नई दिल्ली: सरकार संसदीय स्थायी समितियों का कार्यकाल एक साल से बढ़ाकर दो साल करने पर विचार कर रही है। इस मुद्दे पर जल्द ही लोकसभा और राज्यसभा के पीठासीन अधिकारियों से चर्चा होने की संभावना है।
समितियों का कार्यकाल बढ़ाने की जरूरत क्यों?
दरअसल, कई सांसदों ने शिकायत की है कि मौजूदा एक साल का कार्यकाल बहुत कम होता है, जिससे समितियां कानून बनाने और संसद की निगरानी जैसी जिम्मेदारियों में सार्थक योगदान नहीं दे पातीं। आमतौर पर इन समितियों का नया कार्यकाल सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में शुरू होता है।
संसद सूत्रों के मुताबिक, कुछ सदस्यों ने सरकार से आग्रह किया है कि कार्यकाल कम से कम दो साल का हो ताकि समितियां चुने गए विषयों पर गहराई से चर्चा कर सकें।
संसदीय समिति क्या होती है?
संसदीय समितियां नई लोकसभा के गठन के बाद राजनीतिक दलों से परामर्श करके बनाई जाती हैं। इनमें समितियों के अध्यक्षों का चयन दलों की ताकत के अनुपात में होता है। आमतौर पर लोकसभा के कार्यकाल की शुरुआत में चुना गया अध्यक्ष अपनी भूमिका में बना रहता है, जब तक कि किसी राजनीतिक दल की ओर से बदलाव की मांग न हो।
कभी-कभी सदस्य भी समिति बदलने की इच्छा जताते हैं, जिसे संबंधित सदन के पीठासीन अधिकारी मान भी लेते हैं। 24 विभागीय स्थायी समितियों में से 8 राज्यसभा सांसदों की अध्यक्षता में और 16 लोकसभा सांसदों की अध्यक्षता में काम करती हैं। इसके अलावा संसदीय व्यवस्था में वित्तीय समितियां, अस्थायी समितियां और अन्य समितियां भी समय-समय पर बनाई जाती हैं, जो विधेयकों और अन्य मुद्दों की जांच करती हैं।
समितियों का कार्यकाल बढ़ाने की जरूरत क्यों?
दरअसल, कई सांसदों ने शिकायत की है कि मौजूदा एक साल का कार्यकाल बहुत कम होता है, जिससे समितियां कानून बनाने और संसद की निगरानी जैसी जिम्मेदारियों में सार्थक योगदान नहीं दे पातीं। आमतौर पर इन समितियों का नया कार्यकाल सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में शुरू होता है।
संसद सूत्रों के मुताबिक, कुछ सदस्यों ने सरकार से आग्रह किया है कि कार्यकाल कम से कम दो साल का हो ताकि समितियां चुने गए विषयों पर गहराई से चर्चा कर सकें।
संसदीय समिति क्या होती है?
संसदीय समितियां नई लोकसभा के गठन के बाद राजनीतिक दलों से परामर्श करके बनाई जाती हैं। इनमें समितियों के अध्यक्षों का चयन दलों की ताकत के अनुपात में होता है। आमतौर पर लोकसभा के कार्यकाल की शुरुआत में चुना गया अध्यक्ष अपनी भूमिका में बना रहता है, जब तक कि किसी राजनीतिक दल की ओर से बदलाव की मांग न हो।
कभी-कभी सदस्य भी समिति बदलने की इच्छा जताते हैं, जिसे संबंधित सदन के पीठासीन अधिकारी मान भी लेते हैं। 24 विभागीय स्थायी समितियों में से 8 राज्यसभा सांसदों की अध्यक्षता में और 16 लोकसभा सांसदों की अध्यक्षता में काम करती हैं। इसके अलावा संसदीय व्यवस्था में वित्तीय समितियां, अस्थायी समितियां और अन्य समितियां भी समय-समय पर बनाई जाती हैं, जो विधेयकों और अन्य मुद्दों की जांच करती हैं।
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