अभय सिंह राठौड़, लखनऊ: बसपा सुप्रीमो मायावती के भतीजे आकाश आनंद का पार्टी में कद बढ़ते ही उनके ससुर अशोक सिद्धार्थ की वापसी हो गई है। पूर्व सांसद अशोक सिद्धार्थ आकाश के माफीनामे के बाद मायावती ने उनकी वापसी का एलान कर दिया। इसी साल फरवरी में पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते मायावती ने पूर्व सांसद को बसपा से निकाल दिया था। कभी अशोक सिद्धार्थ बसपा सुप्रीमो के करीबी नेताओं में हुआ करते थे। मायावती के कहने पर ही उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर बसपा जॉइन कर ली थी।
अशोक सिद्धार्थ ने 6 सितंबर को सार्वजनिक तौर पर गलती स्वीकार करते हुए बसपा मूवमेंट के प्रति पूरी वफादारी का भरोसा दिलाया है। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा है कि बहन जी का मैं हृदय से सम्मान करता हूं। पार्टी का काम करते समय जाने-अनजाने में और गलत लोगों के बहकावे में आकर जो गलतियां हुईं, उसके लिए हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं। आगे कभी गलती नहीं करूंगा और पार्टी अनुशासन में रहकर उनके मार्गदर्शन में काम करूंगा।
अशोक सिद्धार्थ का बसपा में लंबा सफर5 फरवरी, 1965 को जन्मे अशोक सिद्धार्थ फर्रुखाबाद के कायमगंज के रहने वाले हैं। पेशे से डॉक्टर अशोक वामसेफ से भी जुड़े रहे। पार्टी संगठन में जिलाध्यक्ष से लेकर मंडल अध्यक्ष तक कई जिम्मेदारियां निभा चुके हैं। बसपा ने 2009 में उन्हें विधान परिषद भेजा। 2016 से 2022 तक वे राज्यसभा सांसद रहे। वह पार्टी के राष्ट्रीय सचिव, कानपुर-आगरा जोनल कोऑर्डिनेटर और पांच राज्यों के प्रभारी भी रह चुके हैं। उनकी पत्नी भी बसपा सरकार में महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं।
2023 में बेटी प्रज्ञा की शादी आकाश से कराईबसपा ने सतीश चंद्र मिश्र के साथ अशोक सिद्धार्थ को भी राज्यसभा भेजा था। मार्च 2023 में मायावती के भतीजे आकाश आनंद की शादी अशोक सिद्धार्थ की बेटी प्रज्ञा से हुई थी। इस रिश्तेदारी ने भी उन्हें सुर्खियों में ला दिया था। हालांकि पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के चलते अशोक सिद्धार्थ को 12 फरवरी, 2025 को बसपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मायावती ने आकाश आनंद से भी सारे पद छीनते हुए उन्हें भी पार्टी से निकाल दिया था। अब एक-एक कर दामाद और ससुर बसपा में वापसी कर चुके हैं।
क्या हैं राजनीतिक मायने?राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में लगातार कमजोर हो रहे संगठन और खिसकते दलित वोट बैंक को बचाने के लिए मायावती ने यह कदम उठाया है। आकाश आनंद की सक्रिय राजनीति में वापसी के बाद से ही अशोक सिद्धार्थ की घर वापसी तय मानी जा रही थी। अब माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में बसपा और भी पुराने नेताओं को दोबारा जोड़ सकती है। पंचायत चुनाव 2026 और 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए बसपा दलित समाज में अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। इसी कड़ी में यह कदम बेहद अहम माना जा रहा है।
अशोक सिद्धार्थ ने 6 सितंबर को सार्वजनिक तौर पर गलती स्वीकार करते हुए बसपा मूवमेंट के प्रति पूरी वफादारी का भरोसा दिलाया है। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा है कि बहन जी का मैं हृदय से सम्मान करता हूं। पार्टी का काम करते समय जाने-अनजाने में और गलत लोगों के बहकावे में आकर जो गलतियां हुईं, उसके लिए हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं। आगे कभी गलती नहीं करूंगा और पार्टी अनुशासन में रहकर उनके मार्गदर्शन में काम करूंगा।
अशोक सिद्धार्थ का बसपा में लंबा सफर5 फरवरी, 1965 को जन्मे अशोक सिद्धार्थ फर्रुखाबाद के कायमगंज के रहने वाले हैं। पेशे से डॉक्टर अशोक वामसेफ से भी जुड़े रहे। पार्टी संगठन में जिलाध्यक्ष से लेकर मंडल अध्यक्ष तक कई जिम्मेदारियां निभा चुके हैं। बसपा ने 2009 में उन्हें विधान परिषद भेजा। 2016 से 2022 तक वे राज्यसभा सांसद रहे। वह पार्टी के राष्ट्रीय सचिव, कानपुर-आगरा जोनल कोऑर्डिनेटर और पांच राज्यों के प्रभारी भी रह चुके हैं। उनकी पत्नी भी बसपा सरकार में महिला आयोग की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं।
2023 में बेटी प्रज्ञा की शादी आकाश से कराईबसपा ने सतीश चंद्र मिश्र के साथ अशोक सिद्धार्थ को भी राज्यसभा भेजा था। मार्च 2023 में मायावती के भतीजे आकाश आनंद की शादी अशोक सिद्धार्थ की बेटी प्रज्ञा से हुई थी। इस रिश्तेदारी ने भी उन्हें सुर्खियों में ला दिया था। हालांकि पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के चलते अशोक सिद्धार्थ को 12 फरवरी, 2025 को बसपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। मायावती ने आकाश आनंद से भी सारे पद छीनते हुए उन्हें भी पार्टी से निकाल दिया था। अब एक-एक कर दामाद और ससुर बसपा में वापसी कर चुके हैं।
क्या हैं राजनीतिक मायने?राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में लगातार कमजोर हो रहे संगठन और खिसकते दलित वोट बैंक को बचाने के लिए मायावती ने यह कदम उठाया है। आकाश आनंद की सक्रिय राजनीति में वापसी के बाद से ही अशोक सिद्धार्थ की घर वापसी तय मानी जा रही थी। अब माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में बसपा और भी पुराने नेताओं को दोबारा जोड़ सकती है। पंचायत चुनाव 2026 और 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए बसपा दलित समाज में अपनी पकड़ मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। इसी कड़ी में यह कदम बेहद अहम माना जा रहा है।
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