देहरादून की सियासी हवाओं में इन दिनों एक नया तूफान उठ रहा है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की गंगा सम्मान यात्रा को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने तीखा हमला बोला है। इस यात्रा को महज एक ढोंग करार देते हुए भाजपा ने इसे तुष्टिकरण की राजनीति से ध्यान भटकाने की कोशिश बताया है। आइए, इस मुद्दे की गहराई में उतरकर समझते हैं कि आखिर माजरा क्या है और क्यों यह यात्रा विवादों के घेरे में है।
गंगा के प्रति अपमान या पवित्रता का दिखावा?
भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान ने हरीश रावत पर गंगा के प्रति असम्मान का गंभीर आरोप लगाया है। उनका कहना है कि जब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने मां गंगा की अविरल धारा को स्क्रैप चैनल यानी नाले के रूप में घोषित करने का फैसला लिया था। यह निर्णय न केवल गंगा की पवित्रता पर सवाल उठाता है, बल्कि उत्तराखंड के लोगों की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाता है। चौहान ने इसे सनातन धर्म के प्रति अनादर का प्रतीक बताया और कहा कि यह पाप आज भी लोगों के जेहन में ताजा है।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि कांग्रेस और उनके नेताओं की हर राजनैतिक गतिविधि पाखंड और भ्रम फैलाने की कोशिश होती है। चौहान का कहना है कि हरीश रावत की यह गंगा सम्मान यात्रा दरअसल जनता की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास है। लेकिन देवभूमि उत्तराखंड की जनता इतनी जल्दी कुछ भूलती नहीं। लोग आज भी उनके उन फैसलों को याद करते हैं, जिनमें नमाज के लिए छुट्टी का ऐलान और मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बात शामिल थी।
स्क्रैप चैनल का वह काला अध्याय
2016 में हरिद्वार में गंगा की अविरल धारा को स्क्रैप चैनल घोषित करने का निर्णय उस समय चर्चा का विषय बना था। चौहान ने इसे हरीश रावत के कार्यकाल का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण कदम बताया। उनका कहना है कि इस फैसले ने गंगा के साथ-साथ संत समाज और उत्तराखंड के लोगों की आस्था को भी चोट पहुंचाई। इतिहास में जाएं तो 106 साल पहले पंडित मदन मोहन मालवीय ने अंग्रेजों के हरकी पैड़ी को नहर बनाने के प्रयास का जमकर विरोध किया था।
उनके प्रयासों से गंगा की एक धारा को सती घाट से नील धारा तक जोड़ा गया, जिससे नदी का स्वरूप बरकरार रहा। लेकिन हरीश रावत ने अपने कार्यकाल में नियमों में बदलाव कर गंगा को स्क्रैप चैनल में तब्दील करने की कोशिश की, जिसे चौहान ने माफियाओं को लाभ पहुंचाने का कदम बताया।
जनता की याददाश्त पर सवाल क्यों?
चौहान ने तंज कसते हुए कहा कि हरीश रावत शायद यह मान बैठे हैं कि जनता उनके कार्यकाल के कारनामों को भूल चुकी है। लेकिन उत्तराखंड की जनता न केवल उनके फैसलों को याद रखती है, बल्कि उनकी मंशा को भी अच्छे से समझती है। गंगा जैसी पवित्र नदी के प्रति असम्मान करने वाले अब उसी गंगा के नाम पर यात्रा निकाल रहे हैं।
यह न केवल विडंबना है, बल्कि उनकी नीति और नीयत को भी उजागर करता है। चौहान ने यह भी कहा कि जब हरीश रावत दूसरों पर उंगली उठाते हैं, तो उनकी अपनी कमियां साफ नजर आती हैं।
धामी सरकार का शानदार रिकॉर्ड
इस पूरे विवाद के बीच चौहान ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई वाली सरकार की तारीफ की। उन्होंने कहा कि धामी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड बेदाग और शानदार है। जनता ने हर मौके पर इस सरकार के काम को सराहा है और अपनी मुहर लगाई है। दूसरी ओर, कांग्रेस और हरीश रावत बार-बार जनता को भ्रमित करने की नाकाम कोशिश करते रहते हैं।
क्या है इस यात्रा का असली मकसद?
गंगा सम्मान यात्रा को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह वाकई गंगा की पवित्रता को सम्मान देने का प्रयास है या फिर सियासी मंच पर चमकने की कोशिश? उत्तराखंड की जनता के बीच यह चर्चा जोरों पर है। जहां एक ओर भाजपा इसे तुष्टिकरण से ध्यान भटकाने का हथकंडा बता रही है, वहीं हरीश रावत के समर्थक इसे गंगा के प्रति उनकी श्रद्धा का प्रतीक मान रहे हैं। लेकिन सच क्या है, यह तो वक्त ही बताएगा।
इस पूरे प्रकरण में एक बात साफ है कि गंगा न केवल उत्तराखंड की जीवनरेखा है, बल्कि यह करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र भी है। ऐसे में गंगा के नाम पर कोई भी राजनैतिक खेल जनता की नजरों से बच नहीं सकता। उत्तराखंड के लोग अपनी आस्था और इतिहास को लेकर बेहद संवेदनशील हैं, और वे हर उस कदम को गौर से देखते हैं जो उनकी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ा हो।
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