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गृह प्रवेश में दूध उबालने की परंपरा: आस्था, विज्ञान और संस्कृति का संगम

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गृह प्रवेश में दूध उबालने की परंपरा: आस्था, विज्ञान और संस्कृति का संगम

सनातन धर्म में कई ऐसी परंपराएं हैं जो न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी होती हैं, बल्कि उनके पीछे गहरी सांस्कृतिक और वैज्ञानिक समझ भी छिपी होती है। ऐसी ही एक विशेष परंपरा है—नए घर में गृह प्रवेश के समय दूध उबालना। देखने में यह एक साधारण कार्य लगता है, लेकिन इसका महत्व बहुत व्यापक और गहरा है। आइए जानते हैं इसके पीछे की मान्यता और उसका महत्व।

गृह प्रवेश से पहले हवन और पूजन

जब कोई व्यक्ति नए घर में प्रवेश करता है, तो सबसे पहले वहां शुद्धिकरण के लिए हवन और पूजन किया जाता है। इसके बाद घर के प्रत्येक कोने में गंगाजल का छिड़काव किया जाता है और दीप जलाए जाते हैं। यह प्रक्रिया घर की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और सकारात्मकता के संचार के लिए की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।

गृह स्वामिनी द्वारा दूध उबालना

हवन और पूजन के बाद, घर की महिला सदस्य—अर्थात गृह स्वामिनी—दूध उबालती है। यह कार्य केवल रसोई की शुरुआत नहीं है, बल्कि यह संकेत होता है कि अब यह घर निर्जन नहीं रहा, बल्कि इसमें जीवन और ऊर्जा का संचार हो गया है। दूध का रंग सफेद होता है, जो चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है। चंद्रमा को सौम्यता, शांति और समृद्धि का द्योतक माना जाता है। इसलिए दूध उबालना मां लक्ष्मी और चंद्रमा का आशीर्वाद प्राप्त करने का प्रतीक होता है।

खीर बनाकर सभी को प्रसाद देना

जब दूध उबाल लिया जाता है, तो उसमें चावल और चीनी डालकर खीर बनाई जाती है। फिर इसे भगवान को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है और घर में उपस्थित सभी लोगों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। किसी शुभ कार्य की शुरुआत मिठास से करना इस बात का संकेत होता है कि परिवार में हमेशा प्रेम, सौहार्द और आपसी सहयोग बना रहेगा। साथ ही यह भी कामना की जाती है कि घर में हमेशा सुख और समृद्धि बनी रहे।

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