आज हम आपको एक ऐसी शख्सियत से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने बचपन में गांव की मिट्टी से जुड़कर न केवल खेती के प्रति प्रेम विकसित किया, बल्कि जैविक खेती को एक मिशन बनाकर लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए। यह कहानी है भाजपा के संस्थापक सदस्य और पूर्व राज्यसभा सांसद आर.के. सिन्हा की, जिन्हें आज 'जैविक मैन' के नाम से जाना जाता है। उनकी यह यात्रा न केवल स्वस्थ जीवन की खोज है, बल्कि हमारी परंपरागत खेती को पुनर्जनन देने का एक अनूठा प्रयास भी है।
गांव की मिट्टी से शुरू हुआ सफर
आर.के. सिन्हा का बचपन गांव की गोद में बीता, जहां वे अपने दादा के साथ खेतों में समय बिताते थे। माता-पिता के अनुशासन से दूर, गांव की आजादी और प्रकृति के बीच उन्होंने खेती के गुर सीखे। यहीं से उनके मन में जैविक खेती का बीज अंकुरित हुआ। सिन्हा बताते हैं कि उस दौर में खेती पूरी तरह प्राकृतिक थी, जिसमें रसायनों का कोई स्थान नहीं था। यह अनुभव उनके लिए एक प्रेरणा बना, जिसने उन्हें आज जैविक खेती का पर्याय बना दिया।
रासायनिक खेती: एक छिपा हुआ खतरा
आज के समय में खाने-पीने की चीजों में मिलावट और रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल आम बात हो गई है। सिन्हा का मानना है कि यूरिया और पेस्टीसाइड्स जैसी हानिकारक चीजें न केवल हमारी फसलों को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि मानव शरीर को भी धीरे-धीरे कमजोर कर रही हैं। कैंसर, मधुमेह और अन्य गंभीर बीमारियों का बढ़ता प्रकोप इसका जीता-जागता सबूत है। सिन्हा कहते हैं, "अगर हम स्वस्थ जीवन चाहते हैं, तो हमें रासायनिक खेती को अलविदा कहकर जैविक खेती को अपनाना होगा।"
हरित क्रांति: वरदान या अभिशाप?
सिन्हा के अनुसार, 1960 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति ने भारतीय किसानों को अधिक पैदावार का लालच देकर रासायनिक खेती की ओर धकेल दिया। विदेशी कंपनियों और तत्कालीन नीतियों के दबाव में किसानों ने पारंपरिक खेती को छोड़कर रसायनों का उपयोग शुरू किया। इसका परिणाम यह हुआ कि हमारी मिट्टी, पानी और भोजन में जहर घुल गया। सिन्हा इसे 'जहर बोने, जहर काटने और जहर खाने' की प्रक्रिया कहते हैं, जिसने न केवल किसानों को नुकसान पहुंचाया, बल्कि आम लोगों के स्वास्थ्य को भी खतरे में डाल दिया।
जैविक खेती: एक समृद्ध विरासत की वापसी
सैकड़ों बीघा जमीन पर जैविक खेती कर रहे सिन्हा ने अपनी मेहनत से यह साबित कर दिया कि प्राकृतिक तरीकों से भी भरपूर पैदावार संभव है। उनके फार्महाउस में गेहूं, धान, दालें, सरसों, अलसी, मसाले, फल और सब्जियां जैसी दर्जनों फसलें जैविक तरीके से उगाई जाती हैं। सिन्हा का कहना है कि जैविक खेती न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह हमारी आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ भविष्य देने का एकमात्र रास्ता है।
लोगों को जागरूक करने का मिशन
सिन्हा केवल खेती तक सीमित नहीं हैं; वे समय-समय पर किसानों और आम लोगों को जैविक खेती के फायदों के बारे में जागरूक करते रहते हैं। यूपीयूकेलाइव के संपादक मोहम्मद फैजान के साथ एक विशेष बातचीत में उन्होंने बताया कि जैविक खेती हमारी परंपरागत विरासत है, जिसे हमें फिर से अपनाना होगा। वे कहते हैं, "हमारे पूर्वज बिना रसायनों के खेती करते थे, और उनकी फसलें न केवल स्वादिष्ट थीं, बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी थीं।"
एक प्रेरणा, एक संदेश
आर.के. सिन्हा की कहानी हमें यह सिखाती है कि बदलाव की शुरुआत छोटे कदमों से होती है। उनकी जैविक खेती की यात्रा न केवल पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक वरदान है, बल्कि यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ने का भी एक प्रयास है। सिन्हा का मानना है कि अगर हम आज सही दिशा में कदम उठाएं, तो न केवल हमारा वर्तमान सुधरेगा, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी स्वस्थ और समृद्ध जीवन जी सकेंगी।
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