राहुल पाण्डेय: नैनीताल के मुक्तेश्वर से एक रोड पहाड़ों के ऊपर-ऊपर ही अल्मोड़ा जाती है। कुछ दोस्तों ने जब सुना कि इन दिनों मैं नैनीताल में हूं, तो अल्मोड़ा बुलाया। मुक्तेश्वर से अल्मोड़ा की ओर बढ़े तो कोसी नदी के पुल पर लैंडस्लाइड हो रखी थी। कहीं कोई बारिश नहीं। मौसम एकदम सूखा, और गर्म भी। पुल के पास तापमान तब रहा होगा यही कोई 32-35 डिग्री सेल्सियस के आसपास। बगल से कोई बाइक निकलती तो धूल इतनी उड़ाती कि हमें अंगोछे से अपना मुंह ढकना पड़ता। साथ बैठे मित्र ने बताया कि गर्मी बढ़ने के साथ ही पहाड़ भी दरकते हैं।
हमारे सामने 3-4 जेसीबी और पोकलैंड मशीनें मलबा हटा रही थीं। घंटे भर बाद मलबा हटा और हम आगे बढ़े। चलने से पहले हमें बताया गया था कि अल्मोड़ा एक गर्म शहर है। पहुंचने पर हमने पाया कि यह हमारी उम्मीद से भी अधिक गर्म है बल्कि कुछेक जगहों पर मुझे AC लगा भी दिखा। वहां से नीचे हम कोसी पहुंचे। कोसी में एक ग्रामीण ढाबे में भट की दाल-चावल और राई का रायता ऑर्डर किया। धुएं से ढाबे की छतें काली हो रखी थीं। पंखा पूरी स्पीड से चल रहा था, फिर भी हम सभी पसीने से सराबोर थे। राई के रायते ने पसीना डबल कर दिया।
कोसी से हमें अब ऊपर जाना था, शीतलाखेत और देवलीखान की ओर। बीच में थी खूट नाम की जगह, जहां हमें रुकना था। खूट काफी ऊपर है, लेकिन यहां भी गर्मी थी। हां, शीतलाखेत और देवलीखान के लोगों के पहनावे को देखकर साफ पता लगा कि यहां कभी गर्मियों में सर्दी पड़ती थी। देह से स्वेटर उतर चुका है, मगर गर्म हाफ जैकेट अभी उतरनी बाकी है। वापसी में रास्ता खुला था। हम मुक्तेश्वर के मोना पहुंचे। यहां भी कई जगह AC लग चुके हैं।
मुक्तेश्वर में हम जब अपने दोस्त के गांव जाने लगे, तो रास्ते में किंग कोबरा के दर्शन हुए। 12 फीट लंबा काला सुंदर नाग जीवन में पहली बार सामने देखा। हुजूर सड़क पर आराम से कुंडली मारकर धूप सेंक रहे थे। हमारी-उनकी मुलाकात हुई तो शरमाकर तुरंत खाई की ओर दौड़े और कुछ ही सेकंडों में गायब। दोस्त ने बताया कि पहले ये काठगोदाम में रहते थे। नीचे ज्यादा गर्मी बढ़ी, तो अब ये यहां आ गए हैं। अब यहां इनको उतनी ही गर्मी मिलती है, जितनी 5-7 साल पहले काठगोदाम में मिलती थी।
हमारे सामने 3-4 जेसीबी और पोकलैंड मशीनें मलबा हटा रही थीं। घंटे भर बाद मलबा हटा और हम आगे बढ़े। चलने से पहले हमें बताया गया था कि अल्मोड़ा एक गर्म शहर है। पहुंचने पर हमने पाया कि यह हमारी उम्मीद से भी अधिक गर्म है बल्कि कुछेक जगहों पर मुझे AC लगा भी दिखा। वहां से नीचे हम कोसी पहुंचे। कोसी में एक ग्रामीण ढाबे में भट की दाल-चावल और राई का रायता ऑर्डर किया। धुएं से ढाबे की छतें काली हो रखी थीं। पंखा पूरी स्पीड से चल रहा था, फिर भी हम सभी पसीने से सराबोर थे। राई के रायते ने पसीना डबल कर दिया।
कोसी से हमें अब ऊपर जाना था, शीतलाखेत और देवलीखान की ओर। बीच में थी खूट नाम की जगह, जहां हमें रुकना था। खूट काफी ऊपर है, लेकिन यहां भी गर्मी थी। हां, शीतलाखेत और देवलीखान के लोगों के पहनावे को देखकर साफ पता लगा कि यहां कभी गर्मियों में सर्दी पड़ती थी। देह से स्वेटर उतर चुका है, मगर गर्म हाफ जैकेट अभी उतरनी बाकी है। वापसी में रास्ता खुला था। हम मुक्तेश्वर के मोना पहुंचे। यहां भी कई जगह AC लग चुके हैं।
मुक्तेश्वर में हम जब अपने दोस्त के गांव जाने लगे, तो रास्ते में किंग कोबरा के दर्शन हुए। 12 फीट लंबा काला सुंदर नाग जीवन में पहली बार सामने देखा। हुजूर सड़क पर आराम से कुंडली मारकर धूप सेंक रहे थे। हमारी-उनकी मुलाकात हुई तो शरमाकर तुरंत खाई की ओर दौड़े और कुछ ही सेकंडों में गायब। दोस्त ने बताया कि पहले ये काठगोदाम में रहते थे। नीचे ज्यादा गर्मी बढ़ी, तो अब ये यहां आ गए हैं। अब यहां इनको उतनी ही गर्मी मिलती है, जितनी 5-7 साल पहले काठगोदाम में मिलती थी।
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