उस दौर में, जब देश सुपरफास्ट वंदे भारत और बुलेट ट्रेनों की रफ़्तार का गवाह बन रहा है, उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कोने देवरिया में एक ऐसी ट्रेन है जो आज भी अपने धीमे, लयबद्ध संगीत के साथ दिलों पर राज करती है। इसका कोई आकर्षक नाम नहीं है, न ही इसमें आधुनिक सुविधाएं हैं, लेकिन फिर भी यह हज़ारों लोगों की ‘जीवनरेखा’ है। लोग इसे प्यार से ‘बड़हजिया’ बुलाते हैं।
यह कहानी है भटनी से बड़हज बाज़ार के बीच चलने वाली एक अनोखी मीटर गेज ट्रेन की, जो पिछले 103 सालों से बिना रुके, बिना थके अपनी सेवाएं दे रही है। यह सिर्फ लोहे के डिब्बों का एक काफिला नहीं है, बल्कि यह चलती-फिरती यादों का एक पिटारा है, एक जीती-जागती विरासत है।
यादों की पटरी पर दौड़ती ‘बड़हजिया’
अंग्रेजों के जमाने में शुरू हुई यह ट्रेन आज भी उसी अपनेपन के साथ चलती है। इसके मामूली से किराए की वजह से यह छात्रों, छोटे व्यापारियों, किसानों और रोज़मर्रा के कामगारों की पहली पसंद है। यह ट्रेन सिर्फ लोगों को उनकी मंजिल तक नहीं पहुंचाती, बल्कि पीढ़ियों की यादों को भी सहेज कर रखती है। कई बुजुर्ग आज भी बताते हैं कि कैसे उनके दादा-परदादा इसी ट्रेन से सफर किया करते थे।
जब यह ट्रेन हरे-भरे खेतों और छोटे-छोटे गांवों से होकर गुज़रती है, तो इसका सफर किसी खूबसूरत कविता जैसा लगता है। सरयू नदी के किनारे बसे बड़हज बाज़ार तक का यह 33 किलोमीटर का सफर लोगों को एक अलग ही सुकून देता है।
‘बड़हजिया’ सिर्फ एक सवारी नहीं, बल्कि देवरिया के लोगों की पहचान का एक हिस्सा है, उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का एक अहम साथी है। यह इस बात का सबूत है कि कुछ चीजें समय के साथ पुरानी नहीं, बल्कि और भी कीमती और अनमोल हो जाती हैं।
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