मंगलवार को ऑफिस से थका हुआ घर पहुंचा था। कॉल बेल बजाया। उम्मीद थी कि पत्नी हर रोज की दरवाजा खोलेंगी। लेकिन ये क्या। ये तो मेरे सुपुत्र जी दरवाजे पर थे। हल्की मुस्कान के साथ दरवाजा खोला और वो मुझसे एकदम से लिपट गए। मैं थोड़ा घबरा गया था। ऐसा वो कभी करता नहीं था। मैंने पूछा बेटा सब ठीक है? तब उसने मुझे जोर से भींचते हुए बोला पापा ये ठीक नहीं हुआ। मैं थोड़ा घबराया! फिर उससे पूछा पर हुआ क्या? तब उसने लगभग चिल्लाते हुए बोला.. पापा 'पंचायत' सीरीज में ये अच्छा नहीं हुआ। मैंने कहा क्या अच्छा नहीं हुआ.. तब तेज आवाज में बोलता है (उसने कहानी का क्लाइमेक्स बता दिया) और पूरी कहानी कह दी।
दरअसल, 'पंचायत' के चौथे सीजन का मेरा बेटा बेसब्री से इंतजार कर रहा था। मैंने 24 तारीख की सुबह उसे इसी बात का जिक्र करते हुए उठाया था कि बेटा प्रधान जी पर गोली किसने चलाई है पता चल गया है.. वो बड़ी तेजी से उठता है, ब्रश करता है और फिर मुझे कहता है कि पापा आप मुझे बनाना (केला) खिला दीजिए मैं जरा पंचायत देखते हुए खाऊंगा। यानी सीरीज को लेकर कमाल की दीवानगी। वैसे इस सीरीज को मैं भी काफी पसंद करता हूं.. (पर अभी पूरा देखा नहीं है) लेकिन अपने बेटे की दीवानगी मुझे इस सीरीज की लोकप्रियता को दिखा रही थी।
'जब बच्चे को ये चीज पसंद नहीं आई तो दर्शक भला कैसे इसे पसंद कर पाएंगे?'
हां, वो बात अधूरी रह गई.. दरवाजा खोलने के बाद वो मेरे पीछे-पीछे आता है। बेडरूम में भी जाकर कह रहा है कि ये पंचायत वाले कुछ ठीक नहीं किए। चूंकि वो मुझे क्लाइमेक्स बता चुका था तो मैं भी थोड़ा अपसेट हुआ। जब छोटे बच्चे को ये चीज पसंद नहीं आई तो इस सीजन का बेसब्री से इंतजार कर रहे दर्शक भला कैसे इसे पसंद कर पाएंगे। हुआ भी यही है। लगभग सारे रिव्यू पंचायत को इस बार औसत ही बता रहे हैं। पहला दो एपिसोड जो मैंने देखा है वो मुझे ठीकठाक लगा है लेकिन कुछ चीजें जोर-जबरदस्ती वाली लगीं। टॉयलेट साफ करने के लिए प्रधान जी की पत्नी और बनराकस की पत्नी के बीच हाथापाई वाला सीन समझ से परे है।
'अटपटा लगता है 'पंचायत सीजन 4' का क्लाइमेक्स
अब बड़ा सवाल ये है कि आखिर 'पंचायत' सीरीज के लेखक आखिर एक पॉपुलर ओपिनियन के खिलाफ जाने की कैसे सोचे? क्लाइमेक्स चूंकि मुझे पता है इसलिए मैं भी यही सोच रहा हूं। आप एक ऐसे सीरीज का चौथा सीजन ला रहे हैं जो कमाल का लोकप्रिय हो रहा है, उसमें इतना जोखिम मोल लेना उस सीरीज को लोकप्रियता को कम करता है। अपने दफ्तर में भी में भी कुछ लोगों से बातचीत में ये तो लगा सीरीज ठीक है, लेकिन क्लाइमेक्स को लेकर संशय है। दरअसल, ऐसी लोकप्रिय सीरीज के लिए जब आप कल्पना करते हैं तो पटकथा लिखना शुरू करते हैं तो हर तर्क का इस्तेमाल करते हैं। पर हर फिल्म 'शोले' में एक नायक को मारकर सुपरहिट नहीं हो सकती है। 'पंचायत' सीरीज के लेखक ने पटकथा का क्लाइमेक्स में ऐसा रखा है जो थोड़ा अटपटा लगता है। पटकथा लेखक को अपने दर्शकों का तो ख्याल रखना ही चाहिए।
देखिए 'पंचायत सीजन 4' का ट्रेलर:
दरअसल, बाल मन चीजों को अपने नजरिये से देखता है। उसे अच्छी-बुरी चीजों की समझ जैसे-जैसे आती है वो उसको उसी हिसाब से इंटरपरेट करते हैं। मेरे बेटे को भी 'पंचायत सीरीज' का क्लाइमेक्स अपने हिसाब से ठीक नहीं लगा। बनराकस समाज के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जो बुरा करता और बुरा सोचता है। साजिशें करता है। तो एक बच्चे ने उसे अपने नजरिये से देखा। जो बिल्कुल सही भी है। आम दर्शक भी कमोबेश यही सोच रखते हैं। कई फिल्मों की पटकथा तो इसलिए ही बदल जी जाती है कि उसका क्लाइमेक्स लोगों को पसंद नहीं आएगी। 'पंचायत' सीरीज के दो एपिसोड देखने के बाद अब मैं सोच रहा हूं कि आगे क्या करना चाहिए (क्योंकि क्लाइमेक्स मुझे पता है)। आप लोग ही राय दीजिए।
दरअसल, 'पंचायत' के चौथे सीजन का मेरा बेटा बेसब्री से इंतजार कर रहा था। मैंने 24 तारीख की सुबह उसे इसी बात का जिक्र करते हुए उठाया था कि बेटा प्रधान जी पर गोली किसने चलाई है पता चल गया है.. वो बड़ी तेजी से उठता है, ब्रश करता है और फिर मुझे कहता है कि पापा आप मुझे बनाना (केला) खिला दीजिए मैं जरा पंचायत देखते हुए खाऊंगा। यानी सीरीज को लेकर कमाल की दीवानगी। वैसे इस सीरीज को मैं भी काफी पसंद करता हूं.. (पर अभी पूरा देखा नहीं है) लेकिन अपने बेटे की दीवानगी मुझे इस सीरीज की लोकप्रियता को दिखा रही थी।
'जब बच्चे को ये चीज पसंद नहीं आई तो दर्शक भला कैसे इसे पसंद कर पाएंगे?'
