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'अपने वेतन का पैसा घर लेकर नहीं जाती थी', महिला शिक्षक के तबादले पर रोने लगे ग्रामीण और स्टूडेंट्स, जानिए पूरी कहानी

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मुजफ्फरपुर: जिले के सरैया प्रखंड स्थित आदर्श मध्य विद्यालय आरोपुर में एक ऐसी विदाई देखने को मिली, जिसे देखकर हर कोई भावुक हो उठा। यहां पदस्थापित शिक्षिका रेखा चौधरी के तबादले पर उन्हें बैंड-बाजे के साथ दुल्हन की तरह सजाकर विदाई दी गई। इस दौरान शिक्षिका, छात्र और ग्रामीण सभी की आंखें नम थीं। सरकारी कर्मचारी का तबादला एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन शायद ही कभी ऐसा देखने को मिलता है कि किसी शिक्षिका के तबादले पर इतनी बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं और अभिभावक उमड़ पड़े और उनकी विदाई को यादगार बना दें। मुजफ्फरपुर में कुछ ऐसा ही हुआ।





दुल्हन की तरह विदाई

शिक्षिका रेखा चौधरी के तबादले के मौके पर उन्हें दुल्हन की तरह सजाया गया, उनके गले में फूलों का हार पहनाया गया और उनकी गाड़ी को भी फूलों से दुल्हन की गाड़ी की तरह सजाया गया। ग्रामीणों ने बैंड-बाजे के साथ रेखा चौधरी को विदाई दी। विदाई से पहले विद्यालय परिसर में एक भव्य मंच सजाया गया था। छात्र-छात्राओं ने शिक्षिका रेखा चौधरी के सम्मान में विदाई भाषण दिए, जिससे वह भाव विभोर हो गईं। इस अवसर पर प्रधानाध्यापक ने शिक्षिका को अंगवस्त्र, गुलदस्ता, प्रतीक चिन्ह और शॉल भेंट कर सम्मानित किया। शिक्षकों ने उन्हें माला पहनाई, और बच्चों ने अपने भाषणों से इस समारोह को और भी यादगार बना दिया।





शिक्षिका हुईं भावुक

बच्चों के प्यार और सम्मान को देखकर रेखा चौधरी मंच पर ही भावुक हो गईं और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। उन्हें रोता देख ग्रामीण और छात्र-छात्राएं भी भावुक हो गए। शिक्षिका रेखा चौधरी ने भावुक होकर बताया कि यह विद्यालय मेरे परिवार की तरह था। मैं अपने वेतन का सारा पैसा अपने विद्यालय के छात्र-छात्राओं के बीच कॉपी-किताब के लिए बांट देती थी। मुझे लगता है कि मैं इस विद्यालय को नहीं, बल्कि इस दुनिया को छोड़कर जा रही हूं, इसलिए दुखी हूं। उन्होंने बताया कि वह इस स्कूल में पिछले 21 वर्षों से कार्यरत थीं और अब तबादले के बाद उन्हें दूसरे विद्यालय जाना पड़ रहा है।





छात्रों ने बताई त्याग की कहानी

उनके पूर्ववर्ती छात्र दिलीप कुमार ने बताया कि जब रेखा दीदी ने पहली बार स्कूल ज्वाइन किया था, उस समय हम भी उनके पहले बैच के छात्र थे। आज मैं दरभंगा मिडिल स्कूल में शिक्षक हूं। रेखा दीदी सिर्फ एक शिक्षक नहीं थीं, बल्कि एक मां के रूप में हमेशा हमारा साथ देती थीं। जब हमारे पास कॉपी-किताब, स्कूल बैग या फॉर्म भरने के लिए पैसे नहीं होते थे, तो वह अपनी सैलरी से खुद पैसे देती थीं। जहां तक मुझे जानकारी है, ग्रामीण होने के नाते रेखा दीदी ने अभी तक अपने गांव में घर तक नहीं बनवाया है। दिलीप ने यह भी बताया कि रेखा दीदी ने कई छात्रों की कॉपी-किताब और पैसे से मदद की है।





छात्रा ने बताई कहानी

रेखा कुमारी के पहले बैच के एक और छात्र पिंटू कुमार, जो आज एक केंद्रीय विद्यालय (केवी) में शिक्षक हैं, ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। उन्होंने कहा कि जब मैंने पहली बार इस स्कूल में दाखिला लिया, तो मेरे पास फॉर्म भरने के लिए पैसे नहीं थे। तब रेखा दीदी ने मुझे पैसे दिए और कॉपी-किताब तक उपलब्ध कराईं। आज मैं केंद्रीय विद्यालय अगरतला में पोस्टेड हूं। रेखा दीदी के कारण ही आज मैं केंद्रीय विद्यालय का शिक्षक बन पाया हूं। मुझे तो केंद्रीय विद्यालय का 'केवी' भी नहीं पता था कि आखिर केवी भी कुछ होता है। रेखा दीदी की एक छात्रा, जो आज दरभंगा मध्य विद्यालय में शिक्षक हैं, ने नम आंखों से कहा कि आज मैं जो कुछ भी हूं, वह रेखा दीदी की ही देन है।

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