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भगवान बुद्ध के शांति संदेश को भूल लड़ रहा थाईलैंड-कंबोडिया, बिहार के गयाजी में दोनों देशों के बौद्ध मंदिर

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गयाजी: बौद्ध धर्म। इसकी शुरुआत ही शांति के लिए हुई थी। युद्ध से मुक्ति के लिए बौद्ध धर्म। करीब 3000 हजार साल पहले एक राजकुमार ने राजपाट छोड़ दिया था। बाद में गौतम बुद्ध या भगवान बुद्ध कहे गए। प्राचीन भारत के लुंबनी में जन्मे सिद्धार्थ गौतम को आधुनिक बिहार के बोधगया में 'ज्ञान' प्राप्त हुआ। फिर अनुयायियों को 'दुख' से मुक्ति के मार्ग की शिक्षा दी। बौद्ध धर्म की शिक्षाएं भारत से पूरे मध्य और दक्षिण-पूर्व एशिया तक पहुंची। प्राचीन भारत के चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने तो युद्ध से ही मुक्ति ले ली। मगर, आज हालात कुछ और हैं। जिस बुद्ध ने युद्ध से मुक्ति का रास्ता बताया था, आज उन्हीं बुद्ध की एक मंदिर के लिए थाईलैंड और कंबोडिया एक दूसरे पर बम-गोले बरसा रहे हैं। अगर, भगवान बुद्ध कहीं से देख रहे होंगे तो सोचिए उन्हें कितनी पीड़ा हो रही होगी। हालांकि, बिहार के बोधगया स्थित थाईलैंड और कंबोडिया के बौद्ध मठों में शांति है।





बुद्ध के मंदिर के लिए युद्ध, बोधगया में शांतिकरीब दर्जनभर देशों में बौद्ध धर्म के मानने वाले रहते हैं। बौद्ध धर्म के मानने वालों के लिए बिहार की बोधगया बहुत ही 'पवित्र' स्थल है। बौद्ध धर्म मानने वालों की ख्वाहिश होती है कि वो अपनी जीवन-काल में एक बार बोधगया की धरती पर जरूर जाएं। कंबोडिया और थाईलैंड भले ही आपस में युद्ध कर रहे, मगर बिहार के बोधगया में दोनों के बौद्ध मठों में शांति है। दोनों ही देश बौद्ध धर्म को मानने वाले हैं और इनकी जड़े बिहार के बोधगया में है। बोघगया स्थित कंबोडिया के बुद्ध विहार को कंबोडियन विहार या कंबोडियन मठ के नाम से जाना जाता है। कंबोडियन बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। इस विहार का निर्माण कंबोडिया सरकार की ओर से कराया गया है। बोधगया आने वाले कंबोडियाई तीर्थयात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। कंबोडियन विहार अपनी खास कंबोडियाई वास्तुकला के लिए जाना जाता है, जिसमें एक सुंदर मंदिर और प्रार्थना कक्ष शामिल है। यहां बिल्कुल शांति है।

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बौद्ध धर्म में आस्था और बुद्ध मंदिर के लिए युद्धभारत के पड़ोसी देश कंबोडिया और थाईलैंड एक बौद्ध मंदिर के लिए युद्ध कर रहे। दरअसल, थाईलैंड और कंबोडिया दोनों ही देश भगवान बुद्ध को मानते हैं। वहां पर ज्यादातार लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं। उनकी आस्था भगवान बुद्ध को लेकर है। उनके लिए गौतम बुद्ध ही भगवान हैं। मगर, भगवान बुद्ध ने अहिंसा परमो धर्म: का संदेश दिया था। ये दोनों देश रास्ते से भटककर युद्ध के मैदान में उतर गए। थाईलैंड-कंबोडिया का दशकों पुराना सीमा विवाद खूनी संघर्ष में तब्दील हो चुका है। दोनों देशों के बीच गौतम बुद्ध से जुड़े प्रीह विहार मंदिर को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है।





