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भारत बंद से कई जगह पब्लिक ट्रांसपोर्ट प्रभावित..बिहार और बंगाल में ट्रेनों पर असर...जानें तमिलनाडु में कैसा रहा प्रभाव

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नई दिल्ली: बुधवार को 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने 'भारत बंद' का आह्वान किया था। इस बंद से कई राज्यों में सार्वजनिक परिवहन बुरी तरह प्रभावित हुआ। यूनियनों का कहना है कि केंद्र सरकार की श्रम सुधार और आर्थिक नीतियां श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर करती हैं। इसलिए वे इसका विरोध कर रहे हैं। बंद में सार्वजनिक परिवहन, सरकारी दफ्तरों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, बैंकों, बीमा, डाक सेवाओं, कोयला खनन और औद्योगिक उत्पादन को रोकने की कोशिश की गई।



बिहार- बंगाल में सार्वजनिक परिवहन ठप करने की कोशिश

बिहार और बंगाल में प्रदर्शनकारियों ने ट्रेन की पटरियों को जाम कराने की कोशिश की। बिहार के जहानाबाद रेलवे स्टेशन पर राष्ट्रीय जनता दल के छात्रों ने रेलवे ट्रैक को ब्लॉक कर दिया। पश्चिम बंगाल में प्रदर्शनकारियों ने कई स्टेशनों पर रेल सेवाएं बाधित कीं। इनमें जादवपुर भी शामिल था। यहां वामपंथी यूनियनों के सदस्यों ने पुलिस के सामने ही पटरियों पर धरना दिया। उत्तर बंगाल में बस ड्राइवर अपनी सुरक्षा में हेलमेट पहने भी नजर आए। हालांकि, दार्जिलिंग हिल्स में ऐसा नहीं था। एक बस ड्राइवर ने ANI को बताया, 'ये लोग सही बात कह रहे हैं (भारत बंद का जिक्र करते हुए)। लेकिन हमें अपना काम करना है। हम मजदूर हैं, इसलिए हम समर्थन करते हैं (बंद का)... हम सुरक्षा के लिए हेलमेट पहन रहे हैं, ताकि कुछ हो तो बचे रहें।'



कहीं आम जन जीवन प्रभावित, कभी सबकुछ सामान्य

ओडिशा में हाईवे को ब्लॉक कर दिया गया और केरल में दुकानें बंद रहीं। ओडिशा के भुवनेश्वर में सीटू (CITU) के सदस्यों ने नेशनल हाईवे को जाम कर दिया। केरल के कोट्टायम में दुकानें और मॉल बंद रहे। व्यापारियों ने ट्रेड यूनियनों के बंद के आह्वान का समर्थन किया। तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में सेवाएं सामान्य रहीं। चेन्नई में सार्वजनिक परिवहन सेवाएं 'भारत बंद' से ज्यादा प्रभावित नहीं हुईं। यहां बसें सामान्य रूप से चलती रहीं।



'लोकतांत्रिक ढांचे को खत्म करना चाहती है सरकार'

बंगाल में प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे वामपंथी ट्रेड यूनियनों ने कहा कि केंद्र सरकार श्रमिकों के अधिकारों की कीमत पर कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाले सुधार कर रही है। जादवपुर 8B बस स्टैंड के पास भारी पुलिस बल तैनात था। लेकिन, शहर के कुछ हिस्सों में प्राइवेट और सरकारी बसें चलती रहीं। CITU के जनरल सेक्रेटरी तपन कुमार सेन ने कहा, '17 सूत्री मांगों में सबसे अहम मांग यह है कि सरकार ने 2020 में जो श्रम कानून बनाए हैं, उन्हें रद्द किया जाए। ये कानून देश के ट्रेड यूनियन आंदोलन को खत्म करने के लिए बनाए गए हैं। यह बहुत खतरनाक कदम होगा। सरकार का मकसद लोकतांत्रिक ढांचे को खत्म करना है। इसके खिलाफ ट्रेड यूनियनों ने राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है।'



केंद्र की सरकार से क्या मांग कर रहे हैं श्रम संगठन

यूनियनों ने सरकार पर कार्रवाई न करने का आरोप लगाया। इस हड़ताल में आईएनटीयूसी,एआईटीयूसी,एचएमएस,सीआईटीयू,एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी,एसईडब्ल्यूए,एआईसीसीटीयू,एलपीएफ और यूटीयूसी जैसे संगठन शामिल हुए। यूनियनों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि केंद्र सरकार ने एक दशक से ज्यादा समय से वार्षिक श्रम सम्मेलन नहीं बुलाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' के नाम पर चार नए श्रम कानून ला रही है। इससे यूनियन की गतिविधियां और सामूहिक सौदेबाजी कमजोर होगी। यूनियनों ने केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियों को बेरोजगारी, जरूरी चीजों की बढ़ती कीमतों और गिरती मजदूरी के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य, शिक्षा और नागरिक सेवाओं में बजट कटौती से श्रमिकों पर और बुरा असर पड़ा है। ट्रेड यूनियनों की मुख्य मांगों में सरकारी पदों पर तुरंत भर्ती करना और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MNREGA) के तहत काम के दिनों और मजदूरी को बढ़ाना शामिल है।



इस 'भारत बंद' को संगठित और असंगठित श्रमिकों के अधिकारों को बहाल करने का आह्वान बताया जा रहा है। यूनियनों का कहना है कि भारत में श्रमिकों को मिले अधिकारों को खत्म करने की कोशिश की जा रही है। अलग-अलग राज्यों में बंद का असर अलग-अलग रहा। लेकिन हेलमेट पहने बस ड्राइवरों जैसे प्रतीकात्मक कदमों से पता चलता है कि भारत के मजदूर वर्ग में असंतोष बढ़ रहा है।



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