कोलकाता, 13 अगस्त (Udaipur Kiran) । पश्चिम बंगाल की 77 साल पुरानी मासिक पत्रिका ‘स्वस्तिका’ का बुधवार को पहला हिंदी संस्करण जारी किया गया। यह पत्रिका अब हर महीने की 15 तारीख को प्रकाशित होगी। अब तक केवल बंगला भाषा में प्रकाशित होने वाली यह पत्रिका राज्य के हिंदी भाषी पाठकों तक अपने विचार पहुंचाने के उद्देश्य से हिंदी में भी लाई गई है।
पत्रिका का लोकार्पण कोलकाता के बड़ाबाजार ग्रंथालय में हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. आनंद पांडे उपस्थित थे। कार्यक्रम में स्वस्तिका के संपादक तिलक रंजन बेरा, अमित जाना, सुनील सिंह सहित कई गणमान्य व्यक्ति भी शामिल हुए। समारोह की शुरुआत सामूहिक प्रार्थना गीत से हुई, जिसके बाद भारत माता की तस्वीर पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन किया गया।
तिलक रंजन बेरा ने अपने संबोधन में पत्रिका से जुड़ी व्यक्तिगत यादें साझा कीं। उन्होंने बताया कि स्वस्तिका के पन्नों पर भारत की आपातकालीन स्थिति, बांग्लादेशी घुसपैठ और रामनवमी जैसे अहम मुद्दों को हमेशा जगह दी गई। उन्होंने कहा कि पत्रिका के शुरुआती दिनों में यह मात्र चार पन्नों की होती थी और दो आना मूल्य पर बिकती थी। उस समय राष्ट्रवादी विचारधारा के कारण लेखक अपने नाम छिपाने को मजबूर रहते थे, लेकिन अब कई लेखक स्वयं लेख भेजते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी सुनील सिंह ने कहा कि 1975 के आपातकाल में भी इस पत्रिका का प्रकाशन नहीं रुका। आज बदलते दौर में स्वस्तिका की सबसे बड़ी सफलता यही है कि यह लोगों की आवाज बन चुकी है।
मुख्य वक्ता डॉ. आनंद पांडे ने अपने भाषण में कहा कि हर व्यक्ति के जीवन में धर्म और कर्म दोनों का विशेष महत्व है। उन्होंने बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय से लेकर रवींद्रनाथ ठाकुर तक के साहित्यिक योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि हिंदी और बांग्ला साहित्य हमेशा एक-दूसरे से गहरे जुड़े रहे हैं। उन्होंने बताया कि 40 पृष्ठों की यह पत्रिका भारतीय समाज का सजीव चित्र प्रस्तुत करती है और पश्चिम बंगाल की मौजूदा स्थिति को लेकर उन्होंने चिंता भी जताई।
समारोह के अंत में उपस्थित अतिथियों के बीच पत्रिका का वितरण किया गया और सभी से इसे पढ़ने व अपने विचार साझा करने की अपील की गई।
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(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
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