न्याय यात्रा के साथ कदम से कदम मिलाकर जो चले उन्हें भेजना चाहिए। तब यह सवाल भी उठा था कि संजय यादव न तो नेता थे और न ही बिहार से रहने वाले। एक आईटी सेल को देखने वालों को राज्यसभा भेजना एक मजबूत राजनीतिक निर्णय नहीं है।
लालू परिवार पर खतरा तो है: ओम प्रकाश अश्क
वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क का मानना है कि संजय यादव राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के परिवार पर ही खतरा नहीं हैं, बल्कि राजद की राजनीति की जो अपनी पहचान है उस पर भी खतरा हैं। राजद सुप्रीमो लालू यादव की कुर्सी पर संजय यादव का बैठना कोई छोटी घटना नहीं है। तेजस्वी यादव तो तब बैठे जब पार्टी की ओर से संवैधानिक अधिकार दिया गया। पर बगैर किसी संवैधानिक अधिकार के लालू यादव की कुर्सी पर बैठना उनके अति महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। ये राजद की राजनीति पर सबसे बड़ा खतरा है।
पारिवारिक विद्रोह की जो सूरत अभी दिखाई पड़ रही है वह तो अब एनडीए के लिए एक मुद्दा बन जाएगा कि जो परिवार न बचा सके वे देश और बिहार कैसे संभालेंगे। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की राजनीति में संजय यादव की बढ़ती पकड़ और एक-एक कर दरकिनार होते राजद के वरीय नेता यानी अब्दुल बारी सिद्दीकी, रामचंद्र पूर्व, शिवानंद तिवारी जैसे नेताओं के हाशिए पर आना राजद के भीतरी लोकतंत्र के लिए खतरा है।
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