जींद, 13 अप्रैल . शहर के सभी गुरुद्वारों में रविवार को बैसाखी पर्व श्रद्धा एवं धूमधाम से मनाया गया. इस अवसर पर शहर के सभी गुरुद्वारों में रखे गए श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के अखंड पाठ का भोग डाला गया. इसके उपरांत सभी गुरुद्वारों में धार्मिक दीवान सजाए गए तथा गुरु का अटूट लंगर संगतों में बरताया गया. गुरु घर के प्रवक्ता बलविंदर सिंह ने बताया कि शहर के ऐतिहासिक गुरुद्वारा गुरु तेग बहादुर साहिब में भाई जसबीर सिंह रमदसिया व गुरूद्वारा सिंह सभा में भाई संतोख सिंह के रागी जत्थे ने गुरबाणी कीर्तन गायन किया और अपने अपने प्रवचनों में गुरु गोबिंद सिंह की जीवनी से संगतों को रूबरू करवाया.
गुरूघर प्रवक्ता बलविंदर सिंह ने कहा कि यह पर्व न केवल फसलों के पकने का संकेत देता है बल्कि यह सिख धर्म के नववर्ष का भी प्रतीक है. इसी दिन 1699 में सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. उन्होंने आनंदपुर साहिब में एक सभा आयोजित की और सिखों को एक नई पहचान दी. उन्होंने सिखों को पंज ककार (केश, कंघा, कछहरा, कड़ा और कृपाणद्ध धारण करने के लिए कहा था. इस आह्वान पर पांच सिखों ने अपनी सहमति दी. इन पांच सिखों को पंज प्यारे के नाम से जाना जाता है. गुरु गोबिंद सिंह जी ने इन पांच सिखों को अमृत छकाया और उन्हें खालसा पंथ में दीक्षित किया. खालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य अन्याय के खिलाफ लडऩा और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करना था.
खालसा यानि कि पवित्र विचारों से परिपूर्ण, गरीबों का भला करने वाला, ऊंच-नीच का विरोध करने वाला, दूसरों की रक्षा करने वाला, भलाई का कार्य करने वाला व गुरु के सिद्धांतों का पालन करने वाला ही गुरु का असली खालसा कहलाता है. इस अवसर पर इस अवसर पर गुरुद्वारा मैनेजर गुरविंदर सिंह चौगामा, हरियाणा गुरुद्वारा कमेटी के एग्जीक्यूटिव मेंबर बीबी परमिंदर कौर, सिंह सभा गुरुद्वारा रेलवे जंक्शन के प्रधान जसबीर सिंह टीटी, कमलजीत कौर ग्रेवाल, चरणजीत सिंह चन्ना, अशोक छिब्बर, रमनदीप सिंह, नारायण सिंह, आज्ञापाल सिंह, जत्थेदार गुरजिंदर सिंह, मालिक सिंह चीमा, गगन गेरा व जोगिंदर सिंह पाहवा उपस्थित रहे.
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/ विजेंद्र मराठा
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