खिले-खिले ये फूल, मोहित बरबस ही करें।
कहें हँसो सब भूल, झड़ना है जब एक दिन।
दें सुगंध, मकरंद, स्वार्थ रहित होकर सदा।
जीतो जीवन द्वंद, कहते हैं यह मुस्कुरा।
कैसा भी हो रंग, निखरे-निखरे यह दिखें।
मन में भरें उमंग, जग को सुंदर यह करें।
नहीं कहे अब अंत, मुरझाने पर हो दुखी।
नई उपज दे संत, सूख बीज का रूप ले।
जीवन हो क्या खूब, यदि फूलों सा हम बनें।
निज कर्मों में डूब, हँसते-हँसते जी सकें।
शिप्रा सैनी मौर्या, जमशेदपुर
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