बोधगया में कंबोडिया और थाईलैंड के मठ आसपासवैसे, बोधगया में कंबोडियन मठ से कुछ ही दूरी पर थाईलैंड का एक प्रसिद्ध बुद्ध विहार है, जिसे थाई मंदिर या थाई मठ कहा जाता है। ये बोधगया में स्थित है और थाईलैंड सरकार की ओर से भगवान बुद्ध को समर्पित एक श्रद्धा के रूप में बनवाया गया है। ये मंदिर अपनी अनूठी थाई वास्तुकला, सुनहरी छत और भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा के लिए जाना जाता है। थाई वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है, जिसमें ढलानदार छत और सुनहरी टाइलें शामिल हैं। यहां पर 25 मीटर ऊंची भगवान बुद्ध की कांस्य की प्रतिमा भी लगाई गई है। बौद्ध धर्म से जुड़ी शिक्षाओं और ध्यान कक्षाओं से जुड़े नियमित कार्यक्रम होते हैं। इस मठ में बौद्ध धर्म के अंतरराष्ट्रीय स्वरूप और शांति के संदेश का ये थाई मठ प्रतिनिधित्व करता है। खास बात ये कि दूसरे देशों से आने वाले बौद्ध तीर्थयात्रियों और संस्कृति प्रेमियों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य स्थल है। इसके मंदिर परिसर में पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यक्रम होते रहते हैं।

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प्रीह विहार मंदिर को लेकर लंबे समय से विवादकंबोडिया और थाईलैंड के बीच प्रीह विहार मंदिर को लेकर करीब 100 साल से विवाद चल रहा है। प्रीह विहार मंदिर को 9वीं से 11वीं सदी के दौरान बनाया गया था। शुरुआती समय में यहां पर भगवान महादेव की पूजा होती थी। बाद के दिनों में ये मंदिर, बौद्ध धार्मिक परिसर में तब्दील हो गया। बौद्ध अनुयायी यहां प्रार्थना करने लगे। करीब 1500 साल पुराने प्रीह विहार मंदिर को खमेर साम्राज्य के शासनकाल का माना जाता है। इसकी सीमाएं आधुनिक कंबोडिया के अलावा थाईलैंड के कुछ हिस्सों तक थी। विवाद के दोनों देशों का बॉर्डर है।





बुद्ध को भूल गए कंबोडिया-थाईलैंड के शासक?गौतम बुद्ध को मानने वाले उनकी शांति के संदेश को नहीं मान रहे। हालांकि, दोनों देशों की जड़े बिहार के बोधगया में मजबूती पा रही है। यहां पर बुद्ध को लेकर कोई झगड़ा नहीं है। मगर, बोधगया से सैकड़ों किलोमीटर दूर भगवान बुद्ध के मंदिर के लिए कंबोडिया और थाईलैंड फाइटर जेट से बम बरसा रहे। ये लड़ाई गौतम बुद्ध के एक मंदिर को लेकर है, जिस पर दोनों देश अपना-अपना दावा करते हैं। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच कई सालों से सीमा विवाद चल रहा है। इस झगड़े की जड़ में प्रीह विहार मंदिर है, जिसे 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने कहा था कि ये मंदिर कंबोडिया का है। लेकिन, आसपास की जमीन पर दोनों देशों का दावा है। 2008 में यूनेस्को ने मंदिर को विश्व धरोहर घोषित कर दिया। इसके बाद तनाव और बढ़ गया। 2011 में भी दोनों देशों के बीच बड़ी झड़प हुई थी।

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जमीन के जड़ में प्रीह विहार मंदिर का झगड़ाकंबोडिया और थाईलैड में चल रहे युद्ध के जड़ में गौतम बुद्ध से जुड़ा एक मंदिर है। कंबोडिया का दावा था कि प्रीह विहार मंदिर उसके क्षेत्र का हिस्सा है। वहीं, थाईलैंड की सरकार कहती थी कि प्रीह विहार मंदिर उसके सुरीन प्रांत में है, इसलिए उसकी दावेदारी बनती है। ये मामला अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट तक पहुंचा। 1962 में इंटरनेशनल कोर्ट ने फैसला सुनाया कि प्रीह विहार मंदिर कंबोडिया का हिस्सा है। थाईलैंड ने मान लिया कि प्रीह विहार मंदिर कंबोडिया के क्षेत्र में है। मगर, आसपास की खाली जमीनों पर थाईलैंड ने अपनी सेना की तैनाती कर दी। मंदिर के आसपास की जमीन के मालिकाना हक को लेकर कंबोडिया और थाईलैंड लंबे समय से विवाद चल रहा, जो अब युद्ध के शक्ल में सामने आया है।

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