भोपाल, 15 अगस्त (Udaipur Kiran) । भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव देशभर में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार, मथुरा नगरी में कारागार में देवकी के गर्भ से, भादो कृष्ण अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र और अर्धरात्रि के शुभ संयोग में, विष्णु ने कृष्ण रूप में अवतार लिया था। तभी से यह पर्व न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में बसे भारतीय समुदायों में, अपार श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
तिथि और मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 15 अगस्त 2025 को रात 11:49 बजे आरंभ होकर 16 अगस्त 2025 को रात 9:34 बजे समाप्त होगी। इस संबध में आचार्य ब्रजेशचंद्र दुबे ने हिस को बताया कि उदया तिथि 16 अगस्त को पड़ने के कारण, वैष्णव संप्रदाय, ब्रजवासी और अधिकांश श्रद्धालु जन्माष्टमी इसी दिन मनाएंगे। जबकि स्मार्त संप्रदाय 15 अगस्त को पूजा करेंगे।
पूजा का शुभ मुहूर्त 16 अगस्त की देर रात 12:04 बजे से 12:45 बजे तक रहेगा। यह लगभग 43 मिनट का समय श्रीकृष्ण जन्माभिषेक और आरती के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। जन्माष्टमी की यह रात भक्ति, आनंद और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। जैसे ही आधी रात को नंद के घर बधाई गूंजती है, हर भक्त के हृदय में यही भाव उमड़ता है : नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की…
इस बार जन्माष्टमी की तिथि के साथ रोहिणी नक्षत्र का संयोग नहीं बन रहा है। रोहिणी नक्षत्र 17 अगस्त को सुबह 4:38 बजे शुरू होकर 18 अगस्त की सुबह 3:17 बजे समाप्त होगा। पारंपरिक मान्यता है कि श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था, इसलिए कई श्रद्धालु इस संयोग का भी ध्यान रखते हैं। यही कारण है कि कुछ लोग 17 अगस्त को भी विशेष पूजा कर सकते हैं।
जन्माष्टमी का महत्व
आचार्य ब्रजेशचंद्र दुबे का कहना है कि श्रीमद्भागवत, महाभारत और पुराणों में वर्णित है कि श्रीकृष्ण ने अपने जन्म के साथ ही धरती से अन्याय, अधर्म और अत्याचार का नाश करने का संकल्प लिया था। उनका जीवन केवल लीलाओं का क्रम नहीं, बल्कि धर्म, नीति, प्रेम और भक्ति का अद्वितीय संगम है। मथुरा, वृंदावन, द्वारका, बरसाना और गोकुल में इस दिन का उल्लास चरम पर होता है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु मंदिरों में उमड़ते हैं। रासलीला, झांकियां और दही-हांडी जैसे आयोजन इस पर्व को लोकोत्सव का स्वरूप देते हैं।
मध्य प्रदेश के उज्जैन में निवासरत प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पं.अजयशंकर व्यास के अनुसार इस बार अष्टमी तिथि की शुरुआत 15 अगस्त से होगी और समाप्ति 16 अगस्त को होगी। शास्त्र सम्मत नियम के अनुसार 16 अगस्त को ही यह त्योहार माना गया है । उन्होंने बताया कि भगवान कृष्ण के जन्म तिथि के महत्व के साथ रोहणी नक्षत्र रात्रिकालीन रहेगा।
पूजा-विधि : इस तरह से मनाएं जन्माष्टमी
जन्माष्टमी के दिन श्रद्धालु प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लेते हैं। घर के पूजा स्थल को विशेष रूप से सजाया जाता है। रंगोली, फूल, तोरण और दीपों से वातावरण को उत्सवमय बनाया जाता है।
झूला सजाना: भगवान कृष्ण के बालरूप को पालने या झूले में स्थापित किया जाता है, जिसे फूलों और रंगीन कपड़ों से सजाया जाता है।
पंचामृत अभिषेक: दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से कृष्ण प्रतिमा का अभिषेक किया जाता है।
भोग अर्पण: ताजे माखन, मिश्री, मेवे और तुलसी दल को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है।
भजन-कीर्तन: दिनभर कृष्ण भजन, संकीर्तन और कथाएं होती हैं।
मध्यरात्रि जन्मोत्सव: जैसे ही घड़ी 12 बजाती है, शंख-घंटियों की गूंज, बांसुरी की मधुर तान और जयकारों के बीच श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
व्रत का महत्व और नियम
जन्माष्टमी व्रत को अत्यंत फलदायी माना गया है। व्रती को दिनभर सात्विक रहना चाहिए। परंपरा के अनुसार यह व्रत निर्जला होता है, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से फलाहार भी किया जा सकता है। मध्यरात्रि में पूजा संपन्न होने के बाद ही व्रत तोड़ा जाता है।
श्रीकृष्ण का श्रृंगार
श्रृंगार में पीताम्बर, वैजयंती माला, मोर मुकुट, कस्तूरी तिलक और चंदन का विशेष महत्व है। फूलों का प्रयोग अधिक किया जाता है, जबकि काले रंग से परहेज किया जाता है।
भक्ति और उत्सव का संगम
जन्माष्टमी केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह प्रेम, करुणा, स्नेह और भाईचारे का संदेश देने वाला उत्सव है। श्रीकृष्ण का जीवन हर युग के लिए प्रेरणा है, गोकुल में बांसुरी की मधुर धुन हो, कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिया गया गीता का उपदेश हो, या फिर सुदामा के साथ निभाई अटूट मित्रता, उनकी लीलाएं आज भी मानवता के लिए आदर्श हैं। महाराष्ट्र, गुजरात और कई अन्य राज्यों में जन्माष्टमी के अगले दिन दही-हांडी का आयोजन होता है। इसमें युवा गोविंदा मानव पिरामिड बनाकर ऊंचाई पर टंगी मटकी को फोड़ते हैं, जो माखन-मिश्री और अन्य मिठाइयों से भरी होती है। यह बालकृष्ण की माखन चुराने की लीला का प्रतीक है।
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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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