हां, वो बात अधूरी रह गई.. दरवाजा खोलने के बाद वो मेरे पीछे-पीछे आता है। बेडरूम में भी जाकर कह रहा है कि ये पंचायत वाले कुछ ठीक नहीं किए। चूंकि वो मुझे क्लाइमेक्स बता चुका था तो मैं भी थोड़ा अपसेट हुआ। जब छोटे बच्चे को ये चीज पसंद नहीं आई तो इस सीजन का बेसब्री से इंतजार कर रहे दर्शक भला कैसे इसे पसंद कर पाएंगे। हुआ भी यही है। लगभग सारे रिव्यू पंचायत को इस बार औसत ही बता रहे हैं। पहला दो एपिसोड जो मैंने देखा है वो मुझे ठीकठाक लगा है लेकिन कुछ चीजें जोर-जबरदस्ती वाली लगीं। टॉयलेट साफ करने के लिए प्रधान जी की पत्नी और बनराकस की पत्नी के बीच हाथापाई वाला सीन समझ से परे है।
'अटपटा लगता है 'पंचायत सीजन 4' का क्लाइमेक्स
अब बड़ा सवाल ये है कि आखिर 'पंचायत' सीरीज के लेखक आखिर एक पॉपुलर ओपिनियन के खिलाफ जाने की कैसे सोचे? क्लाइमेक्स चूंकि मुझे पता है इसलिए मैं भी यही सोच रहा हूं। आप एक ऐसे सीरीज का चौथा सीजन ला रहे हैं जो कमाल का लोकप्रिय हो रहा है, उसमें इतना जोखिम मोल लेना उस सीरीज को लोकप्रियता को कम करता है। अपने दफ्तर में भी में भी कुछ लोगों से बातचीत में ये तो लगा सीरीज ठीक है, लेकिन क्लाइमेक्स को लेकर संशय है। दरअसल, ऐसी लोकप्रिय सीरीज के लिए जब आप कल्पना करते हैं तो पटकथा लिखना शुरू करते हैं तो हर तर्क का इस्तेमाल करते हैं। पर हर फिल्म 'शोले' में एक नायक को मारकर सुपरहिट नहीं हो सकती है। 'पंचायत' सीरीज के लेखक ने पटकथा का क्लाइमेक्स में ऐसा रखा है जो थोड़ा अटपटा लगता है। पटकथा लेखक को अपने दर्शकों का तो ख्याल रखना ही चाहिए।
देखिए 'पंचायत सीजन 4' का ट्रेलर:
दरअसल, बाल मन चीजों को अपने नजरिये से देखता है। उसे अच्छी-बुरी चीजों की समझ जैसे-जैसे आती है वो उसको उसी हिसाब से इंटरपरेट करते हैं। मेरे बेटे को भी 'पंचायत सीरीज' का क्लाइमेक्स अपने हिसाब से ठीक नहीं लगा। बनराकस समाज के उस वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है जो बुरा करता और बुरा सोचता है। साजिशें करता है। तो एक बच्चे ने उसे अपने नजरिये से देखा। जो बिल्कुल सही भी है। आम दर्शक भी कमोबेश यही सोच रखते हैं। कई फिल्मों की पटकथा तो इसलिए ही बदल जी जाती है कि उसका क्लाइमेक्स लोगों को पसंद नहीं आएगी। 'पंचायत' सीरीज के दो एपिसोड देखने के बाद अब मैं सोच रहा हूं कि आगे क्या करना चाहिए (क्योंकि क्लाइमेक्स मुझे पता है)। आप लोग ही राय दीजिए।
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