शिव की महिमा अनंत है। ब्रह्मा, विष्णु और शिव, ये तीनों परम मूर्तियों में से शिव का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। शिव को शंकर भी कहा जाता है। जहाँ ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करते हैं, विष्णु पालन करते हैं, वहीं शिव का कार्य संहार करना है। हालांकि, शैव परंपरा के अनुसार, शिव ही परम तत्व हैं और उनके कार्यों में सृष्टि और पालन भी शामिल हैं।
शिव की करुणा और कार्य
शिव अत्यंत करुणामय हैं और उनके कार्यों में अनुग्रह, गोपन और लोपन की क्रियाएँ भी शामिल हैं। इस प्रकार, उनके कार्यों की पांच श्रेणियाँ हैं। शिव की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ इन कार्यों से संबंधित हैं, और उनका मुख्य उद्देश्य भक्तों का कल्याण करना है।
शिव का सांस्कृतिक योगदान
शिव को विभिन्न कलाओं और सिद्धियों का प्रवर्तक माना जाता है। संगीत, नृत्य, योग, और व्याकरण जैसे क्षेत्रों में शिव का योगदान महत्वपूर्ण है। उन्हें पशुपति, भूतपति और भूतनाथ के रूप में भी जाना जाता है।
वैदिक साहित्य में शिव का स्थान
शिव की कल्पना का विकास वैदिक साहित्य में मिलता है। ऋग्वेद में रुद्र की विशेषताओं का वर्णन किया गया है, और 'शुक्ल यजुर्वेद' में शिव का मूल रूप दर्शाया गया है। शिव को गिरीश, कृत्तिवास और कपर्दी के रूप में वर्णित किया गया है।
शिव की पूजा और महत्व
शिव की पूजा का क्रमशः विकास हुआ है, और यह निश्चित है कि ईसा पूर्व में ही शैव सम्प्रदाय का उदय हो चुका था। पुराणों में शिव का विस्तृत वर्णन मिलता है, जिसमें उन्हें योगिराज के रूप में दर्शाया गया है।
शिव का प्रतीकात्मक स्वरूप
शिव का स्वरूप न केवल मूर्त रूप में, बल्कि अमूर्त रूप में भी महत्वपूर्ण है। शिव का प्रतीक लिंग है, जो उनके ज्ञान और तेज का प्रतिनिधित्व करता है। शिव-पार्वती के विवाह की कथा संस्कृत और लोक साहित्य में प्रचलित है।
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